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मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने कहा, नोटबंदी से कर संग्रह के मोर्चे पर मिली बड़ी कामयाबी

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नयी दिल्ली : मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने नोटबंदी को सरकार के लिए उम्मीद के विपरीत ‘राजनीतिक रूप से बहुत कामयाब’ बताते हुए कहा है कि इससे नकदीरहित लेन-देन बढ़ा है तथा कर संग्रह के मोर्चे पर भी बड़ी सफलता मिली है. मोदी सरकार के तीन साल पूरा होने के मौके पर समाचार पत्रिका […]

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नयी दिल्ली : मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने नोटबंदी को सरकार के लिए उम्मीद के विपरीत ‘राजनीतिक रूप से बहुत कामयाब’ बताते हुए कहा है कि इससे नकदीरहित लेन-देन बढ़ा है तथा कर संग्रह के मोर्चे पर भी बड़ी सफलता मिली है. मोदी सरकार के तीन साल पूरा होने के मौके पर समाचार पत्रिका आउटलुक (हिंदी) के साथ बातचीत में सुब्रमणियम ने नोटबंदी के सवाल पर कहा, ‘‘नोटबंदी को में चार तरह से देखता हूं.
1. असंगठित क्षेत्र को इसका नुकसान जरूर उठाना पड़ा, लेकिन इस नुकसान का आकलन कर पाना मुश्किल है. 2. जीडीपी में भी इसका नुकसान हुआ. आर्थिक समीक्षा में इस नुकसान के बारे में हमने जो आकलन किया और केंद्रीय साख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने जो अनुमान लगाया, वास्तविक नुकसान कहीं इन दोनों के बीच में है.
3. यह मेरे लिए पहेली की तरह है. मेरा अनुमान था कि इससे जीडीपी में दो प्रतिशत तक नुकसान होगा, लेकिन नकदी की जबरदस्त कमी के बावजूद जिस तरह से आर्थिक गतिविधियों में कमी नहीं आयी, फसलों की बुआई में कमी नहीं आयी, उससे लगता है कि लोगों ने नकदी की किल्लत का हल निकाल लिया था.
4. उम्मीद के विपरीत यह कदम सरकार के लिए राजनीतिक तौर पर बहुत कामयाब साबित हुआ. नकदी रहित लेन-देन बढ़ा और कर संग्रह के मोर्चे पर भी बड़ी कामयाबी मिली.

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सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के बावजूद रोजगार के अवसर नहीं बढ़ने के सवाल पर सुब्रमणियम ने कहा, ‘‘मोटे तौर पर हम मान सकते हैं कि अर्थव्यवस्था उतनी तेजी से रोजगार पैदा नहीं कर रही है, जितनी जरूरत है. खासतौर से अच्छी नौकरियों के बारे में किसी को अंदाजा नहीं है कि कितनी नौकरियां आ रहीं हैं. यह भी सही है कि रोजगार भी बड़े पैमाने पर पैदा नहीं हो रहे हैं. इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है. हल खोजने के बजाय समस्या का पता लगाना आसान होता है.’

मुख्य आर्थिक सलाहकार सुब्रमणियम ने कहा कि वास्तव में देश में बेरोजगारी की समस्या नहीं है, बल्कि समस्या है अच्छी नौकरियों की. उन्होंने कहा, ‘‘लोग काम तो कुछ न कुछ ढूंढ़ ही लेते हैं, लेकिन सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिहाज से जैसी नौकरियां होनी चाहिए, वैसी नौकरी की समस्या है.’ उन्होंने कहा कि रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए एक साथ कई मोर्चों पर काम करना होगा. इसके लिए सबसे पहले अर्थव्यवस्था में वृद्धि चाहिए. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाने की जरूरत है. इसके बाद कपड़ा, कृषि, निर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत है.

केंद्र सरकार के पहले तीन साल के कामकाज पर सुब्रमणियम ने कहा इसका जवाब बहुत आसान है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नियमों को उदार बनाना भी बड़ा कदम है. लेकिन, मुख्यत: चार कदम ये हैं-
1. यह सरकार अर्थव्यवस्था में स्थायित्व लेकर आयी है.
2. सरकार ने सार्वजनिक संसाधनों के आवंटन की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया और भ्रष्टाचार को दूर किया है.
3. जनधन-आधार-मोबाइल (जैम) की जो व्यवस्था खड़ी की है, वह बहुत बड़ा काम है.
4. जीएसटी

चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ रणनीति पर सुब्रमणियम ने कहा कि यह चीन की विदेश नीति का केंद्र बिंदु लगता है. चीन सुपरपॉवर बनना चाहता है. पहले चीन ने अफ्रीका पर ध्यान दिया आज पूरी अफ्रीका में आपको चीन की छाप नजर आती है. अब वह एशिया पर ध्यान लगा रहा है. ‘जहां तक वन बेल्ट, वन रोड की बात है, तो चीन इसके जरिये अपना निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. जब दुनिया में आर्थिक वृद्धि दर कम हो रही है, व्यापार घट रहा है, उस दौर में वह अपने संसाधनों के जरिये निर्यात बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. पहले चरण में चीन ने खूब निर्यात किया और विदेशी मुद्रा कमाई, अब दूसरे चरण में चीन अपने माल के लिए अपने ही पैसे से विश्व में बाजार खड़ा कर रहा है.’

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