खास बातचीत: बिहार के संजय सोनू का थियेटर से फिल्म निर्देशक बनने का सफर

जो मजा थियेटर में है, वह कहीं नहीं है. यह कहना है अभिनेता निर्देशक संजय सोनू का. पहले थियेटर, फिर छोटा पर्दा और उसके बाद फिल्म में अभिनय व अंत में फिल्म का निर्देशन करने वाले संजय कहते हैं, कुछ करने का जुनून है तो मंजिल जरूर मिलेगी. क्योंकि काम ही आपकी पहचान होती है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 6, 2019 12:24 PM

जो मजा थियेटर में है, वह कहीं नहीं है. यह कहना है अभिनेता निर्देशक संजय सोनू का. पहले थियेटर, फिर छोटा पर्दा और उसके बाद फिल्म में अभिनय व अंत में फिल्म का निर्देशन करने वाले संजय कहते हैं, कुछ करने का जुनून है तो मंजिल जरूर मिलेगी. क्योंकि काम ही आपकी पहचान होती है और इसी से आप जाने जाते हैं. पेश है संजय से सुजीत कुमार की हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

-आपने थियेटर से फिल्म का सफर कैसे तय किया?

मैं बिहार से ही हूं और पटना के कुम्हरार का रहने वाला हूं. जहां तक फिल्मों में जाने की बात है तो यह मेरा सपना रहा है. बचपन से ही थियेटर मुझे काफी आकर्षित करता रहा है. जब सक्षम हुआ तो थियेटर करना शुरू कर दिया. 1986 से लगातार थियेटर करता रहा. इसी बीच में एनएसडी जाने की तमन्ना हुई. 1994 में एनएसडी चला गया. 97 में एनएसडी से निकला और उसी साल मुंबई चला गया. थोड़ा संघर्ष का भी दौरा चला. कई जगह गया. इसी क्रम में फिल्म शूल की शूटिंग शुरू होने वाली थी. उसमें रोल मिला. विधायक के भाई का रोल था. उसे किया. उस रोल को लोगों ने नोटिस किया.

-इसके बाद कहां-कहां काम किये? फिल्म या छोटे पर्दे पर कैसे काम मिला?
‘शूल’ का रोल लोगों ने नोटिस किया था. उसके बाद फिल्म गुलाल में रोल मिला. उसमें भी लोगों ने नोटिस किया. राम गोपाल वर्मा जंगल बना रहे थे. उसमें भी मौका मिला. फिर ‘मातृभूमि’, ‘नेशन विदाउट वूमन’ फिर देव बेनेगल की फिल्म ‘स्पिल्ट वाइड ओपेन’ में भी काम किया. सबमें अलग-अलग रोल था. जिस मैंने पूरी शिद्दत से निभाया. छोटे पर्दे पर भी इसी क्रम में काम मिलना शुरू हुआ. फिर स्वराज, इतिहास, आतिश में काम किया. इसमें स्मृति ईरानी ने भी साथ में काम किया.

-थियेटर में काम करना है या फिर फिल्म में. इसे आपने कैसे तय किया?
मुझे काम करना था. चाहे वह थियेटर हो, फिल्म हो या फिर छोटा पर्दा. मैंने इसी मंत्र पर काम किया. जहां तक तय करने की बात है. टीवी से ज्यादा मुझे सिनेमा में काम करने में मजा आता है और सिनेमा से ज्यादा मुझे थियेटर में काम करना अच्छा लगता है. मैं बस काम को इंज्वॉय करता हूं.

-घर वालों का कैसा सपोर्ट रहा?
मैंने अपने निर्णय के बारे में घरवालों को पहले ही बता दिया था कि मुझे एनएसडी में जाना है. घरवालों ने मेरे हर निर्णय पर सपोर्ट किया.

-निर्देशन में कैसे उतरे? बिहार में शूटिंग का क्या अनुभव रहा?
अपने राज्य को लेकर लोगों की अलग सोच रही है. मुझे उसे बदलना था. हमारे पास भी संवेदना है. हमारे पास भी प्रतिभा है. बस इसी सोच को लेकर फिल्म ‘डेथ ऑन संडे’ को बिहार में शूट करने का फैसला किया. फिल्म के निर्माता, निर्देशक, हीरो अन्य अभिनेता सब के सब बिहार से ही हैं. यह एक ब्लैक कॉमेडी है. जो हंसते-हंसाते बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती है. पूरी फिल्म की शूटिंग पटना में हुई है. जल्द ही यह लोगों के सामने होगी.

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