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श्रीलंका के पास कागज-पेंसिल खरीदने के भी नहीं हैं पैसे, जानिए उसके आर्थिक दिवालिएपन के क्या हैं अहम कारण?

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कई अहम आर्थिक कारकों और नीतियों ने श्रीलंका में विदेशी मुद्रा के संकट को जन्म दिया है, जो आवश्यक वस्तुओं के आयात की क्षमता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहा है. संकट की जड़ें पर्यटन उद्योग की विफलता, एफडीआई में कमी और आईएमएफ से कर्ज लेने से इनकार से जुड़ी हैं, जो उसे रसातल की ओर धकेल रही हैं.

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कोलंबो/नई दिल्ली : कभी सोने की नगरी के नाम से विख्यात श्रीलंका आज आर्थिक दिवालिएपन के कगार पर पहुंच गया है. आर्थिक तंगी का आलम यह कि फिलहाल उसके पास कागज, पेट्रोल और जीवनोपयोगी आवश्यक वस्तुओं के आयात करने तक के पैसे नहीं हैं. देश में कागज नहीं होने की वजह से सरकार को छात्रों की परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी. मुद्रास्फीति यानी महंगाई दर अपने रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंची हुई और विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी व्याप्त है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि श्रीलंकाई नागरिक का जीवन बचाने के लिए भारत की ओर से मदद की जा रही है. आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान पर पहुंचने से लोग आक्रामक होकर सरकार के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने पर आमादा हो गए हैं. नतीजतन, राष्ट्रपति गोटबायो राजपक्षे को आपातकाल का ऐलान करना पड़ा.

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विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी

श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार पर दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है. महामारी के दौरान विदेशी नागरिकों की आवाजाही पर लगे प्रतिबंधों की वजह से उसका पर्यटन उद्योग पूरी तरह से चरमरा गया. श्रीलंका कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पर्यटन उद्योग की 10 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी है. आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, 2019 में कोलंबो में हुए सीरियल बम धमाकों के बाद पर्यटन उद्योग का ग्राफ नीचे गिरता जा रहा था, लेकिन कोरोना महामारी ने इसकी रीढ़ को ही तोड़ दिया. इस पर तुर्रा यह कि चीन और यूरोपीय संघ के देशों जैसे इसके प्रमुख निर्यात स्थानों में भी कोरोना के कारण आई व्यापार में समस्या से भी श्रीलंका की विदेशी मुद्रा आय में कमी आई.

विदेशी मुद्रा की भूमिका

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार होने का अर्थ उसके पास आयात क्षमता मजबूत होने से है. विदेशी मुद्रा में कमी आने के कारण ही श्रीलंका के पास आवश्यक वस्तुओं को खरीदने (आयात) करने के लिए पैसे नहीं हैं. श्रीलंका बहुत हद तक अपने आयात पर निर्भर है और आवश्यक वस्तुओं के अलावा वह पेट्रोलियम पदार्थ, खाद्यान्न, कागज, चीनी, दाल, दवाएं और परिवहन उपकरण भी आयात करता है. उसके लिए आयात करना इतना अधिक जरूरी है कि सरकार को लाखों स्कूली छात्रों के लिए परीक्षा रद्द करनी पड़ी, क्योंकि उसके पास कागज की छपाई खत्म हो गई थी.

एफडीआई में जोरदार गिरावट

श्रीलंका के आर्थिक दिवालिएपन का एक और महत्वपूर्ण कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में जोरदार गिरावट आना भी है. सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, कोरोना के पहले साल वर्ष 2020 के दौरान श्रीलंका के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश घटकर 548 मिलियन डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2019 में 793 मिलियन डॉलर और 2018 में 1.6 बिलियन डॉलर था. आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, यदि किसी देश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी आती है, तो उसके विदेशी मुद्रा भंडार में भी कमी आती है.

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श्रीलंका ने आईएमएफ से कर्ज लेने से किया इनकार

श्रीलंका के आर्थिक दिवालिएपन के अहम कारणों में से एक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज लेने इनकार करना भी शामिल है. कई अहम आर्थिक कारकों और नीतियों ने श्रीलंका में विदेशी मुद्रा के संकट को जन्म दिया है, जो आवश्यक वस्तुओं के आयात की उसकी क्षमता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहा है. इस संकट की जड़ें पर्यटन उद्योग की हालिया विफलता, पर्याप्त एफडीआई की खरीद में विफलता और आईएमएफ से कर्ज लेने से इनकार से जुड़ी हैं, जो उसे रसातल की ओर धकेल रही हैं.

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