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किरदार ऐसा हो, जो मेरे पिछले काम से डिफरेंट हो : सौरभ राज जैन

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यूं तो टेलीविजन की दुनिया में रोज कई कलाकार आते हैं और कुछ शोज करके गुम हो जाते हैं, पर कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जिनके द्वारा निभाया गया किरदार ही उनकी पहचान बन जाती है. कुछ ऐसी ही शख्सियत है टीवी और सिनेमा में काम कर चुके सौरभ राज जैन की. महाभारत, जय श्री […]

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यूं तो टेलीविजन की दुनिया में रोज कई कलाकार आते हैं और कुछ शोज करके गुम हो जाते हैं, पर कुछ कलाकार ऐसे होते हैं जिनके द्वारा निभाया गया किरदार ही उनकी पहचान बन जाती है. कुछ ऐसी ही शख्सियत है टीवी और सिनेमा में काम कर चुके सौरभ राज जैन की.
महाभारत, जय श्री कृष्णा और देवों के देव महादेव जैसे शोज में उनके द्वारा निभाया गया श्री कृष्ण और विष्णु का किरदार उनकी पहचान बताने के लिए काफी है.
टीवी के ही अन्य शोज मसलन कसम से, यहां मैं घर-घर खेली और उतरन में भी वो अपनी पुरजोर उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. आजकल सौरभ अपने नये शो महाकाली : अंत ही आरंभ है में निभा रहे भगवान शिव की भुमिका को लेकर चर्चा में हैं. नये शो और अभिनय के सफर पर सौरभ ने प्रभात खबर के गौरव से बातचीत की.
-पहले बधाई नये शो की. शो के बारे में कुछ बताएं?
महाकाली हमारा जो नया शो है, इसे एक यात्र कहें तो गलत नहीं होगा. यह यात्रा है देवी पार्वती के महाकाली बनने की. इस शो की आधारभुत सोच ये है कि नारी को किसी भी क ाल में आगे बढ़ने या समस्याओं से जुझने के लिए किसी पुरूष की आवश्यकता नहीं होती. वो अपने आप में ही इतनी पूर्ण होती हैं कि किसी भी तरह की बाधा उन्हें रोक नहीं सकती.
-आजकल धार्मिक शोज की इतनी भरमार हो गयी है कि दर्शकों के लिए चुनाव करना मुश्किल हो गया है. ऐसे में लगातार इस तरह के शो करने से टाइपकास्ट होने का खतरा नहीं लगता?
देखिये दोनों सवालों के अलग-अलग जवाब हैं. जहां तक बात टाइपकास्ट होने की है तो जबतक आपको दर्शक उस रूप में पसंद कर रहे हों तबतक खतरे वाली कोई बात ही नहीं. जिस दिन वो दर्शकों को बोर करने लगेगा मैं खुद ही वो रास्ता छोड़ दूंगा. वैसे मैं इन शोज के अलावा चेंज के किए कई अन्य तरह के शोज भी करता रहता हूं. जहां तक बात दर्शकों की है तो वो भीड़ में भी अपने लायक चीजे ढूंढ ही लेते हैं. जबतक ऐसे शोज उन्हें पसंद आते रहेंगे निर्माता-निर्देशक बनाते रहेंगे.
-धार्मिक किरदार निभाने की अलग चुनौतियां हैं. ऐसे किरदार की रिफरेंस कहां से लाते हैं?
ये पूरा का पूरा एक थॉट प्रोसेस है. हम पहले भी इस तरह के कई किरदार कई शोज में देख चुके होते हैं. तो हर बार नया शो करते वक्त हमें राइटर्स और क्रियेटिव टीम के साथ ऐसे थॉट प्रोसेस से गुजरना पड़ता है कि इस किरदार में हम ऐसा क्या नया करें जो पहले के किरदारों ने नहीं किया.
यह भी एक बंधन होती है कि हमें एक सीमा रेखा के बाहर नहीं लांघना है जिससे किरदार बनावटी या विवादास्पद लगे. मेरे नये शो में आप देखेंगे कि शिव जी का किरदार अपने सौम्य और प्रेरणाश्रोत के रूप में दिखाया गया है जो उनकी पिछली उग्र रूप वाले इमेज से बिलकुल अलग है.
-ऐसे किरदारों का औरा शो के बाद भी एक्टर को बेचैन रखता है. इस सिचुएशन से कैसे निबटते हैं?
देखिये केवल ऐसे किरदार ही नहीं किसी तरह के किरदार को लंबे समय तक प्ले करने पर हमारे सबकॉन्सस माइंड में उसका असर कहीं न कहीं रह ही जाता है. धीरे-धीरे वक्त के साथ हमें यह अहसास होता है कि प्रोफेशनल लाइफ के इस दायरे को पार कर कैसे हम पर्सनल लाइफ में इंटर करें. मुझे लगता है मैं वो फेज पार कर चुका हूं जब ऐसे किरदारों का असर काम खत्म करने के बाद भी रहता था. अब मैं शुटिंग से बाहर आते ही सौरभ राज जैन हो जाता हूं.
-ऐसे किरदार के बाद पब्लिक लाइफ में भी लोग आपको भगवान के रूप में ही देखने लगते हैं. कभी ऐसी किसी घटना से सामना हुआ?
कई बार ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. वो मैं पब्लिकली नहीं बता सकता क्योंकि ये धर्म और आस्था से जुड़ा मामला है. मुङो पर्सनली अपना दायरा पता है पर कभी-कभी लोगों के भावनाओं की क द्र करते हुए मुङो उनकी सोच जैसा खुद को ढालना पड़ता है. उनकी सोच को रिस्पेक्ट देना पड़ता है क्योंकि उन्हीं की वजह से मेरी पहचान भी है.
-कब लगा कि अभिनय ही आगे की राह है?
ईमानदारी से कहूं तो शुरू से कभी सोचा ही नहीं था कि इस क्षेत्र में जाना है. फैमिली में भी दूर-दूर तक कोई इससे जुड़ा नहीं था. कम्प्यूटर अप्लीकेशंस की पढ़ाई के वक्त मुङो मुंबई से एक ऑफर आया. अठारह की उम्र में इस तरह के ऑफर सीरियसली कम और एक्साइटमेंट में ज्यादा स्वीकारे जाते हैं. सो मैंने भी कर लिया. पर पहले काम के बाद अहसास हुआ कि ये करने से मुङो काफी खूशी मिल रही है. तब इसे सीरियसली लेना शुरू किया. और धीरे-धीरे यही प्रोफेशन बन गया.
-किसी शो का चुनाव करते वक्त सबसे पहले क्या देखते हैं?
पहले मैं ये देखता हूं कि वो रोल मेरे लिए अलग और चैलेंजिंग कैसे हो. किरदार ऐसा हो जो मेरे पिछले काम से अलग हो. खुद को दोहराने के बजाय रुक कर अलग तरह के काम का इंतजार करना बेहतर समझता हूं.

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