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Union Budget से पहले माकपा ने उठाए सवाल, कहा- महामारी के प्रकोप से अभी उबरी नहीं है अर्थव्यवस्था

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पिछले कुछ दशकों का 'नवउदारवादी भूमंडलीकरण' अपने विरोधाभासों की वजह से निष्प्रभावी हो गया है. लिहाजा, भारत को न केवल एक अस्थायी वैश्विक मंदी के लिए, बल्कि लंबे पूंजीवादी संकट की आशंका के लिए भी खुद को तैयार करना है.

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नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फरवरी को लोकसभा में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्रीय बजट पेश करेंगी. संसद के निचले सदन में आम बजट पेश होने से पहले मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने आरोप लगाया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी कोरोना महामारी के दौरान लगे झटके से उबर नहीं पाई है. इसके साथ ही, माकपा ने महामारी के विनाशकारी प्रकोप से निपटने के तौर-तरीकों पर सरकार की आलोचना भी की.

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भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था की हालत गंभीर

समाचार एजेंसी भाषा की रिपोर्ट के अनुसार, माकपा के मुखपत्र ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ के ताजा संपादकीय में सरकार से मांग की गई है कि कराधान और सार्वजनिक व्यय का उपयोग मेहनतकश जनता के पक्ष में, किसानों की आय में सुधार, रोजगार पैदा करने और बेहतर स्वास्थ्य तथा शिक्षा के लिए किया जाना चाहिए. पार्टी ने कहा है कि वित्त वर्ष 2023-24 का बजट ऐसे समय में पेश किया जाने वाला है, जब भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं गंभीर हालात का सामना कर रही हैं.

नवउदारवादी भूमंडलीकरण निष्प्रभावी

पीपुल्स डेमोक्रेसी के संपादकीय के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लंबे-चौड़े दावों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था अभी तक कोविड महामारी के प्रकोप और जिस विनाशकारी तरीके से इसे भारत सरकार ने संभाला है, उससे उबर नहीं पाई है. इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों का ‘नवउदारवादी भूमंडलीकरण’ अपने विरोधाभासों की वजह से निष्प्रभावी हो गया है. लिहाजा, भारत को न केवल एक अस्थायी वैश्विक मंदी के लिए, बल्कि लंबे पूंजीवादी संकट की आशंका के लिए भी खुद को तैयार करना है.

श्रमिकों की असमानता में भारी वृद्धि

संपादकीय में दावा किया गया है कि भारत की आर्थिक वृद्धि भी इन विरोधाभासों को परिलक्षित करती है. यही कारण है कि उच्च वृद्धि के दौर में भी कृषि संकट, मजदूरी में ठहराव और बेरोजगारी की बढ़ती समस्या देखने को मिली. पार्टी ने कहा कि इससे श्रमिक वर्ग के गहन शोषण और असमानता में भारी वृद्धि हुई है.

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संपादकीय में कहा गया कि पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार 2022-23 में भारत की वास्तविक प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय महामारी से पहले के मुकाबले सिर्फ 2.4 फीसदी अधिक रहने वाली है. यह आंकड़ा प्रति वर्ष एक फीसदी से कम की वृद्धि दर्शाता है, जबकि इस दौरान मुद्रास्फीति की दरों में तीव्र वृद्धि हुई है. इसके अलावा, औद्योगिक क्षेत्र भी बड़े संकट को दर्शा रहा है, जहां 2022-23 में विनिर्माण क्षेत्र में केवल 1.6 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है.

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