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Migrantion: भारत में तेजी से घट रहा पलायन, एक से दूसरे राज्य जाने वालों की संख्या 12% घटने का अनुमान

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Indian Migrants: भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार आने के बाद यहां से कार्यबल और प्रतिभाओं के पलायन करने वालों की संख्या में गिरावट आई है. 1990 के मुकाबले 2011 तक कार्यबल में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ, पलायन की दर घटती चली गई. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति ने पलायन पर रिपोर्ट जारी की है. पढ़ें विस्तृत खबर...

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Migrantion: अर्थव्यवस्था में सुधार आने की वजह से भारत से विदेश में होने वाली प्रतिभाओं और कार्यबल का पलायन तेजी से घट रहा है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति की एक रिपोर्ट में साल 2011 से 2023 के बीच घरेलू स्तर पर पलायन करने वालों की संख्या करीब 12% तक घटने का अनुमान लगाया गया है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 से 2023 के बीच घरेलू प्रवासियों की संख्या घटकर 40.20 करोड़ रह जाने का अनुमान है. भारतीय प्रवासियों की संख्या में आने वाली गिरावट देश भर में आर्थिक अवसरों में बढ़ोतरी का संकेत देती है.

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पलायन करने वालों की संख्या 40,20,90,396 रहने का अनुमान

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में घरेलू स्तर पर पलायन करने वालों की संख्या 40,20,90,396 होगी, जो 2011 की जनगणना के अनुसार दर्ज आंकड़ों की तुलना में 11.78% कम है. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति ने ‘400 मिलियन ड्रीम्स! एक्जामिनिंग वॉल्यूम एंड डायरेक्शन्स ऑफ डोमेस्टिक माइग्रेशन इन इंडिया यूजिंग नोवेल हाई फ्रीक्वेंसी डेटा’ नाम से रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि 2011 की जनगणना के अनुसार पलायन करने वालों की कुल संख्या 45,57,87,621 थी.

पलायन दर घटकर 28.88%

रिपोर्ट में में कहा गया है, “भारत में कुल घरेलू पलायन धीमा हो रहा है. हमारा अनुमान है कि 2023 तक देश में पलायन करने वालों की कुल संख्या 40,20,90,396 होगी. यह जनगणना 2011 के अनुसार पलायन करने वालों की संख्या (45,57,87,621) की तुलना में लगभग 11.78% कम है.” रिपोर्ट में कहा गया है कि पलायन दर 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या का 37.64% थी. अब अनुमान है कि घटकर 28.88% हो गई है.

शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे की सेवाओं की उपलब्धता बढ़ी

पूर्व ईएसी-पीएम अध्यक्ष बिबेक देबरॉय की ओर से लिखी गई रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है, “हमारा अनुमान है कि यह शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी जैसी बेहतर सेवाओं की उपलब्धता के साथ-साथ पलायन के प्रमुख स्रोतों या उसके निकट बेहतर आर्थिक अवसरों के कारण है. यह पूरी तरह से आर्थिक विकास का संकेत है.” इस रिसर्च पेपर में तीन हाई फ्रिक्वेंसी और विस्तृत डेटा सेटों का इस्तेमाल किया गया है. इनमें यात्री संख्या पर भारतीय रेलवे अनारक्षित टिकट प्रणाली (यूटीएस) डेटा, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) से मोबाइल टेलीफोन यूजर्स का रोमिंग डेटा और मूल स्थानों पर प्रवास के संभावित प्रभाव को समझने के लिए जिला स्तरीय बैंकिंग डेटा शामिल हैं.

कम दूरी की जगहों पर पलायन की हिस्सेदारी बड़ी

रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि टॉप मूल जिले प्रमुख शहरी समूहों जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, कोलकाता आदि के आसपास स्थित हैं. इसमें कहा गया है कि यह न केवल प्रवास के मॉडल के अनुरूप है, बल्कि शायद पहले की धारणाओं की एक अस्थायी पुष्टि भी है. इसका मतलब यह हुआ कि कम दूरी के पलायन में प्रवासियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी होती है और दूरी का श्रम प्रवाह पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

पश्चिम बंगाल, राजस्थान और कर्नाटक से पलायन सबसे अधिक

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अधिक से अधिक संख्या में पलायन करने वाले लोगों को (इंटर-स्टेट पलायन) को आकर्षित करने वाले टॉप पांच राज्यों के स्ट्रक्चर में बदलाव आया है. इंटर-स्टेट पलायन करने वाले कम दूरी वाले जगहों में पश्चिम बंगाल और राजस्थान नई एंट्री मारने वाले राज्यों में टॉप पर हैं, जबकि आंध्र प्रदेश और बिहार अब एक पायदान नीचे हैं.” रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं, जहां आने वाले यात्रियों की प्रतिशत हिस्सेदारी में अधिकतम बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ऐसे राज्य हैं, जहां कुल पलायन करने वालों की प्रतिशत हिस्सेदारी में कमी आई है.

इन जिलों से सबसे अधिक होता पलायन

रिपोर्ट में कहा गया है, “वलसाड, चित्तूर, पश्चिम बर्धमान, आगरा, गुंटूर, विल्लुपुरम और सहरसा से पलायन करने वाले लोग सबसे अधिक मुंबई, बेंगलुरु शहरी, हावड़ा, मध्य दिल्ली, हैदराबाद आदि जिलों में जाते हैं.” इस रिपोर्ट के अनुसार, राज्य स्तर पर उत्तर प्रदेश-दिल्ली, गुजरात-महाराष्ट्र, तेलंगाना-आंध्र प्रदेश और बिहार-दिल्ली ऐसे टॉप के जोड़ी राज्य हैं, जहां से लोग पलायन करके पहुंचते हैं. उत्तर प्रदेश-दिल्ली का मतलब यह कि उत्तर प्रदेश के लोग पलायन करके दिल्ली पहुंच रहे हैं.

पलायन से टाउन प्लानिंग और ट्रांसपोर्ट पर प्रभाव

रिपोर्ट में कहा गया है, “जिला स्तर पर मुर्शिदाबाद-कोलकाता, पश्चिम बर्धमान-हावड़ा, वलसाड-मुंबई, चित्तूर-बेंगलुरु शहरी और सूरत-मुंबई जिलों के बीच प्रवास के लिए सबसे लोकप्रिय रूट हैं.” साथ ही इसमें यह भी कहा गया है कि इसका टाउन प्लानिंग के साथ-साथ ट्रासंपोर्ट नेटवर्क की योजना पर भी प्रभाव पड़ता है.

अप्रैल-जून के महीने में सबसे अधिक पलायन

ट्राई के मोबाइल फोन रोमिंग आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि अप्रैल-जून के महीने में सबसे अधिक लोग पलायन करते हैं, जबकि नवंबर-दिसंबर में यह आंकड़ा घट जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्दियों के समय में दूसरी सबसे अधिक यात्रा शायद त्योहार और शादी के मौसम के दौरान यात्रा का संकेत है. जनवरी सबसे कम यात्रा का महीना दिखाई देता है.

पलायन में इन राज्यों का सबसे अधिक योगदान

2011 की जनगणना के अनुसार, केवल पांच राज्य उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल का कुल पलायन में लगभग 48% योगदान है, जिसमें राज्य के भीतर के प्रवासी भी शामिल हैं. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे पांच राज्यों में आने वाले प्रवासियों की संख्या करीब 48% है. इसमें राज्य के भीतर के प्रवासी भी शामिल हैं.

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1990 के दशक के मुकाबले 2011 के बीच कार्यबल में बढ़ोतरी

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1991 से 2001 में पलायन की संख्या की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर 2.7% थी. 2001 से 2011 के दौरान यह बढ़कर 3.7% हो गई. दिलचस्प बात यह है कि 1991 से 2001 के बीच भारत का कार्यबल 3.17 करोड़ से बढ़कर 4.02 करोड़ (2.6% की वार्षिक औसत वृद्धि) हो गया, जबकि 2001 से 2011 तक कार्यबल 4.02 करोड़ से बढ़कर 4.82 करोड़ (1.99% की वार्षिक औसत वृद्धि) हो गया.

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