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केयर्न एनर्जी ने जीता भारत के खिलाफ टैक्स विवाद का केस, सरकार को करना होगा 10,500 करोड़ रुपये का भुगतान

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ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी ने बुधवार को कहा कि उसने भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल की है और मध्यस्थता फोरम ने भारत सरकार को अपने निर्देश में केयर्न एनर्जी को 1.4 अरब डॉलर (10,500 करोड़ रुपये) देने को कहा है. तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण (जिसमें एक सदस्य को भारत सरकार ने नामित किया था) ने आम सहमति से आदेश दिया कि 2006-07 में केयर्न के अपने भारतीय व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन करने पर भारत सरकार द्वारा पूर्व प्रभाव से कर (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) के रूप में 10,247 करोड़ रुपये का दावा वैध नहीं है.

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नयी दिल्ली : ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी ने बुधवार को कहा कि उसने भारत सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल की है और मध्यस्थता फोरम ने भारत सरकार को अपने निर्देश में केयर्न एनर्जी को 1.4 अरब डॉलर (10,500 करोड़ रुपये) देने को कहा है. तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण (जिसमें एक सदस्य को भारत सरकार ने नामित किया था) ने आम सहमति से आदेश दिया कि 2006-07 में केयर्न के अपने भारतीय व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन करने पर भारत सरकार द्वारा पूर्व प्रभाव से कर (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) के रूप में 10,247 करोड़ रुपये का दावा वैध नहीं है.

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न्यायाधिकरण ने भारत सरकार से यह भी कहा कि वह केयर्न को लाभांश, कर वापसी पर रोक और बकाया वसूली के लिए शेयरों की आंशिक बिक्री से ली गई राशि ब्याज सहित लौटाए. इस फैसले की पुष्टि करते हुए केयर्न ने एक बयान में कहा कि न्यायाधिकरण ने भारत सरकार के खिलाफ उसके दावे के पक्ष में फैसला दिया है.

भारत सरकार ने ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश समझौते का हवाला देते हुए 2012 के पूर्व प्रभाव वाले कर कानून के तहत केयर्न के भारतीय कारोबार के पुनर्गठन पर कर की मांग की थी, जिसे कंपनी ने चुनौती दी. केयर्न ने कहा कि न्यायाधिकरण ने आम सहमति से फैसला सुनाया कि भारत ने ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत केयर्न के प्रति अपने दायित्वों का उल्लंघन किया है और उसे 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर का हर्जाना और ब्याज का भुगतान करना होगा.

20 करोड़ के ब्याज समेत देना होगा केस खर्च

सूत्रों ने कहा कि 20 करोड़ डॉलर के ब्याज और मामले को न्यायाधिकरण में ले जाने पर हुए खर्च के रूप में दो करोड़ डॉलर को मिलाकर भारत सरकार को कंपनी के पक्ष में कुल 1.4 अरब डॉलर (10,500 करोड़ रुपये) देने होंगे.

तीन महीने में सरकार को लगा दूसरा झटका

सरकार के लिए पिछले तीन महीने में यह दूसरा झटका है. इससे पहले सितंबर में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने वोडाफोन समूह पर भारत द्वारा पूर्व प्रभाव से लगाए गए कर के खिलाफ फैसला सुनाया था. हालांकि, केयर्न एकमात्र ऐसी कंपनी थी, जिसके खिलाफ सरकार ने पूर्व प्रभाव से कर वसूलने की कार्रवाई की.

सरकार ने वेदांता की बेची पांच फीसदी हिस्सेदारी

न्यायाधिकरण में मामला लंबित रहने के दौरान सरकार ने वेदांता लिमिटेड में केयर्न की पांच फीसदी हिस्सेदारी बेच दी, करीब 1,140 करोड़ रुपये का लाभांश जब्त कर लिया और करीब 1,590 करोड़ रुपये का कर रिफंड नहीं दिया. केयर्न एनर्जी के अलावा, सरकार ने इसी तरह की कर मांग उसकी सहायक कंपनी केयर्न इंडिया (जो अब वेदांता लिमिटेड का हिस्सा है) से की. केयर्न इंडिया ने भी अलग मध्यस्थता मुकदमे के जरिए इस मांग को चुनौती दी है.

मामले का अध्ययन करेगी सरकार

पूरे मामले पर वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सरकार फैसले का अध्ययन करेगी और इसके सभी पहलुओं पर वकीलों के साथ सलाह ली जाएगी. बयान में कहा गया कि इस परामर्श के बाद सरकार सभी विकल्पों पर विचार करेगी और आगे कार्रवाई के बारे में निर्णय लेगी, जिसमें उचित मंच पर कानूनी कार्रवाई भी शामिल है.

सरकार ने अभी तक वोडाफोन के मामले में नहीं दी है चुनौती

सूत्रों ने बताया कि सरकार ने अभी तक वोडाफोन मामले में न्यायाधिकरण के फैसले को चुनौती नहीं दी है और केयर्न मध्यस्थता फैसले के बाद इस पर जल्द कोई निर्णय किया जा सकता है.

Also Read: केयर्न एनर्जी की पिछली डेट से टैक्स डिमांड पर 2020 के जून में आ सकता है पंचाट का फैसला

Posted By : Vishwat Sen

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