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हर भारतीय की जेब पर कोरोना वायरस अटैक, खाने-पीने का सामान तीन गुना तक महंगा

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देश-दुनिया कोरोनावायरस के कहर से बेहाल है. कई अन्य देशों की तरह भारत भी लॉकडाउन है. इस दौरान खाने-पीने की वस्तुओं और राशन के दाम बढ़ गए हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के बाद लगभग सभी चीजों के दामों में तेजी आई है.

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देश-दुनिया कोरोनावायरस के कहर से बेहाल है. कई अन्य देशों की तरह भारत भी लॉकडाउन है. इस दौरान खाने-पीने की वस्तुओं और राशन के दाम बढ़ गए हैं. कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देशभर में लागू लॉकडाउन के बाद लगभग सभी चीजों के दामों में तेजी आई है. चावल-दाल जैसी राशन की चीजों में दस से बीस रुपये प्रति किलो तक का फर्क आया है. खाद्य और आपूर्ति मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, इसके तीन बड़े कारण है. इन्हीं कारण को राज्यों के कृषि उत्पाद बाजार समिति ने भी प्रमुख माना है.

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इसमें सबसे पहला है बाजार में समानों की आवक का कम होना. बीते एक माह में इसमें 60 फीसदी की गिरावट आयी है. दूसरा है ट्रांसपोर्टेशन. हालांकि ट्रकों को लॉकडाउन से राहत है मगर फिर भी राज्यों के बॉर्डर पर ट्रकों की लंबी कतार लगी है. जो ट्रक सेवा में हैं उन्होंने अपना किराया अचानक से बढ़ा दिया है. तीसरा कारण है श्रमिकों की कमी. लॉकडाउन के कारण मंडियों में श्रमिकों की भारी कमी है इस कारण जरूरी वस्तुओं की लोडिंग और अनलोडिंग नहीं हो पा रही. इन्हीं तीन कारणों से ग्राउंड से मंडी तक और फिर मंडी से ग्राहक तक समान सही तरीके से नहीं पहुंच रहा.

आसान भाषा में समझें

आसान भाषा में कहें तो आपूर्ति चेन में कमजोरी हुई है. खाने पीने की चीजें और सब्जियां देश में एक राज्य से दूसरे राज्य से होते हुए पूरे देश में बिकती हैं. इसी आधार पर मांग और आपूर्ति के बीच सामंजस्य बिठाया जाता जो चीजों के दाम तय करता है. मौजूदा दौर में यह चेन पूरी तरह से टूटी हुई है. हालांकि लॉकडाउन के चलते सरकार ने जरूर निर्देश दिए हैं कि आवश्यक चीजों की आपूर्ति में कोई बाधा न डाली जाए लेकिन स्थानीय स्तर किसानों और दूसरे कारोबारियों का काम रुका हुआ है. इसकी कोई व्यवस्था न होने के चलते हालात बिगड़ रहे हैं. घरों में रहने के चलते सिस्टम में मांग सीमित है लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद भी हालात को अगर संभाला और मांग तेजी से बढ़ी तो महंगाई भी उसी अनुपात में बढ़ेगी.

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन ने भी इस बात को माना है कि विकासशील देशों में खाने-पीने की वस्तुओं में 10 फीसदी तक का उछाल आएगा जो उस देश के बजट तक को प्रभावित करेगा. आठ अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ ने रिपोर्ट जारी कर कहा था कि 21 दिन या उससे ज्यादा के लॉकडाउन के कारण भारत में करीब 40 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे जा सकते हैं.

वर्तमान में जो महंगाई बढ़ी है या फिर जो बढ़ेगी उसका सबसे बड़ा कारण लॉकडाउन में आपूर्ति चेन का प्रभावित होना है. वस्तु कम है जबकि उसकी मांग ज्यादा है. सरकार ने हालांकि चार मौकों पर मार्च 25-26 और दो अप्रैल-8 अप्रैल एडवायजरी कर कहा कि कृषि उत्पादों के आवागमन पर कोई रोक नहीं है. मार्च का रिटेल महंगाई दर अभी जारी नहीं हुआ है, संभावना है कि वो 13 अप्रैल को जारी होगा जिसमें बड़ी बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. दिसंबर 2019 में ही रिटेल महंगाई दर 7.35 पर्सेंट दर्ज की गई, जो अनुमान से कहीं ज्यादा थी. अब लॉकडाउन के बाद क्या होगा यह अंदर ही अंदर डरा रहा है.

उदाहरण से समझें कैसे बढ़ी महंगाई

आपूर्ति चेन किस तरह से प्रभावित हुई है उसे आप टमाटर और प्याज के उदाहरण से समझ सकते हैं. आंध्र प्रदेश का मूलाकलचेरुवु टमाटर मंडी के नाम से विख्यात है. यहां एक अप्रैल से 6 अप्रैल तक मात्र 660 टन टमाटर पहुंचा जो 550 रुपये प्रति क्विंटल बिका. अब यही टमाटर जब देश के बाजार में पहुंचा तो 30 से 40 रुपये किलो बिका. आम दिनों मे यही टमाटर 15 से 20 रुपये किलो तक बिकता.

दूसरा उदाहरण एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक का. राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल के पहले हफ्ते में नासिक में 11878 क्विंटल प्याज पहुंचा जो 775 रुपये प्रति किलो की दर से बिका. आंकड़ें बताते हैं कि प्याज के व्यापर में 80 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी. चंडीगढ़ औऱ गुवाहाटी, पटना और रांची जैसे शहरों में 40 से 50 रुपये प्रति किलो बेचा रहा है. आम दिनों के मुकाबले ये दोगुना ज्यादा है.

गृहमंत्रालय का आदेश धरातल पर नहीं

आठ अप्रैल को गृह मंत्रालय ने राज्यों को यह तय करने के लिए कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम , 1955 लागू करें जिससे वस्तुओं का दाम बढ़े नहीं लेकिन किसी भी राज्य ने ऐसा नहीं किया. ऐसे भी मामले सामने आ रहे है कि फूलों और सब्जियों सहित ऐसी कई चीजें हैं जो खेत में बर्बाद हो रही है. उनका कोई खरीददार नहीं है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, मजदूर संघ के अध्यक्ष कुलतरन सिंह अटवाल ने कहा कि गृहमंत्रालय का आदेश धरातल पर नहीं उतरा. राज्यों के बार्डर पर ट्रक खड़े हैं. राज्यों ने नियम बना रखें है कि अगर आप ट्रक खाली करते हैं तो उसे यहां से फिर भर कर ही जाया जा सकता है. खाली ट्रकों के चलने पर मनाही है. उन्होंन कहा इस वनवे ट्रैफिक जल्द कोई समाधान नहीं निकलना होगा. नहीं तो सड़क परिवहन शुल्क को 15 फीसदी तक बढ़ाना होगा.

दाल, आटा, बिस्कुट और नूडल्स की किल्लत

इकनॉमिक टाइम्स के खबर के मुताबिक, देश भर में खाने-पीने और रोजमर्रा की चीजों जैसे आटा, चावल, दाल, बिस्कुट और नूडल्स आदि की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. कई रिटेल और किराना दुकानों पर यह सामान उपलब्ध ही नहीं है. इस सब चीजों की मांग खासी बढ़ गई है. कोरोना वायरस के चलते इन सब उत्पादों का प्रोडक्शन काफी कम हो गया है और ट्रांसपोर्ट सेवा की कमी भी सप्लाई को सीमित किए हुए है. दाल उगाने वाले राज्य जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र पूरी तरह से बंद है. इस वजह से कमी बढ़ गई है.

सभी एफएमसीजी कंपनियों के आगे उत्पादन और सप्लाई की चुनौती है. ब्रिटानिया, आईटीसी, पेप्सिको और पार्ले जैसी कई कंपनियों को प्रोडक्शन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. एफएमएसीजी कंपनियों के कारखाने 20 से 30 फीसदी की क्षमता पर ही काम कर रहे हैं क्योंकि ज्यादातर श्रमिक अपने गांव लौट गये हैं. खाद्य तेलों पर तो सीधे 10 रुपये प्रतिलीटर का इजाफा हुआ है. नामी कंपनियों के उत्पादों के दामों में बढ़ोत्तरी कर दी गई है. प्रिंट रेट वही हैं, लेकिन डीलरों को दिए जा रहे मार्जिन में कटौती की गई है. इस कारण लॉकडाउन में महंगाई आसमान छू रही है.

सामान के दाम में ये आया फर्क

सामान दाम 20 मार्च दाम एक अप्रैल

सरसों का तेल 85 से 88 98 से 120

सोयाबीन रिफाइंड 80 से 90 90 से 115

चीनी 30 से 35 40 से 50

पैक्ड ब्रांडेड चाय 410 450

नोट : उत्पादों के दाम प्रति किलो रुपये में हैं.

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