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100 Years of Mohammed Rafi: 1 रुपये में गाने से लेकर पड़ोसी को पैसे भेजने तक, रफी साहब की दिलचस्प बातें

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100 Years of Mohammed Rafi: प्रख्यात गायक मोहम्मद रफी की आज 100वीं जन्मतिथि है. इस मौके पर आज हम रफी साहब के कुछ दिलचस्प किस्सों से आपको रूबरू करवाएंगे.

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100 Years of Mohammed Rafi: अभी ना जाओ छोड़ कर क्या हुआ, तेरा वादा, लिखे जो खत तुझे, चुरा लिया है तुमने जो दिल को जैसे कई सुपरहिट गानों में अपनी शानदार आवाज देने वाले सुरों के सरताज मोहम्मद रफी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. रफी साहब के प्रशंसक सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हैं. आज रफी साहब की 100वीं जन्मतिथि है. इस मौके पर हम उनकी जिंदगी से जुड़े कई दिलचस्प किस्से आपको बताएंगे.

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फकीर की नकल उतार कर करते थे रियाज

मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर, 1924 को कोटला सुल्तान सिंह, अमृतसर में हुआ था. रफी साहब 6 भाई बहनों में दूसरे सबसे बड़े भाई थे, जिन्हें घर में प्यार से फिक्को कहकर पुकारा जाता था. मोहम्मद रफी एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जहां गाने बजाने का कोई रिवाज नहीं था, लेकिन रफी साहब अलग थे. वह अपने गांव की गलियों में गाने वाले एक फकीर को देखकर इतने प्रभावित हुए कि वह हर दिन उसे सुनने के लिए उसी जगह इंतजार करते थे और फिर बाद में उस फकीर की नकल उतारते हुए रियाज किया करते थे.

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13 साल की उम्र में दिया लाइव परफॉर्मेंस

मोहम्मद रफी ने 1937 में महज 13 साल की उम्र में ऑल-इंडिया एक्जीबिशन, लाहौर के दौरान अपना पहला लाइव परफॉर्मेंस दिया था. उन्हें यह मौका संयोग से मिला था. दरअसल, स्टेज पर अचानक बिजली चले गई थी, जिसके बाद उस जमाने के मशहूर गायक कुंदनलाल सहगल ने स्टेज पर गाने से मना कर दिया था. इसके बाद कार्यक्रम के आयोजकों ने मोहम्मद रफी से परफॉर्म करने के लिए कहा था. उनकी आवाज की सराहना दर्शकों के साथ-साथ एल सहगल ने भी की थी. उन्होंने कहा था कि यह लड़का एक दिन बहुत बड़ा गायक बनेगा. इसी के बाद निर्देशक श्याम सुंदर ने उन्हें फिल्मों में गाने का ऑफर दिया और उन्होंने अपना पहला गाना गुल बलोच फिल्म का गाना “गोरिये नी, हीरिये नी” गाया था.

1 रुपए में गाए गीत

मोहम्मद रफी ने अपनी शानदार आवाज के दम पर नाम और शोहरत कमाया, लेकिन उनके बारे में एक बहुत खास बात थी कि वह बहुत ही शर्मीले स्वभाव के व्यक्ति थे. वह इतने भोले-भाले थे कि उन्होंने कभी भी संगीतकार से यह नहीं पूछा कि उन्हें गाने के लिए कितने पैसे मिलेंगे, बल्कि कई दफा तो उन्होंने 1 रुपए लेकर भी गीत गाए हैं. शर्मीले होने के साथ-साथ वह काफी दयालु भी थे. एक बार उनके मोहल्ले में जब एक विधवा आर्थिक तंगी से गुजर रही थी, तो उसकी मदद करने के लिए मोहम्मद रफी ने फर्जी नाम से उसे पैसे भेजना शुरू कर दिया था. इस बात का पता तब चला जब वह महिला पैसे मिलने बंद होने पर पोस्ट ऑफिस गई.

अंतिम संस्कार में पहुंचे 10 हजार से ज्यादा लोग

मोहम्मद रफी ने 31 जुलाई 1980 को हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह दिया था. उनके देहांत के बाद उनके अंतिम संस्कार में 10 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई थी. इसके साथ ही भारत सरकार ने भी दो दिनों का सार्वजनिक शोक मनाया था.

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