18.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

The Jengaburu Curse Review: अस्तित्व की लड़ाई बनाम लालच की कहानी है द जेंगाबुरु कर्स

Advertisement

The Jengaburu Curse Review: नीला माधव पांडा द्वारा निर्देशित, सीरीज आदिवासी मूल्यों और उनमें पूंजीवाद हस्तक्षेप, उनकी परेशानी, उनके कष्ट, नक्सलवाद के मुद्दे, पुलिस अत्याचार, भ्रष्ट राजनीति के आड़ में होने वाले खेल का भी पर्दाफाश करती हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

वेब सीरीज : द जेंगाबुरु कर्स

- Advertisement -

कलाकार : फारिया अब्दुल्लाह, नासर, मकरंद देशपांडे और अन्य

निर्देशक : नील माधब पंडा

प्लेटफॉर्म : सोनी-लिव

रेटिंग : तीन स्टार

The Jengaburu Curse Review: यह देश की पहली क्लाइमेट फिक्शन सीरीज कही जा रही है. इस सीरीज की कहानी आदिवासी मूल्यों और उनमें पूंजीवाद हस्तक्षेप, उनकी परेशानी, उनके कष्ट, नक्सलवाद के मुद्दे, पुलिस अत्याचार, भ्रष्ट राजनीति के आड़ में होने वाले खेल का भी पर्दाफाश करती हैं. इस कहानी की सबसे बड़ी खूबी यही है कि आम कहानी होते हुए भी प्लॉट, चित्रण और ट्रीटमेंट से कहानी को पूरी तरह से महत्वपूर्ण बनाया गया है.

क्या है कहानी

नील माधव पंडा ने इससे पहले भी जो लेखन और निर्देशन का काम किया है. वह हमेशा बेहतरीन रहा है. इस बार भी अपनी सात एपिसोड की कहानी में वह झलक दिखती है. कहानी भुवनेश्वर से जुड़े आस पास के जंगल की है. प्रियवंदा एक फाइनेंशियल एनालिस्ट है, उसके पिता अचानक से गायब हो गए हैं. उनके पिता प्रोफेसर स्वतंत्र दास हैं, पुलिस को एक डेड बॉडी भी मिली है, जिसकी वजह से पूरा शक इस बात पे जा रहा है कि बॉडी प्रोफेसर दास की ही है. लेकिन कहानी में बड़ा ट्विस्ट आता है, जब प्रियवंदा इस बात से वाकिफ होती है कि उनके पिता की मृत्यु नहीं हुई है और उन्हें ढूंढने का सिलसिला शुरू होता है. अब इस क्रम में कैसे नए नए मोड़ कहानी में आते हैं. यही इस सीरीज में एक के बाद जुड़ता नजर आता है. जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हुए और भी कई मटाधीशियो ने अपने फायदे के लिए कई गलत काम किए हैं, इसका चिट्ठा खुलता जाता है और इन सबसे कैसे प्रियवंदा के पिता के तार जुड़ते हैं और उन्हें नुकसान पहुंचाया जाता है, यह सारी पहेली प्रिया सुलझाती है. कहानी में कई संवेदनशील मुद्दों को बेहद रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है.

आदिवासी मूल्यों और समाज के इर्द गिर्द घूमती है सीरीज

लेखक नील ने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि कहानी आदिवासी मूल्यों और समाज के इर्द गिर्द घूमे, उन्होंने वास्तविकता के करीब जाने की कोशिश की है और अप्रोच को मेलो ड्रामेटिक नहीं रखा है. साथ ही नक्सलियों ने आपसी संचार और संचार के तरीके को कहानी में रोचक तरीके से दर्शाया गया है.

Also Read: मैंने कभी अपने काम और ऑडियंस को फॉर ग्रांटेड नहीं लिया है: यामी गौतम

अभिनय ने बनाया है सीरीज को कमाल का

सीरीज में अभिनय की बात की जाए तो फारिया, नासर, ध्रुव कानन तीनों का ही काम शानदार है. फारिया ने तो इमोशनल किरदारों में जान डाल दी है. मकरंद देशपांडे देर से कहानी का हिस्सा बनते हैं, लेकिन कहानी का अहम हिस्सा बन जाते हैं. हमेशा की तरह उन्होंने बेस्ट दिया है. तकनीकी पक्षों की बात करें तो सिनेमेटोग्राफी सीरीज में काफी शानदार है. लोकेशन अदभुत चुने गए हैं. कुल मिला कर यह अलग विषय पर अलग अप्रोच पर बनी सीरीज है. देखी जानी चाहिए.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें