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Kaiserganj Lok Sabha: कैसरगंज में दिलचस्प हुआ मुकाबला, मैदान में केवल 4 प्रत्याशी, जानें समीकरण

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Kaiserganj Lok Sabha: उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में से एक कैसरगंज लोकसभा में अब सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है. कैसरगंज लोकसभा सीट पर राजनीतिक दलों ने देरी से पत्ते खोले. यह 47 वर्षों में पहली बार है जब इस सीट पर सबसे कम प्रत्याशी हैं.

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Kaiserganj Lok Sabha: कैसरगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 20 मई को पांचवें चरण में 2024 लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा. यह निर्वाचन क्षेत्र किसी भी एक पार्टी का ऐतिहासिक गढ़ नहीं रहा है क्योंकि इस सीट पर सभी पार्टियों का अपना-अपना कार्यकाल रहा  है. बीजेपी ने पिछले दो लोकसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज की. 2014 और 2019 में जीत मिलने से बीजेपी मौजूदा चुनाव में भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त है. इस सीट से भाजपा ने मौजूदा चुनाव में लंबे समय से विवादों में घिरे बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह के छोटे बेटे को टिकट दिया है. हालांकि राजनैतिक गलियारे में पहले से ही ऐसे कयास लगाए जा रहे थे की इस बार बीजेपी बृजभूषण का टिकट जरूर कटेगी और हुआ ही कुछ ऐसा ही. उनका टिकट तो कटा पर भाजपा ने उन्हीं के छोटे बेटे करण भूषण सिंह पर दांव खेला है. इससे बाहुबली नेता जो अपने संसदीय क्षेत्र में दबदबा होने का दावा करते हैं सच साबित होता दिखाई पड़ रहा है. यही कारण है इतने संगीन अपराधों से घिरे होने के बावजूद भाजपा ने उनके परिवार की तरफ रुख किया है.

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सपा ने कैसरगंज से भगत राम मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया

इस सीट से समाजवादी पार्टी ने भगत राम मिश्रा को टिकट दिया है जो कि श्रावस्ती के पूर्व बीजेपी सांसद दद्दन मिश्रा के बड़े भाई हैं. ऐसे में कैसरगंज लोकसभा सीट पर लड़ाई दिलचप्स हो गई है. अब इस सीट पर मुख्य लड़ाई सांसद के बेटे और पूर्व सांसद के भाई के बीच देखने को मिलेगी. भगत राम मिश्रा बहराइच के रहने वाले हैं. शुक्रवार, 3 मई को उन्होंने इस सीट से नामांकन भरा है. भगत राम मिश्रा समाजवादी पार्टी में शामिल होने से पहले कांग्रेस के सदस्य थे. उनकी पत्नी श्रावस्ती जिले से जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. बहराइच दौरे के दौरान सपा चीफ अखिलेश यादव से भी भगत राम मिश्रा ने मुलाकात कर कैसरगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी. अब उन्हें पार्टी से टिकट मिल गया है.

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बहुजन समाजवादी पार्टी ने कैसरगंज में उम्मीदवार की घोषणा की थी

बहुजन समाजवादी पार्टी ने सबसे पहले कैसरगंज से अपने उम्मीदवार की घोषणा की थी, जिसमें नरेंद्र पांडे को उम्मीदवार बनाया गया. यह कदम बसपा के मतदाताओं के एक महत्वपूर्ण हिस्से को अपने पक्ष में करने और क्षेत्र में पार्टी के अस्तित्व को बनाएं रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम था, क्योंकि पार्टी का लक्ष्य आगामी चुनावों में अपनी पहचान बनाना है. कैसरगंज सीट में यूं तो कई मुद्दे हैं पर जातिगत समीकरण, एक अहम भूमिका निभा सकते हैं.

कैसरगंज में क्या है समीकरण

जातीय समीकरण की बात करें तो सवर्ण बाहुल्य कैसरगंज में सर्वाधिक ब्राह्मण मतदाता हैं और राजपूत वोटर्स की संख्या भी अच्छी है. जबकि क्षेत्र में 18 फीसदी दलित और 25 फीसदी मुस्लिम भी हैं, जो एकतरफा धुर्वीकरण सियासी पांसे को पलटने की क्षमता रखता है. कैसरगंज लोकसभा सीट के अंतर्गत गोंडा जिले की तीन और बहराईच की दो विधानसभा सीटें आती हैं. कैसरगंज लोकसभा सीट पर सपा का दबदबा रह चुका है. कैसरगंज संसदीय क्षेत्र बहराइच की दूसरी लोकसभा सीट है. नेपाल के निकटवर्ती क्षेत्र में आने वाला कैसरगंज 1952 में यह सीट गोंडा वेस्ट सीट के तहत थी जिस पर जनसंघ की शकुंतला नायर ने जीत हासिल की थी. 1957 में कैसरगंज लोकसभा सीट बनने के बाद वह 1967 और 1971 में भी इस सीट से जीत हासिल करने में कामयाब रहीं. 1996 से लेकर 2009 के दौरान यह क्षेत्र सपा का गढ़ था. 2009 में बृजभूषण शरण सिंह ने भी सपा के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की थी. इसके बाद बृजभूषण शरण सिंह ने 2014 और 2019 में बीजेपी के टिकट पर जीत दर्ज की. बता दें कि बृजभूषण एक दशक तक भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे हैं. इनपर छह महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था जिसके बाद इनका टिकट कटा.

रिपोर्ट – कुशल सिंह

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