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एसबीआई रिसर्च ने रघुराम राजन के ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ वाले बयान को खारिज किया, कहा- टिप्पणी पक्षपातपूर्ण

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आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दो दिन पहले समाचार एजेंसी भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि जीडीपी वृद्धि के आंकड़े इसके खतरनाक रूप से हिंदू वृद्धि दर के बेहद करीब पहुंच जाने के संकेत दे रहे हैं.

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नई दिल्ली : भारत की मौजूदा आर्थिक वृद्धि दर को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ वाले बयान को एसबीआई रिसर्च ने पक्षपातपूर्ण, बचकाना और बिना सोचा-समझा हुआ बताते हुए मंगलवार को खारिज कर दिया है. एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट ‘इकोरैप’ कहती है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर के हाल में आए आंकड़े और बचत एवं निवेश के उपलब्ध आंकड़ों को देखने पर इस तरह के बयानों में कोई आधार नजर नहीं आता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, तिमाही आंकड़ों के आधार पर जीडीपी वृद्धि को लेकर व्याख्या करना सच्चाई को छिपाने वाले भ्रम को फैलाने की कोशिश जैसा है.

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क्या है राजन का बयान

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दो दिन पहले समाचार एजेंसी भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि जीडीपी वृद्धि के आंकड़े इसके खतरनाक रूप से हिंदू वृद्धि दर के बेहद करीब पहुंच जाने के संकेत दे रहे हैं. उन्होंने इसके लिए निजी निवेश में गिरावट, उच्च ब्याज दरों और धीमी पड़ती वैश्विक वृद्धि जैसे कारकों को जिम्मेदार बताया था.

क्या है हिंदू वृद्धि दर

‘हिंदू वृद्धि दर’ शब्दावली का इस्तेमाल 1950-80 के दशक में भारत की 3.5 फीसदी की औसत वृद्धि दर के लिए किया गया था. भारतीय अर्थशास्त्री राज कृष्णा ने सबसे पहले 1978 में ‘हिंदू वृद्धि दर’ शब्दावली का इस्तेमाल किया था. देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई की शोध टीम की तरफ से जारी रिपोर्ट में राजन के इस दावे को नकार दिया गया है. रिपोर्ट कहती है कि तिमाही आंकड़ों के आधार पर किसी भी गंभीर व्याख्या से परहेज करना चाहिए.

एसबीआई के अर्थशास्त्री का क्या है पक्ष

एसबीआई ग्रुप के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है. घोष ने कहा है कि बीते दशकों के निवेश एवं बचत आंकड़े कई दिलचस्प पहलू रेखांकित करते हैं. रिपोर्ट कहती है कि सरकार की तरफ से सकल पूंजी सृजन (जीसीएफ) वित्त वर्ष 2021-22 में 11.8 फीसदी हो गया, जबकि 2020-21 में यह 10.7 फीसदी था. इसका निजी क्षेत्र के निवेश पर भी प्रभाव पड़ा और यह इस दौरान 10 फीसदी से बढ़कर 10.8 फीसदी पर पहुंच गया.

2022-23 में 32 फीसदी हो जाएगा सकल पूंजी सृजन

रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में कुल मिलाकर सकल पूंजी सृजन के बढ़कर 32 फीसदी हो जाने का अनुमान है. पिछले वित्त वर्ष में यह 30 फीसदी और उसके पहले 29 फीसदी रहा था. इसके अलावा, सकल बचत भी वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 30 फीसदी हो गई, जो उसके एक साल पहले 29 फीसदी थी. चालू वित्त वर्ष में इसके 31 फीसदी से अधिक रहने का अनुमान है, जो 2018-19 के बाद का सर्वोच्च स्तर होगा.

Also Read: जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.3 फीसदी, वित्त वर्ष 2021-22 में थी 8.4 फीसदी
तीसरी तिमाही में 4.4 फीसदी पर वृद्धि दर

हालांकि एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि दर पहले की तुलना में अब कम रहेगी. उस लिहाज से भी देखें, तो सात फीसदी की जीडीपी वृद्धि दर किसी भी मानक से एक अच्छी दर है. देश की जीडीपी वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में घटकर 4.4 फीसदी पर आ गई. इसके साथ ही एनएसओ ने चालू वित्त वर्ष में वृद्धि दर के सात फीसदी पर रहने का अनुमान जताया है.

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