वेब सीरीज :डॉक्टर्स
निर्माता : सिद्धार्थ पी मल्होत्रा
निर्देशक : शहीर रजा
कलाकार :शरद केलकर,हरलीन सेठी,विवान शाह, विराफ पटेल,आमिर अली,वंश सेठी और अन्य
प्लेटफार्म :जियो सिनेमा
रेटिंग : ढाई
doctors web series review :हिचकी, महाराज जैसी फिल्मों के निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने टेलीविजन धारावाहिकों में बतौर निर्माता अपनी शुरुआत की थी. टेलीविजन के पॉपुलर मेडिकल ड्रामा शो संजीवनी और दिल मिल गए से उनका नाम जुड़ा हुआ है.एक बार फिर सिद्धार्थ पी मल्होत्रा मेडिकल ड्रामा की कहानी को वेब सीरीज डॉक्टर्स के साथ लेकर आये हैं. जो बताती है कि डॉक्टर्स को भगवान् और शैतान की इन दो श्रेणियों से अलग इंसान समझने की जरुरत है. इमोशन और रोमांच से कही गयी यह मेडिकल ड्रामा वाली कहानी दर्शकों को बांधने में कामयाब है हालांकि सीरीज कई बार टेलीविजन शो संजीवनी और दिल मिल गए की भी याद दिलाती है खासकर रोमांटिक एंगल और उससे जुड़े मेलोड्रामा की वजह से,लेकिन यह सीरीज मनोरंजन करती है.इससे इंकार नहीं है.
डॉक्टर्स की जिंदगी से जुड़ी जद्दोजहद की है कहानी
यह कहानी डॉक्टर ईशान (शरद केलकर ) की है, जो एक प्रसिद्ध अस्पताल का चर्चित न्यूरोसर्जन है.उसी अस्पताल में रेजीडेंट डॉक्टर के तौर पर नित्या वासु (हरलीन सेठी )की एंट्री होती है, जो इस अस्पताल में डॉक्टर बनने से ज्यादा ईशान से बदला लेने के लिए आयी है. उसे लगता है कि ईशान की लापरवाही की वजह से उसका भाई धवल (आमिर अली )अपाहिज हो गया है. ईशान से नफरत करने वाली नित्या सीरीज के बढ़ने के साथ मेडिकल से जुडी चुनौतियों से जूझते हुए ईशान के प्यार में भी पड़ जाती है, लेकिन यह इश्क़ आसान नहीं है,क्योंकि ईशान की सगाई पहले से हो चुकी है. वैसे यह सीरीज सिर्फ इन दोनों की कहानी नहीं है बल्कि यह सीरीज नित्या सहित अस्पताल में आये नए रेजीडेंट डॉक्टर्स की भी कहानी है. जिनकी निजी जिंदगी के साथ -साथ प्रोफेशनल चुनौतियों को भी दस एपिसोड की इस कहानी में बखूबी जोड़ा गया है.जिसमें डॉक्टर्स के कामकाज को सीरीज दिखाती है .
सीरीज की खूबियां और खामियां
वेब सीरीज डॉक्टर्स अपनी शुरूआती 15 मिनट में एक बदले की कहानी लगती है, लेकिन यह बदले की कहानी से ज्यादा डॉक्टरी के पेशे में उतार -चढ़ाव की मूल कहानी है. जिसे अलग -अलग सिचुएशन के साथ कहानी में बखूबी गुंथा गया है. यह सीरीज डॉक्टरी पेशे को एक अलग नजरिये से देखने को मजबूर करती है.एक डॉक्टर कहता है कि मैं भी इंसान हूं. कोई मशीन नहीं, जो हर काम परफेक्ट करूंगा. इसी संवाद में इस सीरीज का सार है.इस सीरीज में ड्रामे के तड़के के साथ अलग अलग मेडिकल कैसेज को भी दिखाया है.जैसे सेलिब्रिटी लोगों के साथ अलग व्यवहार से लेकर इमरजेंसी वार्ड में किस तरह की सिचुएशन होती है के साथ यह भी दिखाया गया है कि किसी की मौत से डॉक्टर्स किस तरह जूझते हैं.मरीज ही नहीं बल्कि डॉक्टर्स की भी सायकोलोजी को यह शो दिखाती है.मेडिकल टर्म्स के साथ -साथ मीडिया को भी कहानी में जगह दी गयी है.खामियों की बात करें तो स्क्रिप्ट में नर्स को उतनी तवज्जो नहीं मिली है, जितनी की होनी चाहिए थी क्योंकि हम सभी इस बात को जानते हैं कि कोई भी अस्पताल सुचारु रूप से चलने के लिए नर्स की कितनी अहम भागीदारी होती है, लेकिन यहां अनदेखी हुई है. सिवाय हड़ताल करने के अलावा उनको कहानी से नहीं जोड़ा गया है. इसके साथ ही सीरीज में क्रिएटिव लिबर्टी भी जमकर ली गयी है. इमरजेंसी हालात में हमेशा डॉक्टर्स ही एम्बुलेंस के पास दिखते हैं,जो कि संभव नहीं है. यह हम सभी जानते हैं.इसके अलावा कई पहलुओं पर क्रिएटिव लिबर्टी ली गयी है. वैसे शरद और हरलीन दोनों ने ही ही अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है, लेकिन उनके बीच की केमिस्ट्री मिसिंग लगती है,जो कि कहानी की जरूरत थी. दूसरे पहलुओं की बात करें तो सिनेमेटोग्राफी अच्छी है खासकर सीन्स की फ्रेमिंग अच्छी हुई है. ऑपरेशन के दौरान अलग -अलग एंगल के साथ शॉट देखने को मिलता है. बीजीएम भी अच्छा बन पड़ा है.संवाद किरदारों के साथ न्याय करते हैं.सीरीज का अंत क्लिफहेंगर मोमेंट पर होता है, जिससे यह बात साफ है कि दूसरा सीजन भी आनेवाला है.
शरद केलकर ने शो को किया है लीड
अभिनय की बात करें तो शरद केलकर बहुत सहजता के साथ अपने किरदार को आत्मसात किया है.उनकी संवाद अदाएगी उनके किरदार को और प्रभावी बनाया है. हरलीन सेठी ने कोहरा सीरीज के बाद इस सीरीज में भी अपनी छाप छोड़ी है.विराफ पटेल और विवान शाह भी अपने अभिनय से सीरीज में अलग रंग भरते हैं. आमिर अली ने अपनी भी भूमिका के साथ न्याय किया है हालांकि स्क्रीन पर उन्हें कम स्पेस मिला है.बाकी के कलाकारों का भी काम अच्छा है.