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vanvaas movie review :नाना पाटेकर का जबरदस्त अभिनय है इस फिल्म की एकमात्र यूएसपी

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सिनेमाघरों में फिल्म वनवास देखने का प्लान कर रहे हैं , तो इससे पहले पढ़ लें ये रिव्यु

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फिल्म – वनवास – अपने ही अपनों को देते हैं वनवास

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निर्देशक -अनिल शर्मा 

कलाकार – नाना पाटेकर,उत्कर्ष, सिमरत, राजपाल यादव,अश्विनी कलसेकर, राजेश शर्मा, परितोष त्रिपाठी और अन्य 

प्लेटफार्म – सिनेमाघर 

रेटिंग – ढाई 

vanvaas movie review :निर्देशक अनिल शर्मा हिंदी सिनेमा में अपनी एक्शन फिल्मों के लिए जाने जाते हैं खासकर गदर और गदर 2 के लिए ,लेकिन उन्होंने हिंदी सिनेमा में अपनी शुरुआत श्रद्धांजलि और बंधन कच्चे धागों का अपने जैसी फिल्मों से की है. एक बार फिर वह अपनी जड़ों की और लौट आये हैं , जहां से उन्होंने शुरुआत की थी. वनवास पारिवारिक मूल्यों की सीख देती हुई कहानी है.जो बताती है कि कई बार दिलों के रिश्ते खून से ज्यादा मजबूत होते हैं.यह इमोशनल स्टोरी ट्रीटमेंट में थोड़ी कमजोर रह गयी है,लेकिन नाना पाटेकर का उम्दा अभिनय इस फिल्म को आधार देता है.  

अपनों द्वारा छले जाने की है कहानी

वनवास दीपक त्यागी (नाना पाटेकर )की कहानी है, जो अपनी पत्नी विमला (खुशबु )से बेहद प्यार करता है.उसने अपनी पत्नी के लिए पहाड़ों पर एक आलिशान बंगला बनवाया है. दीपक त्यागी के तीन बेटों ,बहुओं और उनके बच्चों से भरा पूरा परिवार है,लेकिन पत्नी की मौत के बाद वह मानसिक रूप से परेशान है. दीपक इस बंगले को ट्रस्ट में तब्दील कर देना चाहता है ताकि पत्नी की यादों को संजोने के साथ -साथ समाज का भी भला हो,लेकिन सिर्फ अपनी भला देखने वाले उसके बेटे और बहुएं  ऐसा होने नहीं देना चाहती हैं. उनको इसका रास्ता अपने पिता की डिमेंशिया बीमारी में दिखता है.वह अपने बीमार पिता को बनारस लेकर आते हैं और यहीं छोड़ देते हैं और वापस लौटकर लोगों को कहते हैं कि उनके पिता गंगा में डूबकर मर गए. इधर बनारस में दीपक अपनी बीमारी की वजह से बहुत कुछ भूल चुका है, लेकिन उसे अपना परिवार याद है और वह उसकी तलाश में है, उसकी मुलाकात पॉकेट मार वीरू (उत्कर्ष शर्मा )से होती है. जो शुरुआत में दीपक त्यागी को ठगता है, लेकिन जब उसको  दीपक के हालातों के बारे में पता चलता है,तो वह उसकी मदद करने का फैसला लेता है. क्या दीपक त्यागी को उसके बेटे को असलियत मालूम पड़ेगी. उसके बाद उसका क्या फैसला होगा. यही आगे की कहानी है. 

फिल्म की खूबियां और खामियां 

फिल्म का विषय संवेदनशील है. ऐसी कहानियां हमेशा ही समाज की जरुरत होती है.यही वजह है कि हर दशक में यह कहानी दोहराई जानी चाहिए ताकि रिश्तों की डोर लालच में कमजोर ना हो. कहानी की बात करें तो इसमें कई फिल्मों की छाप नजर आती है. अवतार, जैसी करनी वैसी भरनी से बागबान तक.खासकर अमिताभ बच्चन स्टारर बागबान की,लेकिन फिल्म ट्रीटमेंट में कमजोर रह गयी है. वीरू और त्यागी के बीच में वह बॉन्डिंग नहीं दिखती है, जो सलमान और अमिताभ के किरदार के बीच में दिखती थी. मौजूदा दौर के हिसाब से फिल्म का ट्रीटमेंट थोड़ा मेलोड्रामेटिक भी ज्यादा हो गया है. निर्देशक इसे सिम्पल भी रख सकते थे. फिल्म के संवाद औसत हैं.जो फिल्म से जुड़े इमोशन को उस तरह से सामने नहीं ला पाते हैं, जैसी कहानी की जरुरत थी. फिल्म के ट्रीटमेंट में इसकी लम्बाई भी अखरती है. फिल्म की लम्बाई 2 घंटे 40 मिनट की है.सब प्लॉट्स कहानी को खींचते हैं.उत्कर्ष और सिमरत की लव स्टोरी भी अधपकी सी है.  कबीर लाल की सिनेमेटोग्राफी कहानी के साथ न्याय करती है.शिमला और बनारस की खूबसूरती को उन्होंने बखूबी परदे पर लाया है.गीत संगीत पक्ष औसत है.

नाना पाटेकर का अभिनय फिल्म की यूएसपी 

 अभिनय की बात करें तो नाना पाटेकर इस कमजोर कहानी को अपने अभिनय से संभाला है. अपने किरदार से जुड़ी आशा, निराशा, गुस्सा, बेबसी सभी को बखूबी बयां किया है. बर्फ में उनके पिंडदान करने वाला दृश्य दिल को छूता है.उत्कर्ष की कोशिश अच्छी रही है. राजपाल यादव अपनी कॉमिक टाइमिंग से फिल्म में कॉमेडी जोड़ते हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपनी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.

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