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EXCLUSIVE : पहली मुलाकात में ही महेश से पूछा था कि विम्बलडन जीतना है- लिएंडर पेस

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ज़ी 5 पर रिलीज हुई डॉक्यु ड्रामा सीरीज ब्रेक पॉइंट टेनिस लीजेंडस लिएंडर पेस और महेश भूपति की दोस्ती, दुनिया की नंबर वन जोड़ी बनने और जोड़ी के टूटने की कहानी बयां करती है. लिएंडर पेस से उर्मिला कोरी की हुई बातचीत...

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ज़ी 5 पर रिलीज हुई डॉक्यु ड्रामा सीरीज ब्रेक पॉइंट टेनिस लीजेंडस लिएंडर पेस और महेश भूपति की दोस्ती, दुनिया की नंबर वन जोड़ी बनने और जोड़ी के टूटने की कहानी बयां करती है. लिएंडर पेस से उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…

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कब लगा कि अपनी कहानी लोगों को कहनी चाहिए?

अभी बीस साल से आफर तो आ रहे हैं मुझे और महेश दोनों को लेकिन मुझे लगा कि दो घंटे की फ़िल्म 20 साल की जर्नी को नहीं बयां कर पाएगी इसलिए हमने डॉक्यु सीरीज को चुना. इस सीरीज में मुझे सच बताना था ऐसा नहीं था कि सिर्फ अच्छा अच्छा बताना था बुरा भी बताना था. ये सिर्फ महेश और मेरी जोड़ी टूटने की कहानी है. यह हमारे दुनिया के नंबर वन जोड़ी बनने की भी कहानी है.

नितेश और अश्विनी को बतौर निर्देशक किस तरह पाते हैं?

नितेश भाई और अश्विनी मैम का शुक्रगुज़ार हूं जो उन्होंने हमारी कहानी में विश्वास हुआ. हमारी जब पहली मुलाकात हुई थी तो उन्होंने कहा था कि हम टेनिस के बहुत बड़े फैन हैं. वाकई नितेश भाई टेनिस के इनसाइक्लोपीडिया है. मेरे मैच से जुड़ी छोटी सी छोटी जानकारी मेरे से ज़्यादा उनको थी. मेरे और महेश का ही नहीं हमारे मम्मी डैडी ,हमारे प्रतिद्वन्दी सभी के सच पर उन्होंने फोकस किया. इस डॉक्यु सीरीज के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की है. जिन्होंने भी महेश और मुझे नंबर वन जोड़ी बनाने में योगदान दिया इस कहानी में सभी का सच है.

सच बताना कितना मुश्किल होता है?

हर आदमी जानता है कि सच बताना आसान नहीं होता है. हर आदमी का अपना सच होता है लेकिन पब्लिक डोमेन में हर आदमी को एक क्लास रखते हुए सच बताना पड़ता है. ज़ी 5 का शुक्रगुज़ार हूं जो उन्होंने इसे बखूबी अंजाम दिया.

महेश भूपति ने कहा कि इस डॉक्यु ड्रामा की शूटिंग के वक़्त सबसे मुश्किल उनके लिए कैमरे का सामना करना था आपके लिए क्या मुश्किल रहा?

मैं कैमरे के सामने सहज हूं. मुझे कैमरे से कोई दिक्कत नहीं है . कई बार कैमरे के सामने आया हूं. एक फ़िल्म भी बनायी है. मेरे लिए सबसे ज़्यादा मुश्किल था इस सीरीज की शूटिंग करना. मौजूदा पेंडेमिक के दौर में शूटिंग करना आसान नहीं था एक डर जेहन में रहता था. हमने ऋषिकेश में इसकी शूटिंग की।लगभग पूरे प्रोसेस में 18 महीने गए और सबसे अच्छी बात थी कि एक भी कोविड केस नहीं हुआ।बहुत एहतिहाद के साथ हमने शूटिंग की.

महेश भूपति के साथ पहली मुलाकात कैसी थी?

मैं उस वक़्त 18 साल का था और महेश 15 साल का. उससे पहली बार मिला तो ही मुझे लगने लगा था कि हम विम्बलडन जीत सकते हैं. दुनिया की नंबर वन जोड़ी बन सकते हैं। मैंने महेश को पहली मुलाकात में ही पूछ लिया था कि विम्बलडन जीतना है उसने कहा कि पागल हो क्या ? मैंने बोला पागल तो हूं तभी विम्बलडन जीतेंगे.

महेश भूपति की कौन सी बात आपको खास लगती है?

विम्बलडन जीतने की बात पर वो जितना हंसा उससे ज़्यादा उसने मेहनत की।महेश की मेहनत करने की क्वालिटी बहुत पसंद है. उसकी मेहनत ही थी जो हमने वर्ल्ड नंबर वन की रैंकिंग औऱ विम्बलडन को जीता. जितना भी अप्स एंड डाउन हुआ हो लेकिन हमारा एक दूसरे के प्रति सम्मान कभी कम नहीं हुआ. हम हमेशा भाई थे और भाई रहेंगे. मेरा से छोटा है तो कभी कभी खिंचाई भी कर देता हूं.

आपके पिता हॉकी खेलते थे और माँ बास्केटबॉल प्लेयर तो ऐसे में टेनिस कैसे आपकी ज़िंदगी बना?

मेरी माँ बंगाली और पापा गोवन थे जिस वजह से मैं बचपन से फुटबॉल बहुत खेलता था. दूसरे खेल भी खेलता था लेकिन सबसे ज़्यादा फुटबाल. जब मैं 12 साल का हुआ तो मैंने महसूस किया कि मैं फुटबाल में वर्ल्ड कप नहीं जीत पाऊंगा और ना ही ओलिम्पिक मेडल ला पाऊंगा. मैंने अपनी मम्मी डैडी और दोनों बहनों से बात की. मैंने कहा कि मुझे देश के लिए मेडल लाना है. मैं टेनिस खेलूंगा क्योंकि इसमें मेडल के लिए टीम पर भरोसा नहीं करना पड़ता बल्कि आप अकेले भी ला सकते हैं. मेरे डैडी हंसने लगे. मैंने कहा कि मुझे एक अच्छे टेनिस अकादमी में भर्ती करवाओ और एक साल का समय दो.उसके बाद क्या हुआ वो इतिहास है।जो सभी को पता है.

कैरियर में अब आपकी क्या प्लानिंग है?

अपना कैरियर देखकर मैं ये कह सकता हूं कि स्पोर्ट्स आसान नहीं है. खिलाड़ी अपने देश के लिए बहुत मेहनत करते हैं. इंटरनेशनल ट्रेवल करके कॉरपोरेट स्पांसरशिप ढूंढना बहुत मुश्किल होता है. 10 ओलिम्पिक मेडल जीतने के लिए देश में स्पोर्ट्स के बारे में जानकारी होनी चाहिए तो नेक्स्ट स्टेप वही होगा. लोगों को जागरूक करना होगा.

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(बीच में रोकते)अभी सिर्फ ब्रेक पॉइंट निजी जिंदगी पर मैं बात नहीं करना चाहता हूं.

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