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83 Movie Review: 1983 क्रिकेट विश्वकप सपनों के सच होने की कालजयी कहानी सभी को देखनी चाहिए

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83 Movie Review: यह फ़िल्म 1983 के क्रिकेट विश्वकप में भारतीय टीम की विजयगाथा की कहानी पर आधारित है. कबीर खान ने रुपहले परदे पर अपनी फिल्म के ज़रिए 38 साल पहले हर भारतीय की स्मृति में अंकित उस ऐतिहासिक क्षण से जुड़े जादू को दोबारा शाहकार कर दिया है.

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फ़िल्म-1983

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निर्देशक – कबीर खान

कलाकार – रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, साकिब सलीम, साहिल चड्ढा, पंकज त्रिपाठी,ताहिर राज भसीन, जतिन सरना,चिराग पाटिल,हार्डी संधू,एमी विर्क, आदिनाथ कोठारे,नीना गुप्ता, दिनकर शर्मा, धैर्य करवा और अन्य

प्लेटफार्म -सिनेमाघर

रेटिंग -चार

कबीर खान की यह फ़िल्म 1983 के क्रिकेट विश्वकप में भारतीय टीम की विजयगाथा की कहानी पर आधारित है. यह बात सर्वविदित थी लेकिन 83 का वो गौरान्वित इतिहास जब परदे पर जीवंत होने लगता है तो खुशी से नम हुई आंखों के साथ तालियां और सीटियां बजने लगती है. सीना गर्व से फूल जाता है. सिनेमा की यही ताकत है और निर्देशक कबीर खान ने रुपहले परदे पर अपनी फिल्म के ज़रिए 38 साल पहले हर भारतीय की स्मृति में अंकित उस ऐतिहासिक क्षण से जुड़े जादू को दोबारा शाहकार कर दिया है. जिससे आज की पीढ़ी और आनेवाली तमाम पीढियां उस गौरवशाली क्षण की साक्षी बन सकती हैं.

फ़िल्म की कहानी की शुरुआत होती है कि भारतीय टीम के क्रिकेट विश्वकप में शिरकत करने से. किसी को इस टीम से उम्मीद नहीं है. विदेशी ही नहीं अपने देश के लोग,क्रिकेट बोर्ड से लेकर हर कोई इस टीम को निचले स्तर की टीम समझता है. इस टीम की फाइनल मैच से पहले टिकटें बुक थी. ऐसे में किस तरह से 83 की क्रिकेट टीम ने इतिहास रचा. यह फ़िल्म उसी कालखंड को जीती है. 1983 की जीत मामूली जीत नहीं थी. उस जीत के हर पल को जीने के साथ साथ उससे जुड़े क्रिकेटर्स के मिजाज ,जुगलबंदी, संघर्ष सभी को यह फ़िल्म दर्शाती है.

आज क्रिकेट से पैसा,नाम,प्रसिद्धि,ग्लैमर सबकुछ जुड़ा है लेकिन उस वक़्त क्रिकेटर्स आर्थिक तंगी से गुजरते थे. उन्हें बेसिक सुविधाएं तक नहीं मिल पाती थी. मैनेजर मान सिंह के पास खिलाड़ियों का सामान भारत से इंग्लैंड भेजने के लिए उधार पर पैसे लिए थे. होटल रूम में कई खिलाड़ियों को एक साथ रूम शेयर करना पड़ता था. वर्ल्ड कप टीम का हिस्सा बनें खिलाड़ी के पास अच्छे जूते तक नहीं थे. आज क्रिकेटर से हर लड़की शादी करना चाहती है लेकिन उस वक़्त क्रिकेटर्स को इतनी कम सैलरी मिलती थी कि सम्पन्न परिवार अपनी बेटियों का रिश्ता क्रिकेटर्स से करने में हिचकते थे. कपिल देव जब हरियाणा से मुम्बई ट्रेनिंग के लिए आए थे तो उन्हें कैम्प में दो रोटियां मिलती थी. क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया में तारापोर से भिड़कर उन्होंने दो रोटियों को चार रोटियां करवायी थी.

फ़िल्म का लेखन बेहतरीन है. क्रिकेट टीम गेम है और फ़िल्म में भी टीम गेम को दर्शाया गया है. किसी एक पर फोकस नहीं हुआ है. कपिल देव की वर्ल्ड रिकॉर्ड वाली पारी हो, जिम्मी का बैट और बॉल से कमाल का खेल हो, रोजर बिन्नी का मैजिक स्पैल हो या किरमानी का कैच हो. हर यादगार पल को फ़िल्म में बखूबी पिरोया गया है.

निर्देशक के तौर पर कबीर खान ने जिस तरह से रियल फुटेज का इस्तेमाल किया है. उसके लिए उनकी तारीफ की जानी चाहिए. फ़िल्म के पहले ही कुछ मिनट में आप खिलाड़ियों से कनेक्ट हो जाते हैं. पासपोर्ट सीक्वेंस दिलचस्प है. फ़िल्म का तकनीकी पक्ष बहुत मजबूत है. फ़िल्म में यह भी दिखाया गया है कि क्रिकेट किस तरह से लोगों को आपस में जोड़ता है. कौमी एकता को क्रिकेट बढ़ावा देता है.

अभिनय की बात करें तो रणवीर सिंह ने कपिल देव के सिर्फ लुक को ही नहीं बल्कि उनका लहजा,बॉडी लैग्वेज से लेकर क्रिकेट के खेल में उनकी महारत को भी परदे पर आत्मसात कर लिया था. कई बार लगता है कि परदे पर हम युवा कपिल देव को ही देख रहे हैं. जो एक्टर के तौर पर रणवीर की काबिलियत को बखूबी बयां करता है. दीपिका कैमियो भूमिका में अपनी छाप छोड़ती है तो पंकज त्रिपाठी मान सिंह की भूमिका में अलग रंग भरते हैं. खिलाडियों की भूमिका में नज़र आए सभी एक्टर्स अपने लुक से लेकर क्रिकेट स्किल सभी में परफेक्ट थे भारतीय ही नहीं वेस्ट इंडीज के खिलाड़ियों की भी कास्टिंग परफेक्ट रही है.

फ़िल्म का गीत संगीत जोश और जुनून से भरा हुआ है. लहरा दो गीत देशभक्ति के जज्बे को बखूबी जगाता है. फ़िल्म के बाकी के सभी गाने कहानी के अनुरूप है. वह भी एक किरदार की तरह कहानी को आगे बढ़ाते हैं. फ़िल्म के संवाद उम्दा है. 35 साल पहले हमलोग आज़ादी जीते लेकिन इज़्ज़त जीतना बाकी है. कुलमिलाकर यह फ़िल्म हर भारतीय को देखनी चाहिए.

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