28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Lok Sabha Election 2024| चुनाव-चक्रम : छत्तीसगढ़ सीट नहीं, प्रतिष्ठा-पीठ है रायपुर

Advertisement

रायपुर आज भाजपा के वर्चस्व की सीट है. इसका प्रमाण यह कि सन 2019 के चुनाव में सुनील सोनी जैसे प्रत्याशी ने भाजपा के खाते में करीब साढ़े तीन लाख वोटों से जीत दर्ज की थी.

Audio Book

ऑडियो सुनें

1952 में अस्तित्व में आयी रायपुर संसदीय सीट फकत निर्वाचन क्षेत्र नहीं, वरन प्रतिष्ठा-पीठ है. रायपुर के शुक्ल-बंधुओं का बरसों-बरस इस अंचल और प्रदेश की राजनीति में वर्चस्व रहा. अग्रज श्यामाचरण और अनुज विद्याचरण ने क्रमश: प्रदेश और देश की सियासत में तगड़ी पैठ बनाये रखी.

- Advertisement -

करीब चौथाई सदी तक यहां कांग्रेस की धमक रही, जो सन् 1977 में जनता पार्टी के पुरुषोत्तम लाल कौशिक के हाथों वीसी शुक्ल की शिकस्त से टूटी. यद्यपि सन 80 और 84 के चुनाव कांग्रेस के सर्वादयी नेता केयूर भूषण और सन 91 में वीसी पुन: जीते, लेकिन सन 89 के चुनाव में रमेश बैस जीत के साथ परिदृश्य में ऐसे उभरे कि आगामी करीब 25 सालों तक उन्होंने यहां से जीत का अटूट सिलसिला बनाये रखा. संप्रति महाराष्ट्र के राज्यपाल बैस ने यहां से सत्यनारायण शर्मा जैसे जमीनी नेता, श्यामाचरण जैसे महारथी और भूपेश बघेल जैसे धाकड़ नेता को धूल चटायी.

रायपुर से बैस की जीत-दर-जीत में पार्टी, काडर और संसाधनों के अलावा उनके कुर्मी होने का विशेष योगदान रहा. वस्तुतः कुर्मी और साहू यहां के प्रमुख जातीय समुदाय व वोट बैंक हैं. चुनावी शह और मात में उनकी प्रभावी भूमिका रहती है. रायपुर, बलौदा बाजार, भाटापारा, धरसींवा, आरंग और अभनपुर को मिलाकर बने इस क्षेत्र से दोहरे प्रतिनिधित्व के तहत सन 52 में भूपेंद्र नाथ मिश्रा और मिनी माता तथा सन 57 में नरेंद्र बहादुर सिंह और केसरी देवी संसद में पहुंचे. अगले दशक के आम चुनावों में केशर कुमारी देवी और लखनलाल गुप्ता जीते, तो सन 71 में वीसी शुक्ल. सन 89 में पहली बार जीतने के बाद सन 96 से सन 2014 के मध्य छह चुनावों में बैस ने विजय पताका फहरायी.

नतीजतन रायपुर आज भाजपा के वर्चस्व की सीट है. इसका प्रमाण यह कि सन 2019 के चुनाव में सुनील सोनी जैसे प्रत्याशी ने भाजपा के खाते में करीब साढ़े तीन लाख वोटों से जीत दर्ज की थी. इस प्रतिष्ठित सीट पर सबसे कश्मकश जंग सन 2009 के चुनाव में हुई थी, जब भाजपा के कुर्मी उम्मीदवार रमेश बैस ने कांग्रेस के कुर्मी प्रत्याशी भूपेश बघेल को करीब 57 हजार वोटों से हराया था.

भाजपा ने इस मानीखेज सीट से बहुत सोच विचार कर अपने अजेय योद्धा बृजमोहन अग्रवाल को मैदान में उतारा है, जिन्होंने हाल के असेंबली चुनाव में सर्वाधिक मतों से जीत का कीर्तिमान रचा है. बृजमोहन चुनावी प्रबंधन में बेजोड़ माने जाते हैं. वह सूबे में शीर्ष पद के दावेदार भी रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि परंपरा के निर्वाह के क्रम में वह कितने मतों का दायरा लांघते हैं?

इसी के साथ वीसी शुक्ल, पुरुषोत्तम कौशिक और रमेश बैस के केंद्र में ओहदे पाने का कीमती क्षेपक और गृह प्रदेश की सियासत में दबदबे का संदर्भ भी जुड़ा हुआ है. हालांकि कांग्रेस ने विकास उपाध्याय को अपना प्रत्याशी घोषित कर सूझबूझ का परिचय दिया है, लेकिन बृजमोहन अग्रवाल की ताकत और तजुर्बे के आगे कांग्रेस की उम्मीदें क्षीण नजर आती हैं.


ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें