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Exclusive:अभिनेत्रियाें की उम्र अब भी बहुत मायने रखती है, मैं खुद इससे कई बार जूझती हूं- श्वेता त्रिपाठी शर्मा

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श्वेता त्रिपाठी शर्मा ने कहा कि कुणाल खेमू के साथ तीस सालों का अनुभव है, उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. अलका अमीन और पीयूष मिश्रा जैसे मंझे हुए एक्टर हैं. उनके सामने कॉमेडी करना आसान नहीं था. वैसे सिर्फ परदे पर नहीं, बल्कि सेट पर भी भरपूर हंसी-मजाक का माहौल था.

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ओटीटी प्लेटफार्म जी 5 पर इन-दिनों फिल्म कंजूस मक्खीचूस स्ट्रीम कर रही है. फिल्म में श्वेता त्रिपाठी शर्मा कॉमेडी करती नजर आ रही हैं. वह कॉमेडी को बहुत मुश्किल करार देती हैं, लेकिन यह कहना नहीं भूलती कि लगातार सीरियस किरदारों के बीच एक कॉमेडी किरदार करना जरूरी है. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

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कंजूस मक्खीचूस में सबसे ज्यादा आपके लिए क्या अपीलिंग था?

मैं एक कॉमेडी फिल्म करना चाहती थी, क्योंकि जब मैंने अपना आनेवाला रिपोर्ट कार्ड देखा, मतलब जो मेरी आनेवाले प्रोजेक्ट्स हैं कालकूट, ये काली-काली आंखें और मिर्जापुर इसके अलावा एक प्रोजेक्ट है, जिसमें मैं एसिड अटैक सर्वाइवर की भूमिका में हूं. मुझे लगा अपने साथ-साथ चलो थोड़ा दर्शकों को भी हंसाते हैं. ये एक्टर के तौर पर भी जरूरी है, वरना लगातार इंटेस और ड्रामा वाला किरदार करने से लोग आप पर एक लेबल लगा देते हैं.वो गलत भी नहीं है, क्योंकि आप अपने काम से जाने जाते हैं.

कुणाल खेमू, अलका अमीन और पीयूष मिश्रा के साथ शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?

कुणाल खेमू के साथ तीस सालों का अनुभव है. वह बतौर बाल कलाकार काम कर रहे हैं, तो उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला. अलका अमीन और पीयूष मिश्रा जैसे मंझे हुए एक्टर हैं. उनके सामने कॉमेडी करना आसान नहीं था. वैसे सिर्फ परदे पर नहीं, बल्कि सेट पर भी भरपूर हंसी -मजाक का माहौल था. अब समझा लोग क्यों कमर्शियल फ़िल्में करते हैं. बहुत खुश रहते हैं.

फिल्म का शीर्षक कंजूस मक्खीचूस है, आप इससे कितना जुड़ाव महसूस करती हैं या आप खर्च बहुत करती हैं?

मैं खर्च तो बहुत नहीं करती हूं. मैं कहना चाहूंगी कि मैं थोड़ी कंजूस हूं और ये कंजूसी मैंने अपने पापा से सीखी है. मेरे पापा आइएएस ऑफिसर थे. वह ऐसे गांव में पले बढ़े थे, जहां बिजली तो छोड़िए सड़के भी नहीं थी इसलिए वो हमेशा बिजली, पानी को जितना हो सकें, बचाते थे.मैं भी ये करती हूं. सबसे ज्यादा पेड़ टिश्यू पेपर बनाने के लिए इनदिनों कट रहे हैं, इसलिए मैं हमेशा एक टिश्यू पेपर को आधा करके ही इस्तेमाल करती हूं. मुझे बहुत बुरा लगता है, जब लोग बिना सोचे समझे एक साथ तीन से चार टिश्यू पेपर धड़ल्ले से निकाल लेते हैं.

सबसे ज्यादा किन चीजों में पैसे खर्च करना पसंद है?

मुझे सिल्वर की ज्वेलरी खरीदना बहुत पसंद है. मैं साड़ियां भी बहुत खरीदती हूं. स्किन केयर प्रोडक्ट पर मैं बहुत खर्च करती हूं, क्योंकि मैं वैक्सिंग और थ्रेडिंग के अलावा कुछ भी नहीं करवाती हूं, तो मुझे मेरे स्किन केयर पर खर्च करना जरूरी हो जाता है. अच्छे क्वालिटी का फेसवाश, क्रीम का इस्तेमाल करती हूं. इसके अलावा खाने की बहुत शौकीन हूं.

मौजूदा दौर अभिनेत्रियों के लिए बेस्ट समय है, जहां उनके उनकी रंग, रूप से नहीं चुना जाता है?

हां यह सच है.मैं पांच फुट की हूं, कोई सोच सकता था कि मैं हीरोइन बनूंगी. इस बात को कहने के साथ मैं ये भी कहूंगी कि ऐसा नहीं है कि अभिनेत्रियों से जुड़ी उम्र, रंग की लड़ाई एकदम खत्म हो गयी है. मैं खुद इससे कई बार जूझती हूं, खासकर मेरी उम्र को लेकर. एक फिल्म का मैंने ऑडिशन किया था, तो मेरा ऑडिशन देखकर डायरेक्टर ने कहा था कि वाह-वाह तुम ही मेरा ये किरदार. मैं भी बड़ी खुश थी कि ये प्रोजेक्ट मिल गया. फिर जब फेश टू फेश मिली तब भी मेरी तारीफें कर रहे थे, फिर उन्होने बातों-बातों में पूछा कि उम्र क्या है. मैंने बताया कि मेरी उम्र 28 साल की है. मुझे जो किरदार मिल रहा था, वो 19 साल का था. अब तक मैं उनके किरदार में बिल्कुल फिट बैठ रही थी, लेकिन मेरी उम्र जानने के बाद उनके चेहरे की हवाइयां उडी हुई थी. मैं समझ गयी, मुझे ये किरदार नहीं मिलेगा. मेरी उम्र अभी 38 की है, लेकिन मुझे किरदार अभी भी 20 से 25 साल के ही मिलते हैं, क्योंकि मैं स्क्रीन पर वैसे ही दिखती हूं. एक और इंटरनेशनल प्रोजेक्ट था, उस वक्त हरामखोर आयी नहीं थी. हरामखोर में मैंने 19 साल का किरदार निभाया था, जबकि असल जिंदगी में मैं उस वक़्त 26 साल की थी. मैंने उन्हें बताया तो वो हंसने लगे कि कैसे मुझे किसी ने 19 साल की उम्र में कास्ट कर लिया है. हरामखोर आयी, तो उसके बाद क्या हुआ वो सभी को मालूम है. मैं लकी हूं कि मुझे उम्र को लेकर रिजेक्शन भले ही मिले, लेकिन ऐसे निर्देशक भी मिले, जिन्हे मेरी रियल उम्र से ज्यादा किरदार की उम्र में मैं फिट बैठती हूं. यह ज्यादा मायने रखता रहा है.

इंडस्ट्री की और क्या बातें जो आपको परेशान करती हैं?

कुछ समय पहले तक करती थी, लेकिन अब नहीं करती है. पहले जब मुझे सेट पर अपने शॉट के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता था, तो मेरा मूड ऑफ हो जाता था. अली फजल ने फिर मेरी सोच को बदला. उसने समझाया कि अपना मूड खराब करना अपने हाथ में होता है, आप कहीं जल्दी भी पहुंच जाओ, तो कोई किताब लेकर पहुंच जाओ, उसे पढ़ो. कुछ शोज डाउनलोड करके देख लो. अब वो समय मेरे लिए मी टाइम बना गया है. जब तक मेरे शॉट का कॉल टाइम आता है. मैं किरदार की तैयारी के साथ ये भी करती हूं.

आप लगातार ओटीटी प्रोजेक्ट्स ही कर रही हैं, बड़े परदे को मिस करती हैं?

जहां कहानी और किरदार अच्छा मिलेगा. वहां काम करूंगी. किरदार कोई मायने नहीं रखता है. मुझे अपने किरदार से दर्शकों को फील करवाना है, जिस दिन वो नहीं कर पाऊंगी. उसका ही बस एक डर है. ओटीटी ने मुझे सबकुछ दिया है. मैं ओटीटी के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकती हूं. ओटीटी कहीं ना कहीं डेमोक्रेसी का सबसे बड़ा उदाहरण है. यहां जिसकी डिमांड है, उसी चीज की सप्लाई है.

आप अपने एक्टिंग के क्राफ्ट में क्या बदलाव पाती हैं?

पहले तो यार चीजें आसानी से हो हंसते-खेलते हो गयी. अब लगता है कि ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी, क्योंकि पहले मेरा ऐसा था कि हरामखोर की संध्या, वो श्वेता जैसी नहीं होनी चाहिए और मसान की शालू, संध्या जैसी नहीं होनी चाहिए. उसके बाद मिर्जापुर की गोलू बाकी के मेरे किरदारों से अलग हो. कहने का मतलब है कि जितना आप किरदार करते जाते हो, उतनी मुश्किल बढ़ती जाती है, क्योंकि आपको हमेशा कुछ नया खोजते रहना पड़ता है. अंदर से आप कितने अलग -अलग इमोशन लाओगे, इसलिए आपको खुद को हमेशा फिर से भरना पड़ेगा. इससे पहले की आप खाली हो जाओ.

एक एक्टर के तौर पर खुद को भरने का आपका क्या प्रोसेस होता है?

मैं हमेशा खुद को ब्रेक देने की पूरी कोशिश करती हूं. मैं अभी पॉटरी सीखने पालमपुर जा रही हूं. मुझे हमेशा से ही ये सीखना था. हम सभी आखिरकार मिट्टी में ही मिल जाएंगे, तो उससे कुछ बना पाएं, इससे अच्छी बात क्या हो सकती है. मैं सबसे पहले चटनी रखने वाला बर्तन बनाऊंगी. किचन में मैं एकदम अनाड़ी हूं, लेकिन मैं चटनी का डब्बा बना सकती हूं.

मिर्जापुर 3 कब आनेवाला है?

उम्मीद है कि इस साल आ जाएगा. शूटिंग पूरी हो चुकी है. फिलहाल एडिटिंग का काम चल रहा है. इस बार और भौकाल यह शो मचाने वाला है.

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