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वैश्विक रेटिंग एजेंसियों पर बरसे सीईए सुब्रमणियम, बोले – भारत-चीन के आकलन में अपना रहीं पूर्वाग्रही मानदंड

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बेंगलुरु : मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी विकास के बावजूद भारत की रेटिंग में सुधार न किये जाने को लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसियां भारत और चीन के मामले में पूर्वाग्रही मानदंड अपना रही हैं. वैश्विक एजेंसियों ने भारत को सबसे […]

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बेंगलुरु : मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) अरविंद सुब्रमणियन ने भारतीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी विकास के बावजूद भारत की रेटिंग में सुधार न किये जाने को लेकर वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि रेटिंग एजेंसियां भारत और चीन के मामले में पूर्वाग्रही मानदंड अपना रही हैं. वैश्विक एजेंसियों ने भारत को सबसे निचले निवेश ग्रेड में रखा है, जिससे वैश्विक बाजारों में ऋण की लागत ऊंची पडती है, क्योंकि इससे निवेशकों की अवधारणा जुड़ी होती है.

इसे भी पढ़ें : फिच ने फिर नहीं बदली भारत की रेटिंग, 11 साल से रेटिंग का एक ही स्तर पर बरकार

सीईए ने कहा कि दूसरे शब्दों में कहा जाये रेटिंग एजेंसियों का चीन और भारत को लेकर नजरिया उचित नहीं है और यह असंगत है. एजेंसियों के इस रिकॉर्ड को देखते हुए (जिसे हमें खराब मानक कहते हैं) मेरा सवाल यह है कि हम इन रेटिंग एजेंसियों के विश्लेषण को गंभीरता से क्यों लेते हैं. सबप्राइम संकट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मार्गेज समर्थन वाली प्रतिभूतियों को एएए रेटिंग का प्रमाणपत्र देने को लेकर भी उनकी भूमिका पर सवाल उठे थे, जिसमें अमेरिका के 2008 के वित्तीय संकट में ऐसी दूषित संपत्तियां भी शामिल थीं.

वित्तीय संकट की चेतावनी देने में विफल रही हैं एजेंसियां

सीईए सुब्रमणियम ने कहा कि इसके अलावा वित्तीय संकट को लेकर पहले से चेतावनी नहीं देने की विफलता को लेकर भी उन पर सवाल उठे थे. सुब्रमणियन ने वीकेआरवी स्मृति व्याख्यान में कहा कि घरेलू मोर्चे पर देखा जाये, तो विशेषज्ञोँ के विश्लेषण और आधिकारिक फैसलों में स्पष्ट संबंध है. ब्रमणियन ने कहा कि नीतिगत फैसलों से पहले विशेषज्ञों के आकलन महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन एक बार निर्णय होने के बाद यह देखने वाली बात होती है कि किस तरह विश्लेषण को लेकर बोली बदलती है. विश्लेषक आधिकारिक फैसले को तर्कसंगत ठहराने के लिए पीछे हटने लगते हैं.

शक्तिकांत दास ने भी जाहिर की थी नाराजगी

गौरतलब है कि आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने भी पिछले सप्ताह वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा था कि उनकी रेटिंग जमीनी सच्चाई से कोषों दूर है. उन्होंने रेटिंग एजेंसियों को आत्म निरीक्षण करने की हिदायत दे डाली. उन्होंने कहा था कि जो सुधार शुरू किये गये हैं, उन्हें देखते हुए निश्चित ही रेटिंग में सुधार का मामला बनता है. भारत पहले भी रेटिंग एजेंसियों के तौर तरीकों पर सवाल उठाता रहा है.

भारत ने पहले भी खड़े किये थे सवाल

भारत का कहना है कि भुगतान जोखिम मानदंडों के मामले में दूसरे उभरते देशों के मुकाबले भारत की स्थिति अधिक अनुकूल है. खास तौर पर एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स पर सवाल उठे हैं, जिसने बढ़ते कर्ज और घटती वृद्धि दर के बावजूद चीन की रेटिंग को एए- रखा है. वहीं, भारत की रेटिंग को कबाड या जंक से सिर्फ एक पायदान ऊपर रखा गया है. मूडीज और फिच ने भी इसी तरह की रेटिंग दी है. इसके लिए इन एजेंसियों ने एशिया में सबसे अधिक राजकोषीय घाटे का उल्लेख किया है, जिससे भारत की सॉवरेन रेटिंग प्रभावित हुई है.

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