चंबल में बिखरी कश्मीर की वादियों जैसी रौनक

मुरैना (मध्यप्रदेश) : करीब तीन दशक पहले डकैतों के लिए मशहूर चंबल घाटी में इन दिनों कश्मीर की वादियों-सी रौनक बिखरी है. वजह है सरसों की फसल. सरसों के पीले फूलों की वजह से यहां का नजारा इन दिनों कश्मीर की वादियों जैसा है. इसे भी पढ़ें : धनबाद स्टेशन पर 100 फुट की ऊंचाई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 6, 2019 12:28 PM

मुरैना (मध्यप्रदेश) : करीब तीन दशक पहले डकैतों के लिए मशहूर चंबल घाटी में इन दिनों कश्मीर की वादियों-सी रौनक बिखरी है. वजह है सरसों की फसल. सरसों के पीले फूलों की वजह से यहां का नजारा इन दिनों कश्मीर की वादियों जैसा है.

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चंबल घाटी के लाखों हेक्टेयर रकबे में इन दिनों सरसों की फसल लहलहा रही है. सरसों के पीले फूलों से चारों ओर खड़ी फसल को देख ऐसा लगता है, मानो इन दिनों चंबल ने पीली चादर ओढ़ ली हो. अब से करीब 30 वर्ष पहले जहां इस अंचल में डकैतों की बंदूकों से निकली गोलियों की आवाज खौफ पैदा कर देती थी, वहीं अब सरसों के उत्पादन ने चंबल घाटी को कश्मीर की वादियों जैसा खूबसूरत कर दिया है.

ट्रेन, बस या कार से सफर करने वाले यात्रियों को चारों ओर सरसों के ये पीले फूल आनंदित कर रहे हैं. चंबल संभाग की पहचान भिंड, मुरैना और श्योपुर जिले को मिलाकर बनती है. चंबल संभाग के सहायक संचालक (कृषि विभाग) अशोक सिंह गुर्जर ने बताया कि चंबल घाटी में कुल उपजाऊ भूमि से करीब 3.80 लाख हेक्टेयर पर इस साल सरसों का उत्पादन लिया जा रहा है.

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मुरैना के किसान जहां 1.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पीला सोना उगा रहे हैं, वहीं भिंड में 1.10 लाख हेक्टेयर और श्योपुर जिले में 50,000 हेक्टेयर रकबे में सरसों की फसल है. किसानों को प्रति हेक्टेयर 30 क्विंटल तक सरसों की पैदावार मिलने की संभावना है.

मुरैना जिले के कुम्हेरी गांव के ओमी पारासर ने बताया, ‘हम लोग अपने खेतों में सरसों की फसल को इसलिए उगा रहे हैं, क्योंकि इसमें बहुत अधिक लागत नहीं आ रही है और लाभ भी अधिक हो रहा है.’ उन्होंने कहा कि इस प्रकार लाखों क्विंटल पीले सोने के उत्पादन की उम्मीद से किसान बेहद खुश हैं.

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गौरतलब है कि सरसों के बेशुमार उत्पादन से चंबल के किसान की गृहस्थी का साल भर का गुजारा चलता है. जाड़ों के मौसम में एक पखवाड़ा ऐसा आता था, जब चंबल और क्वारी नदी के आसपास के क्षेत्र सोंहा के पीले फूलों से ढक जाते थे.

दूर से देखने पर मालूम होता था जैसे सोना पानी बनकर नदी में बह रहा हो, लेकिन डकैती की समस्या से निजात मिलने और ट्यूबवेल नहरों के जरिये सिंचाई का इंतजाम हो जाने से सोंहा की जगह आहिस्ता-आहिस्ता सरसों ने ले ली. पीले सोने के उत्पादन को देखें, तो मुरैना जिले में हरियाणा से भी अच्छी पैदावार है.

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चंबल संभाग में इस बार सरसों के अच्छे उत्पादन की उम्मीद है. अब से करीब 30 वर्ष पहले चंबल में दुर्दांत डाकुओं की बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की आवाज और उनके दिल दहलाने वाले आंतकी कारनामों और अपहरण से सहमे किसानों का कृषि कार्य सूरज की रोशनी में गांव मजरों और पुरा पट्टों के इर्द-गिर्द तक ही सीमित रहा था.

सरसों के कारोबार से जुड़े कोक सिंह पटेल का कहना है कि चंबल में सरसों की फसल की पैदावार बढ़ने का मुख्य कारण इलाके में सिंचाई के पानी की कमी है. इसी के कारण इलाके के लोगों का रुझान सरसों की फसल की ओर बढ़ता चल गया है, क्योंकि सरसों की फसल के लिए अन्य फसलों की तरह अधिक पानी की जरूरत नहीं होती.

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