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A Wedding Story Movie Review:गरुण पुराण से जुड़ी इस हॉरर फिल्म को कमजोर स्क्रीनप्ले ने बनाया बोझिल

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आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई हॉरर फिल्म ए वेडिंग स्टोरी,डराने में कितनी कामयाब हुई है.जानते हैं इस रिव्यु में 

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फिल्म – ए वेडिंग स्टोरी

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निर्देशक -अभिनव पारीख 

निर्माता -शुभो शेखर भट्टाचार्य

कलाकार -वैभव तत्ववादी,मुक्ति मोहन, मोनिका चौधरी, अक्षय आनंद,लक्षवीर सरन,मोनिका चौधरी और अन्य 

प्लेटफार्म – सिनेमाघर 

रेटिंग -दो 


A wedding story:हिंदी फिल्मों में मौजूदा दौर हॉरर कॉमेडी जॉनर है.इसका उदाहरण स्त्री 2 की हालिया कामयाबी है,इसके बीच निर्देशक अभिनव पारीख अपनी हॉरर थ्रिलर फिल्म ए वेडिंग स्टोरी को लेकर आये हैं.हॉरर जॉनर वाली इस फिल्म की कहानी की प्रेरणा गरुण पुराण है, जिसमें लिखा गया है कि पंचक काल में जिनकी मृत्यु हुई है ,वो अपने साथ परिवार के पांच और लोगों को ले जाता है.यह हॉरर फिल्म अपने कांसेप्ट से भले ही अपील करती है, लेकिन कमजोर स्क्रीनप्ले, संवाद और दृश्यों के संयोजन ने इस हॉरर फिल्म को बोझिल अनुभव बना दिया है.

पंचक काल से जुड़ी है कहानी 

कहानी  की शुरुआत ही एक मौत की खबर को फ़ोन पर शेयर करने से होती है.एक परिवार अपने घर के एक सदस्य की मौत पर शोक मना रहा है. लाश के सामने विक्रम (वैभव )बैठा हुआ है और प्रीति (मुक्ति मोहन ) की एंट्री होती है और लोग बातें शुरू कर देते हैं कि इनकी मंगनी तो हो गयी है, देखो शादी कब होती है.दरअसल पंचक काल में विक्रम के चाचा की मौत हुई है और कैमरा एक कमरे में बैठे पंडित, विक्रम के पिता पर चला जाता है.पंडित उन्हें बता रहे हैं कि  यह समय भारतीय रीति-रिवाजों में अशुभ है.यह एक अभिशाप की तरह है, जिसमें घर के पांच और लोगों की मौत होगी.अगर कुछ रीति रिवाजों को नहीं किया गया.विक्रम का चचेरा भाई तरुण विदेश से पढ़कर लौटा है.वह इन बातों को अन्धविश्वास मानता है और पंडित द्वारा किये जा रही विधि को बीच में ही रोक देता है.हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि मृत देह के साथ जलाने के लिए पांच पुतलों में प्राण प्रतिष्ठा कर दी जाती है, लेकिन वह मृत देह के साथ नहीं जलते हैं,बल्कि विक्रम के फार्म हाउस उनका ठिकाना बन जाता है, जहाँ पर कुछ महीने बाद विक्रम और प्रीति की शादी होने वाली है.क्या होगा इसका अंजाम और विक्रम और प्रीति की शादी हो पाएगी या नहीं. ये फिल्म आगे इसी कथानक को सामने लाती है .


फिल्म की खूबियां और खामियां

फिल्म की खूबियों की बात करें तो इसका कांसेप्ट इसकी यूएसपी है. पंचक में मृत्य हिन्दू धर्म में अशुभ माना जाता है. हिंदी फिल्मों में इस विषय पर शायद यह पहली फिल्म होगी,जो इस फिल्म को खास बना देता है.पहले ही सीन में मृत इंसान की आंखों को दिखाकर डर का मूड भी सेट कर दिया जाता है, लेकिन उसके बाद फिल्म गिरती उठती है.पहले भाग में खामियों के बावजूद एंगेज करते हुए चलती है कि क्या होगा ?कैसे होगा,लेकिन सेकेंड हाफ में पूरी फिल्म धड़ाम से गिर जाती है. फिल्म कई सवालों के जवाब अधूरे छोड़ जाती है.तरुण इन बातों को मानता नहीं है फिर अचानक वह इनपर कैसे विश्वास करने लगता है. विक्रम के पिता जब एक पुतले को जला रहे होते हैं,तो उनके पीछे तरुण का चेहरा क्यों दिखाया गया है, जबकि आगे की कहानी से उसका कोई लेना देना नहीं है.फिल्म पंचक काल पर ठोस कुछ सामने नहीं ला पाती है सिर्फ गरुण पुराण के जिक्र के अलावा.फिल्म का क्लाइमेक्स भी जल्दीबाजी में निपटाया हुआ सा लगता है. फिल्म के स्क्रीनप्ले के साथ – साथ इसकी एडिटिंग भी बेहद सतही रह गयी है.फिल्म का गीत संगीत औसत है. बैकग्राउंड म्यूजिक जरूर अच्छा बन पड़ा है, जो इस हॉरर जॉनर के साथ न्याय करता है.फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप है.

वैभव और मुक्ति की कोशिश है अच्छी

अभिनय की बात करें तो फिल्म की कमजोर लिखावट और संवाद ने फिल्म के किरदारों को परदे पर निखरने का ज्यादा मौका नहीं दिया है हालांकि वैभव और मुक्ति मोहन ने अपनी – अपनी भूमिकाओं के साथ पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है.उनके बीच की केमिस्ट्री भी अच्छी है.

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