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Bombay Begums Film Review : कहानी कमज़ोर लेकिन अभिनय दमदार है, यहां पढ़ें रिव्यू

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Bombay Begums Film Review: लिपस्टिक अंडर माय बुरखा, डॉली किट्टी और चमकते सितारे के बाद लेखिका और निर्देशिका अलंकृता श्रीवास्तव एक बार फिर उन महिलाओं की कहानी को लेकर आ गयी हैं जो पितृसत्ता समाज से अपने अस्तित्व, अपने सपनों, अपनी महत्वकांक्षाओं की लड़ाई लड़ रही हैं.

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Bombay Begums Film Review

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वेब सीरीज : बॉम्बे बेगम्स

ओटीटी प्लेटफार्म : नेटफ्लिक्स

कलाकार : पूजा भट्ट, अमृता सुभाष, शहाना गोस्वामी, प्लाबिता बोरठाकुर, आध्या आनंद, मनीष चौधरी, राहुल बोस, इमाद शाह, विवेक गोमबर, नौहीद

निर्देशक : अलंकृता श्रीवास्तव, बोरनीला चटर्जी

एपिसोड्स : 6

रेटिंग : ढाई

लिपस्टिक अंडर माय बुरखा, डॉली किट्टी और चमकते सितारे के बाद लेखिका और निर्देशिका अलंकृता श्रीवास्तव एक बार फिर उन महिलाओं की कहानी को लेकर आ गयी हैं जो पितृसत्ता समाज से अपने अस्तित्व, अपने सपनों, अपनी महत्वकांक्षाओं की लड़ाई लड़ रही हैं.

बॉम्बे बेगम्स पांच महिलाओं की कहानी हैं जो अलग अलग आयु और वर्ग की हैं. जिसमें13 साल की स्कूल में पढ़ने वाली बच्ची शाई(आद्या) से लेकर 49 साल की बैंक की सीईओ रानी (पूजा भट्ट) है. आलीशान कॉरपोरेट आफिस में काम करती हुई महिला आएशा(प्लाबिता) हो या देह के बाज़ार में काम करने वाली स्त्री लिली( अमृता )दोनों की चाह इज़्ज़त से काम करने की है.

फातिमा ( शाहना गोस्वामी) की कहानी परिवार और कैरियर के बीच झूलती दिखती है. कुलमिलाकर यह पांचों महिलाओं महिलाएं अपने सपनों और रिश्तों के लिए समाज के मानदंडों से लड़ रही हैं. छह एपिसोड की इस सीरीज में मूल रूप से मी टू मुद्दे पर हैं.

वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न के संवेदनशील लेकिन ज्वलंत मुद्दे को इस सीरीज की कहानी अपने किरदारों के ज़रिए रखती है लेकिन इस मुद्दे के साथ साथ समलैंगिक संबंध, बेवफाई, लिव इन रेलशनशिप,यौन उत्पीड़न, प्रेग्नेंसी, मेनोपॉज सहित कई दूसरे मुद्दे भी उठाए गए हैं लेकिन बहुत कुछ एक साथ दिखाने के चक्कर में सीरीज का प्रभाव तीसरे एपिसोड के बाद कमतर होता चला गया है.

एपिसोड की संख्या हालांकि 6 हैं लेकिन एक घंटे का समय ज़्यादा है. कहानी जबरन खिंचती जान पड़ती है. स्त्री मन को उस तरह से यह फ़िल्म नहीं दिखा पायी है जैसे शुरुआती एपिसोडस ने उम्मीद जगायी थी. दैहिक पहलू कहानी में ज़्यादा हावी रहा.

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अभिनय की बात करें तो एक अरसे बाद अभिनेत्री पूजा भट्ट अभिनय करती नज़र आईं हैं. वे शानदार रही हैं. अपने किरदार की बेबसी, दर्द, मजबूती को उन्होंने बखूबी जिया है. संवाद से ज़्यादा उनकी खामोशी बहुत कुछ कह गयी है. उन्हें अभिनय करते रहना चाहिए. शाहना गोस्वामी ने एक बार फिर उम्दा अभिनय से अपने किरदार को खास बनाया है. अमृता सुभाष भी अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रही हैं.

प्लाबिता आएशा अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं तो आद्या आनंद भी अपनी भूमिका से ध्यान खींचने में कामयाब रही हैं. बाकी के किरदारों ने भी अपने हिस्से के किरदारों को बखूबी जिया है. दूसरे पहलुओं की बात करें तो सीरीज के संवाद अच्छे बन पड़े हैं हालांकि अंग्रेज़ी भाषा की अधिकता है. कुलमिलाकर कहानी की खामियों के बावजूद यह सीरीज अभिनेत्रियों के दमदार अभिनय के लिए देखी जा सकती है.

Posted By : Budhmani Minj

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