19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

अगर जीत गया NOTA तो, हार कर भी सांसद बन सकते हैं नेताजी

Advertisement

NOTA : क्या कोई उम्मीदवार चुनाव हारने के बाद भी जनप्रतिनिधि बन सकता है, अगर चुनाव में सभी उम्मीदवार के मुकाबले NOTA को अधिक वोट मिल जाता है तो क्या होगा? आइए, इन दो अहम सवालों पर चर्चा करते है और इसका जवाब तलाशते है...

Audio Book

ऑडियो सुनें

NOTA : क्या चुनाव हारने के बाद भी कोई उम्मीदवार सांसद या विधायक बन सकता है? अगर, मैदान में एक ही उम्मीदवार खड़ा हो तो क्या उसे चुनाव से पहले निर्विरोध विजयी घोषित किया जा सकता है? ये तमाम सवाल बीते 15 दिन से खूब चर्चा में हैं. मतदाता न तो मतदान के लिए घर से निकले, न ही चुनाव प्रचार हुआ और न ही युवा लोकतंत्र के इस त्योहार में अपनी पहली हिस्सेदारी की तस्वीर सोशल मीडिया पर डाल पाए. कारण, कांग्रेस के प्राइमेरी और स्टैन्डबाय उम्मीदवारों का नामांकन रद्द हो गया और अन्य प्रतियोगियों ने भी नामांकन वापस ले लिया. यह पूरा वाकया है गुजरात के सूरत लोकसभा सीट का, जहां बीजेपी उम्मीदवार को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया गया. फिर एक सवाल उठा, कोई भी उम्मीदवार निर्विरोध कैसे जीत सकता है, जब इस चुनावी प्रक्रिया में NOTA भी है. क्या होगा अगर उम्मीदवार के मुकाबले NOTA को अधिक वोट मिल जाए, दोबारा चुनाव या कुछ और? आइए इन तमाम सवालों पर चर्चा करते है और खोजते है इनके जवाब…

- Advertisement -

कब और क्यों आया NOTA?

ऐसा पहली बार नहीं है, जब किसी प्रत्याशी को निर्विरोध विजयी घोषित कर दिया गया हो और भारत के चुनावी इतिहास में यह कोई अनोखी बात भी नहीं है. अबतक, कुल 35 उम्मीदवार ऐसे रहे है जिन्हें बिना किसी वोटिंग प्रक्रिया के विजयी घोषित कर दिया गया है. ताजा मामला है उत्तर प्रदेश के कन्नौज लोकसभा सीट का, जहां समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी डिंपल यादव ने निर्विरोध जीत हासिल की थी. यह मामला साल 2012 का है. अब दिलचस्प बात यह है कि उस वक्त देश में नोटा का कान्सेप्ट नहीं आया था. सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान NOTA (None Of The Above) को शामिल करने के पक्ष में फैसला सुनाया था. जानकार कहते हैं कि इसे लागू करने के पीछे का कारण यह था कि अगर कोई मतदाता किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान न करना चाहे तो वह नोटा को वोट करे लेकिन, मतदान की प्रक्रिया में शामिल हो और अपनी राय रखे.

Nota
Nota

इसे भी पढ़ें…झारखंड के नागवंशी शाहदेवों का नया तीर्थ बनेगा गुजरात का कच्छ, जानिए क्यों है ऐसी उम्मीद

इसे भी पढ़ें…झारखंड से MBA-MCA क्यों नहीं करना चाहते बिहार-यूपी के छात्र, ये हैं 2 बड़ी वजह

इसे भी पढ़ें…इस परेशानी से दुनिया हो सकती है तबाह, जानिए फिर भी बिहार-झारखंड में क्यों नहीं बनता चुनावी मुद्दा

नोटा को क्यों कहा जाता था वेस्ट वोट

लेकिन, नोटा को लेकर भारत में कई तरह के सवाल खड़े होते रहे हैं. कभी इसे वेस्ट वोट कहा जाता है तो कभी इसका कोई खास प्रभाव नहीं दिखता है. भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने फरवरी 2020 में द हिंदू में अपने लेख में कहा था, ‘NOTA is a toothless option in India’. चुनाव में अगर किसी उम्मीदवार के मुकाबले नोटा को अधिक वोट मिलता है, फिर भी वह विजेता घोषित होगा. नियम यह है कि 100 लोगों में से 99 लोग नोटा के पक्ष में मतदान करते है और 1 वोट उम्मीदवार को मिलता है तो विजेता उम्मीदवार होगा. हालांकि, भारत के ही हरियाणा में एक बार इससे इतर कुछ हुआ था, जब नगर निकाय चुनाव में NOTA को सबसे ज्यादा वोट मिले थे. दिसंबर 2018 में हरियाणा के 5 जिलों में नगर निकाय चुनाव में नोटा को सबसे अधिक वोट मिले थे. आयोग ने सभी उम्मीदवारों को अयोग्य करार कर दिया था और दोबारा चुनाव कराने का फैसला किया गया था.

क्या है चुनाव आयोग का वर्तमान नियम

चुनाव आयोग के नियम की बात करें तो इलेक्शन में NOTA को सबसे अधिक वोट मिलता है तो दूसरे नंबर पर मौजूद उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है. NOTA केवल इस वजह से है कि लोग अगर किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं, फिर भी इस देश के पर्व में शामिल हों और अपना मत रखें. चूंकि, NOTA के लिए कोई वास्तविक उम्मीदवार नहीं होता है, इसलिए दूसरे स्थान पर काबिज उम्मीदवार को ही फिलहाल विजेता घोषित किया जाता है और केवल एक उम्मीदवार होने पर उसे निर्विरोध विजेता घोषित किया जाता है. इस तथ्य की पुष्टि झारखंड के चीफ इलेक्शन ऑफिसर के रवि कुमार ने की.

‘इलेक्शन में NOTA को सबसे अधिक वोट मिलता है तो दूसरे नंबर पर मौजूद उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाता है’ – झारखंड के चीफ इलेक्शन ऑफिसर के रवि कुमार

महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने बदला था नियम

महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग ने 2018 में ही एक आदेश जारी किया था और NOTA को ‘काल्पनिक चुनावी उम्मीदवार’ का दर्जा दिया था. इस आदेश के अनुसार, अगर किसी उम्मीदवार को NOTA (काल्पनिक चुनावी उम्मीदवार) के बराबर ही वोट मिलते हैं तो असली कैंडिडेट को विजेता घोषित कर दिया जाएगा. लेकिन अगर NOTA अधिक वोट प्राप्त करता है तो चुनाव फिर होंगे. दूसरी बार भी अगर NOTA को ही सबसे ज्यादा मिले, तब तीसरी बार चुनाव नहीं होगा और NOTA के बाद सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया जाएगा. हालांकि, ये पूरा नियम राज्य के चुनावों तक ही सीमित है यानी लोकसभा चुनाव में यह प्रभावी नहीं होगा.

कितने देशों में पहले से है यह कॉन्सेप्ट

जानकारी यह भी है कि भारत कोई पहला देश नहीं है जहां NOTA का कान्सेप्ट लाया गया हो. भारत अपने देश में NOTA को लागू करने वाला 14वां देश है. भारत के अलावा, फ्रांस, इंडोनेशिया, कनाडा, कोलम्बिया, पेरू, नॉर्वे समेत अन्य देशों में भी NOTA आंशिक या पूरी तरह से लागू है. इंडोनेशिया की बात करें तो यहां चुनाव में उम्मीदवार को उसका प्रतिद्वंदी नहीं मिलता तो उसे NOTA के खिलाफ चुनाव लड़ना अनिवार्य है. उदाहरण के तौर पर बताएं तो इंडोनेशिया के मकासर शहर में साल 2018 में मेयर चुनाव हुए जिसमें NOTA ने इकलौते उम्मीदवार से अधिक वोट लाए. उसके बाद चुनाव को फिर से 2020 में कराने का फैसला किया गया था.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें