13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 07:03 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

200 Halla Ho Review: समाज और सिस्टम के कलेक्टिव फेलियर से जन्मे आक्रोश को दिखाती फिल्म

Advertisement

एक आम औरत को अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी को सम्मान के साथ जीने के लिए कई तरह के संघर्ष से जूझना पड़ता है और ये औरतें तो आम भी नहीं हैं. हमारे यहां सबसे पहले आते हैं खास लोग फिर आम लोग फिर मामूली लोग फिर गरीबी रेखा के नीचे दबी करोड़ों की भीड़.

Audio Book

ऑडियो सुनें

200 Halla Ho Review

- Advertisement -

फ़िल्म -200 हल्ला हो

निर्देशक- सार्थक दासगुप्ता

कलाकार- अमोल पालेकर, रिंकू राजगुरु, साहिल, बरुन सोबती, उपेंद्र लिमये और अन्य

रेटिंग – साढ़े तीन

एक आम औरत को अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी को सम्मान के साथ जीने के लिए कई तरह के संघर्ष से जूझना पड़ता है और ये औरतें तो आम भी नहीं हैं. हमारे यहां सबसे पहले आते हैं खास लोग फिर आम लोग फिर मामूली लोग फिर गरीबी रेखा के नीचे दबी करोड़ों की भीड़. उसके नीचे आते हैं दलित और उसके भी सबसे नीचे आती हैं दलित औरतें. फ़िल्म का ये संवाद भारतीय समाज के कलेक्टिव फेलियर जातिवाद के दर्द को बखूबी सामने लेकर आता है.

फ़िल्म 200 हल्ला हो दलित समाज की उपेक्षा, दर्द,अनदेखी के साथ साथ उनके आक्रोश को सामने लाती है. यह फ़िल्म औरतों को सिर्फ पीड़िता नहीं बल्कि उनके ताकतवर होने की बात भी रखती है.

फ़िल्म की कहानी की बात करें तो यह फ़िल्म सत्य घटना पर आधारित है. 2004 में महाराष्ट्र के नागपुर में 200 दलित महिलाओं ने एकजुट होकर नागपुर की अदालत में दुष्कर्मी को पीट पीट कर मार खुद के साथ न्याय किया था. यह फ़िल्म उसी घटना का फिल्मी रूपांतरण हैं. दुष्कर्मी की गिरफ्तारी के बावजूद 200 महिलाओं की भीड़ ने कानून क्यों अपने हाथ में ले लिया. अगर भीड़ इस तरह न्याय का फैसले करने लगी तो अदालतों की क्या ज़रूरत है. इन सभी सवालों के जवाब ये फ़िल्म दे जाती है.

फ़िल्म में अमोल पालेकर और रिंकू राजगुरु के किरदारों के ज़रिए दलित समाज की दो धुरियों पर भी बात की गयी है. अमोल पालेकर का किरदार विट्ठल दांगड़े एक रिटायर्ड जज है. जिसने अपनी सामाजिक तरक्की के बाद अपनी जड़ों को छोड़ दिया और रिंकू राजगुरु का किरदार आशा सुर्वे पढ़ लिखकर अकेले आगे बढ़ जाने के बजाय अपने समाज को साथ आगे बढ़ना चाहती है.

फ़िल्म में उनका एक संवाद भी है “वहाँ सब अच्छा है लेकिन सच नहीं है मुझे यहां रहकर अपना सच अच्छा करना है.” आखिरकार समाज का यह स्याह चेहरा विट्ठल दांगड़े को उनकी जड़ों की ओर लौटने को मजबूर कर ही देता है. इस कहानी में पुलिस और राजनीति को भी लपेटा गया है जो अपने फायदे के लिए दलितों की अनदेखी करते आए हैं. तमाशबीन से ज़्यादा वे कुछ नहीं है.

दलित नेताओं को भी नहीं बख्शा गया है और ना ही महिलाओं को न्याय दिलवाने वाली संस्थाओं को. फ़िल्म में दलित और ब्राह्मण प्रेम कहानी की झलक भी देखने को मिलती है. फ़िल्म की कहानी अपनी बेबाकी और स्पष्टवादिता से दलित महिला मुद्दे को रखती है लेकिन समाज के किसी भी खास वर्ग या जाति के खिलाफ बात नहीं करती है.यह पूरे समाज और सिस्टम के कलेक्टिव फेलियर को दिखाती है.

फ़िल्म के संवाद फ़िल्म के विषय को मजबूती देते हैं. “हमें आदत हो गयी है . सुबह चाय के साथ ऐसी खबरें पढ़ने की और कुछ ना महसूस करने की. सिर्फ दुष्कर्मी ने ही इन औरतों का बलात्कार नहीं किया है बल्कि हमारे इस माइंडसेट ने भी इन औरतों के साथ बलात्कार किया है.” “जेल बाहर की दुनिया से अच्छा है यहां ना तो कोई ब्राह्मण है ना दलित” “जाति के बारे में क्यों ना बोलूं सर जब हर समय हमें हमारी औकात याद दिलायी जाती है.” जैसे संवाद कहानी औऱ किरदार खास बना रहे हैं.

अभिनय की बात करें तो अभिनेता अमोल पालेकर ने एक अरसे बाद अभिनय में वापसी की है. हमेशा की तरह उन्होंने अपने किरदार के साथ बखूबी न्याय किया है. उनकी सहज संवाद अदाएगी उनके किरदार के साथ क्लाइमेक्स को भी मजबूत बना गया है. ये कहना गलत ना होगा. सैराट फेम रिंकू राजगुरु का काम भी बढ़िया है. साहिल चड्ढा ने सीमित स्क्रीन स्पेस में अपने किरदार के वहशीपन को बखूबी दर्शाया है. उनके किरदार को देखकर घिन्न आती है।एक नेगेटिव एक्टर की यही जीत भी है.

उपेंद्र लिमये, बरुन सोबती, इंद्रनील सेनगुप्ता,फ़्लोरा सैनी सहित बाकी के कलाकार भी अपनी भूमिका में जमें हैं. फ़िल्म में कुछ कमियां भी रह गयी है . एडिटिंग पर थोड़ा काम करने की ज़रूरत थी. फ़िल्म थोड़ी स्लो हो गयी है लेकिन 200 हल्ला हो इन कुछ खामियों के बावजूद आपको असहज कर छोड़ने का माद्दा रखती है. आखिर में कुछ फिल्में सिर्फ मनोरजंन भर के लिए नहीं होती है. वो समाज के लिए ज़रूरी होती है इसलिए असल घटना पर आधारित यह फ़िल्म सभी को देखनी चाहिए.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें