13.7 C
Ranchi
Friday, March 7, 2025 | 07:32 am
13.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

गुल्लक फेम गीतांजलि कुलकर्णी का खुलासा, कभी हाउसवाइफ नहीं बनना चाहती थी, उनको मानती थी कमजोर

Advertisement

अभिनेत्री गीतांजलि कुलकर्णी पिछले कुछ सालों में ओटीटी प्लेटफार्म में गुल्लक, ताजमहल 1989 और अनपॉजड नया सफर जैसे वेब सीरीज से अभिनय का एक भरोसेमंद नाम बन चुकी हैं. अब उन्होंने निजी जिंदगी को लेकर कई खुलासे किए हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

अभिनेत्री गीतांजलि कुलकर्णी पिछले कुछ सालों में ओटीटी प्लेटफार्म में गुल्लक, ताजमहल 1989 और अनपॉजड नया सफर जैसे वेब सीरीज से अभिनय का एक भरोसेमंद नाम बन चुकी हैं. इन दिनों वह गुल्लक के तीसरे सीजन में एक बार फिर शांति मिश्रा के किरदार में वाहवाही बटोर रही हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

गुल्लक का तीसरा सीजन भी लोगों को काफी पसंद आ रहा है क्या खास बात आपको इस सीरीज की लगती है?

ओटीटी प्लेटफार्म में यह अलग ही लीग का प्रतिनिधित्व करता है. यह आम आदमियों से जुड़ी कहानियां हैं. 80 में जो सीरियल होते थे. बासु चटर्जी की जो फिल्में होती थी. उनकी जो सादगी होती थी. वो गुल्लक ले आया है. मुझे लगता है कि वही बात लोगों को बहुत पसंद आती है.

एक ही किरदार को पर्दे पर बार-बार निभाना क्या कभी बोरिंग भी होता है?

सिचुएशन बहुत अलग अलग होती है तो परफॉर्म करने में भी विविधता मिलती है.वैसे मैंने बहुत थिएटर किया हुआ है. कई बार एक ही दिन में नाटक के दो से तीन शोज किए हैं.साल में एक ही नाटक के 550 शोज करने पड़ते थे. लगातार करते रहने से आपको किरदार पर कमांड आ जाता है. जब आपको कमांड आ जाता है तो एक्टर किरदार से खेलना शुरू कर देता है. थिएटर में भी शुरुआत के दस पंद्रह शो में आपको पता भी नहीं होता है कि दर्शक कैसे रिएक्ट करेंगे. आप उस डायलॉग को सही से बोलेंगी या नहीं, लेकिन 50 शोज के बाद आपको कोई डर नहीं रहता है. आप उस किरदार के साथ एकदम सहज हो जाते हैं. शांति मिश्रा के साथ यही हुआ है. अब मैं शांति मिश्रा के किरदार को एन्जॉय करती हूं.

चुनौतियों की बात करें तो एक्टर के तौर पर इस सीरीज का सबसे मुश्किल पहलू क्या रहा है?

हर किरदार गुल्लक में जिस तरह से बोलता है.उसका एक लहजा है.उनके बोलने का रिद्म है. एक शब्द आप इधर उधर नहीं कर सकते हैं. कई किरदार ऐसे होते हैं, जहां हम संवाद अपने अंदाज में बोल सकते हैं. बस उसकी सोच महत्वपूर्ण होती है, लेकिन गुल्लक में ऐसा नहीं है. उसमें आप अपने शब्द नहीं डाल सकते हैं. मुझे जो राइटर देता है.वही बोलना पड़ता गई. जब थोड़े जल्दी जल्दी में संवाद बोलने होते हैं, तो उसकी रिहर्सल ज़्यादा करनी पड़ती है. एक भी शब्द इधर उधर हुआ तो निर्देशक और लेखक सभी बोलने लगते हैं कि मैडम प्लीज ये शब्द मत तोड़िए. इसको वैसे ही बोलिए. यही चुनौती है और इसमें मजा भी आता है.

शांति मिश्रा से आप कितना मेल खाती हैं?

जब मैं बहुत युवा थी तो तो मुझे लगता था कि मुझे हाउसवाइफ नहीं बनना है. आप युवा होते हैं तो आप में एक ईगो भी होता है. मुझे लगता था कि चाहे कुछ भी हो जाए मुझे हाउस वाइफ नहीं बनना है. मैं घरेलू महिलाओं को बहुत कमजोर मानती थी .आज मैं अपनी सास या दोस्तों को देखती हूं जो हाउस वाइफ हैं.समझ आता है कि हाउस वाइफ का काम बहुत टफ होता है. मुझे लगता है कि वो मुझसे ज़्यादा स्ट्रांग है. मैंने शांति मिश्रा से बहुत कुछ सीखा है. इन तीन सीजनों को करते हुए उसने मुझे एक अच्छा इंसान बनाया है. वो हाउसवाइफ है, लेकिन उसकी अपनी सोच है. वो अपनी बात रखती हैं.

आप 25 सालों से काम कर रही हैं, लेकिन बीते पांच सालों पर नजर डालें तो ओटीटी की वजह से आप अभिनय का भरोसेमंद नाम बन गयी हैं, क्या ये लोकप्रियता ज़्यादा मोटिवेट करती है.

बिल्कुल मोटिवेट करती है.जब आपका काम इतने लोगों तक पहुंचता है.थिएटर करते हुए आपकी पहुँच ज़्यादा लोगों तक नहीं होती है.ओटीटी करते हो तो अपने ही देश नहीं जो बाहर के दर्शक हैं, उनतक पहुंचते हो.ऑडिएंस को ये सुविधा रहती है कि वो आपका काम कभी भी देख सकते हैं. 2014 में मैंने कोर्ट नाम की फ़िल्म की थी.मुझे आज तक उसके लिए मैसेज आते हैं.कुछ ही दिन हुए हैं.मुझे फ़िल्म फोटोग्राफ के लिए फ़ोन आया.उसमें मेरा किरदार बहुत छोटा था लेकिन लोगों को पसंद आया था.

क्या ऑन स्क्रीन अभिनय की पारी थोड़ी देर से शुरू करने का अफसोस होता है

1996 में मैंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से पास किया था.उसके बाद मैं लगातार काम कर रही हूं.मैंने मराठी नाटक ज़्यादा किए हैं. स्क्रीन का काम मैंने देर से शुरू किया.मुझे खुशी है कि मैंने देर से काम शुरू किया क्योंकि कोर्ट जैसी फ़िल्म की वजह से मैं लोगों की नज़र में आयी और मुझे कोर्ट मिली क्योंकि मैंने ज़्यादा काम स्क्रीन पर नहीं किया था. अगर मैंने बहुत ज़्यादा काम किया होता तो मेरी कास्टिंग ही नहीं होती थी. जो चीज़ें होती हैं.वो अच्छे के लिए होती हैं. जो मैं अभी तैयार हूं अलग अलग किरदार करने को वो शायद बीस साल पहले मैं नहीं होती थी.

आपके पति अतुल सर भी एक्टर हैं, एक दूसरे को किस तरह सपोर्ट करते हैं क्या प्रतिस्पर्धा की भावना कभी आती है?

हम बहुत सारी बातें करते हैं एक दूसरे के काम के बारे में या जो फिल्में देखते हैं ,उसके बारे में.हम पिछले 25 साल से साथ हैं. हमारी बहुत अच्छी दोस्ती है.उनका अनुभव मुझसे ज़्यादा है. मैं उनके काम को पसंद करती हूं. मुझे नहीं लगता है कि हम एक दूसरे के साथ कम्पीट करते हैं. हां ऐसा होता है कि जो मुझे पसंद आए जरूरी नहीं कि उनको भी पसंद आए.हमारे क्रिएटिव डिस्कशन होते हैं. कई बार उस समय झगड़े भी होते हैं.

आपका कोई ड्रीम रोल है

मेरा कोई ड्रीम रोल नहीं है क्योंकि वो सोचकर आप खुद को एक किरदार में फिट कर देते हैं.मैं अलग अलग लेखकों की सोच द्वारा जन्मे अलग अलग किरदार करना चाहती हूं. हां ,कुछ मेरे आइडल हैं, मैं जैसा काम करना चाहती हूं. मणिपुर की थिएटर एक्टर सावित्री है. संगीत अकादमी विनर शकुंतला बाई नवरकर जो लावणी डांसर हैं. ज्योति डोगरा एक कंटेम्परेरी एक्टर है. इन सब का काम मुझे बहुत प्रेरित करता है. मैं इनकी तरह काम करना चाहती हूं. एक्टिंग मेरे लिए सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं है.मैं देखती हूं कि ये मेरी ज़िंदगी में क्या फर्क लाने वाला है.

एक्टिंग के अलावा क्या चीज़ें आपको करना पसंद है

मैं बहुत कम काम करती हूं.मुझे अपने लिए समय रखना अच्छा लगता है. मुझे अलग अलग चीज़ें करना पसंद है. महाराष्ट्र के वाडा के सोंबाड़ा मेरा गांव है. मुझे वहां जाना बहुत पसंद है.दो कुत्ते,दो बिलियाँ है. मेरे अपने बच्चे नहीं हैं,गांव के बच्चों के साथ समय बिताना पसंद है.कभी हम उनके लिए आर्ट्स क्लास, कभी कहानियों की क्लास या दूसरे वर्कशॉप्स करते रहते हैं, साथ में फिल्में भी देखते हैं. 24 घंटे बम्बई में रहूं इसी माहौल में रहना मुझे पसंद नहीं है.मैं डायरेक्टर्स और एक्टर्स में ही घिरी रहना नहीं चाहती हूं मुझे लगता है कि गांव जाना वहां के लोगों से मिलना ये सब मुझे इंसान के तौर पर बेहतर बनाता है.

आपने कहा कि आप कम काम करती हैं इसकी कोई खास वजह है

आपको अपने स्वभाव अनुसार काम करना चाहिए.जैसे मेरा स्वभाव नहीं कि मैं रोज उठूं और शूटिंग पर जाऊं. मेरी दोस्त हैं जो डेली सोप करती हैं और खुश रहती हैं.मैं उनमें से नहीं हूं.इसमें बुराई नहीं है, लेकिन मुझसे नहीं हो पायेगा. विपासना को मैं फॉलो करती हूं. वो कहते हैं कि अपने स्वभाव के अनुसार काम करेंगे तो आप उसमें ज़्यादा कामयाब होंगे. मैं कम लेकिन अच्छा काम करना चाहती हूं.

आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स

मैं रंगबाज 3 में हूं .मैंने उसमें महत्वपूर्ण किरदार निभाया है. रेडिकल नाम की एक सीरीज की है. एंडेमॉल की वह सीरीज है. कौन से प्लेटफार्म पर आएगी इसका मुझे फिलहाल आईडिया नहीं है. इसके अलावा एक फ़िल्म भी कर रही हूं. जो जून से शूटिंग फ्लोर पर जाएगी

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
Home होम Videos वीडियो
News Snaps NewsSnap
News Reels News Reels Your City आप का शहर