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EXCLUSIVE : डॉक्टर बनने का ख्वाब रखती थीं हिमानी बुंदेला, एक एक्सीडेंट ने बदल दी जिंदगी

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अमिताभ बच्चन के क्विज शो कौन बनेगा करोड़पति 13 के इस सीजन की पहली करोड़पति हिमानी बुंदेला बन गयी हैं. दिव्यांग हिमानी बुंदेला का सपना दिव्यांग कम्युनिटी के लिए काम करना है ताकि उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सके. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत...

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अमिताभ बच्चन के क्विज शो कौन बनेगा करोड़पति 13 के इस सीजन की पहली करोड़पति हिमानी बुंदेला बन गयी हैं. दिव्यांग हिमानी बुंदेला का सपना दिव्यांग कम्युनिटी के लिए काम करना है ताकि उन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जा सके. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…

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कौन बनेगा करोड़पति के प्रोमो आने के बाद ज़िन्दगी कितनी बदल गयी है?

सेलिब्रिटी वाली फीलिंग हो रही है।जो भी मिलता है वो एक तस्वीर साथ में लेना चाहता है. मेरे भाई बहनों के दोस्त लोग बोलते हैं कि बस आप एक बार हाय बोल दो. मेरे घर के आसपास लोग चक्कर लगा रहे हैं फोटोज के लिए. मेरे नए पुराने सभी स्टूडेंट्स का लगातार मैसेज आ रहे हैं.

अपनी ज़िंदगी और संघर्ष के बारे में कुछ बताइए?

मैं उत्तर प्रदेश में आगरा के केंद्रीय विद्यालय नंबर वन में बच्चों को गणित पढ़ाती हूं. मैं मेन्टल मैथ पढ़ाती हूं. जिससे बच्चे बड़े से बड़े नंबर्स को चुटकी में गुना करके बता सकते हैं . मैं इस बात में हमेशा से बहुत यकीन करती हूं कि जीतने वाला कोई काम अलग नहीं करता बल्कि हर काम को अलग ढंग से करने में यकीन करता है. जिस दिन हमें ये बात समझ आ जाएगी हम हर चीज़ में कुछ नया ढूंढेंगे और करेंगे. मेरी ज़िंदगी बहुत ही उतार चढ़ाव वाली रही है. आंखों की रोशनी जाने के बाद मैं अपने मैथ्स के हल लिखकर करने के बजाय मुंह जबानी करती थी. मैंने कभी भी चुनौतियों को खुद पर हावी नहीं होने दिया.

आप दृष्टिबाधित हैं ,केबीसी में आने से पहले किस तरह की दुविधाएं मन में चल रही थी?

बहुत सारी दुविधाएं मेरे मन में फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट राउंड से पहले तक पूरी रात चलती रही थी. मुझे पता था कि मेरा मुकाबला उन प्रतियोगियों के साथ है जो नार्मल हैं. उनका लर्निंग सोर्स मुझसे ज़्यादा है. वो स्क्रीन पर देखकर आसानी से टच कर जवाब दे सकते हैं लेकिन फिर मेरे दिमाग में आया कि मेरे लिए हारने को कुछ नहीं है या तो नया सीखेंगे या जीतेंगे. जेहन में ये भी बात चल रही थी कि मैं अपने लिए नहीं बल्कि अपने परिवार और दिव्यांग समाज के लिए कुछ करने के सोच से आयी हूं तो मुझे कोशिश करनी ही है. हॉट सीट में पहुँचने पर भी मुझे लग गया कि ज़िन्दगी में जो कुछ भी चाहिए सब मिल गया. वैसे मुझे केबीसी के सेट पर पॉइंट वन परसेंट भी महसूस नहीं हुआ कि मैं देख नहीं सकती हूं. बहुत ही पॉजिटिव माहौल था. क्रू मेंबर बीच बीच में आकर मुझे बेस्ट ऑफ लक बोलते थे. अच्छा खेलने को कहते थे.

बिग बी के साथ अनुभव को किस तरह से परिभाषित करेंगी?

मैं जब 6 साल की रही होउंगी तो मैं अपने दोस्तों के साथ केबीसी खेला करती थी. मैं अमिताभ बच्चन बनती थी . इस गेम शो के साथ कुछ इस कदर मेरा जुड़ाव रहा है. जब बच्चन सर की आवाज़ सुनी तो मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती कि कैसा लगा था।ऐसा लग रहा था कि कोई सपना देख रही हूं. बच्चन सर ने मुझे अपने हाथों से पानी का ग्लास दिया. मैं और क्या मांग सकती थी. मेरे पापा ने कहा कि हम करोड़ो रूपये देकर भी इस अनुभव को नहीं पा सकते हैं.

केबीसी में आप कितने साल से किस्मत आजमा रही हैं?

दस साल से कोशिश कर रही हूं. हमेशा मैसेज फेल्ड ये मैसेज आता था. मैसेज डिलीवर ही नहीं होता था. सोनी लिव पर ऑनलाइन होने से चीज़ें आसान हो गयी और इस बार कॉल भी आ गया. शुरू में लगा कहीं फ्रॉड कॉल तो नहीं लेकिन बातचीत के बाद लगा सब सही है.

2011 में जब आपका एक्सीडेंट हुआ था उसके बाद आपने खुद को कैसे संभाला और सभी के लिए एक प्रेरणा बनीं?

मैं उस वक़्त सिर्फ 15 साल की थी. पूरी ज़िंदगी और उससे जुड़े ढेरों सपने मेरे सामने थे।मैं डॉक्टर बनना चाहती थी. एक्सीडेंट के बाद लगा कि सबकुछ खत्म हो गया. ज़िन्दगी में कुछ रहा ही नहीं. उससे पहले मैं किसी भी दृष्टिबाधित या दिव्यांग इंसान को जानना तो दूर मिली तक नहीं थी. जानकारी नहीं थी कि पढ़ाई भी कैसे आगे कर पाएंगे. वो कहते हैं ना भगवान के घर देर है अंधेर नहीं।रास्ता मिल ही गया. पूरी ज़िंदगी उस वक़्त बदल गयी जब मैंने लखनऊ में शंकुतला मिश्रा यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया.

आमतौर पर ये कहा जाता है कि दिव्यांग लोगों के लिए समाज भी मुश्किलें बढ़ाता है?

नेगेटिव लोगों बहुत मिले लेकिन पॉजिटिव की पावर ज़्यादा थी. नकारात्मक लोगों पर मैंने कभी ध्यान नहीं दिया. मैं यूनिवर्सिटी में गयी तो मुझे बहुत सपोर्टिव दोस्त मिले जिससे सीटीईटी मैंने पहली बार में ही क्वालिफाइड किया. बिना किसी कोचिंग की मदद से. प्रोफेसर की मदद से यूनिवर्सिटी में अच्छा रैंक होल्ड किया. केंद्रीय विद्यालय में आयी तो उसके पूरे स्टाफ ने सपोर्ट किया. मेरी फैमिली के साथ साथ सोसाइटी में भी बहुत सकारात्मक सपोर्ट मिला. मुझे महसूस ही नहीं होता कि ऐसा भी कोई चैलेंज है।जो मैं नहीं कर सकती हूं. मेरे तो घरवाले मुझसे हमेशा ही ये कहते हैं कि अरे तुमसे नहीं होगा तो किससे होगा. ये बातें सुनकर खुद पर भरोसा बढ़ जाता है.

इस बार केबीसी की टैगलाइन है सवाल कोई भी हो जवाब आप हो,आपकी लाइफ पर उठा कोई सवाल जिसका जवाब आपने दिया हो?

जब मैंने अपने ग्रेजुएशन कॉलेज में एडमिशन लिया था और कॉलेज का पहला दिन था. वहां मुझे देखकर कई लोगों ने कहा था कि आप कॉलेज आए क्यों. आपको तो घर पर बैठना चाहिए. कॉलेज की असेम्बली चल रही थी. उसी में लोगों ने मुझे ये कहा था. ये बातें मुझे बहुत बुरी लगी लेकिन मैंने उसी वक़्त तय किया कि मैं अब कॉलेज रोज आऊंगी. मुझे लोगों की ना को हां में बदलने में बहुत मज़ा आता है.

अपनी सफलता का श्रेय आप किसको देना चाहेंगी?

मेरे परिवार का इसमें बहुत बड़ा योगदान है. मेरे माता पिता,भाई बहन और जीजू सभी का मेरी नौकरी से लेकर केबीसी तक पहुँचने में उनका योगदान है. इसके अलावा मेरे दोस्तों और केंद्रीय विद्यालय के पूरे स्टाफ को.

क्या आपने सात करोड़ की राशि जीती है?

मैं उसके बारे में नहीं बात कर सकती हूं आपको उसके लिए 30 और 31 अगस्त का एपिसोड देखना होगा.

जीती हुई राशि का आप कैसे इस्तेमाल करेंगी?

हमारे देश में दिव्यांगों के लिए यूनिवर्सिटी हैं लेकिन कोचिंग नहीं है तो मुझे वो स्थापित करना है . उसमें आम बच्चों के साथ दिव्यांग बच्चे भी साथ में पढ़े. उसमें हम यूपीएससी, स्टेट पीसीएस की तैयारी करेंगे. ब्लाइंड बच्चों को मैं मैथ सीखाने का भी कोचिंग इंस्टिट्यूट शुरू करना चाहूंगी क्योंकि उन बच्चों में मैथ्स को लेकर एक फोबिया रहता है. इसके अलावा मुझे अपने पिता के लिए एक छोटा बिजनेस सेटअप भी तैयार करवाना है क्योंकि कोविड की वजह से मेरे पिता की नौकरी जा चुकी है.

आपकी हॉबीज क्या हैं?

मुझे मैथ्स के नए नए ट्रिक्स निकालना पसंद है. मुझे एंकरिंग करने का बहुत शौक है. शेरो शायरी भी बहुत पसंद है. अंक ज्योतिष को पढ़ना मुझे पसंद है.

क्या आप किसी और रियलिटी शो का हिस्सा भी बनना चाहेंगी अगर मौका मिला तो?

मुझे कपिल शर्मा शो में जाने का बहुत मन करता है. मेरा तो मन कई बार किसी रियलिटी शो को एंकरिंग करने का भी होता है.

आज आप कई लोगों की प्रेरणा बन चुकी हैं आपकी प्रेरणा कौन रहे हैं?

अरुणिमा सिन्हा जी की बायोपिक पढ़ी. हादसे के बाद भी उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी लगा अगर मैम कर सकती हैं तो हम क्यों नहीं. दृष्टिबाधित प्रांजल पाटिल जब आईएस बनी तो भी मुझे तगड़ा मोटिवेशन मिला था.

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