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टीसीएस के कामयाब बॉस रहे चंद्रशेखरन के लिए टाटा संस में क्या हैं पांच बड़ी चुनौतियां?

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मुंबई : टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को सफलतापूर्वक नेतूत्व प्रदान करते हुए एक मुकाम तक पहुंचाने वाले एन चंद्रशेखरन ने टाटा संस के चेयरमैन के रूप में मंगलवार को पदभार ग्रहण कर लिया है, लेकिन टाटा संस को नयी ऊंचाइयों तक ले जाना अब उनके सामने बड़ी चुनौती है. टाटा संस का नेतृत्व संभालने के साथ […]

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मुंबई : टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को सफलतापूर्वक नेतूत्व प्रदान करते हुए एक मुकाम तक पहुंचाने वाले एन चंद्रशेखरन ने टाटा संस के चेयरमैन के रूप में मंगलवार को पदभार ग्रहण कर लिया है, लेकिन टाटा संस को नयी ऊंचाइयों तक ले जाना अब उनके सामने बड़ी चुनौती है. टाटा संस का नेतृत्व संभालने के साथ ही उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती संस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए नये सहयोगियों की नियुक्त करना होगा. इसके अलावा उनके सामने अन्य अनेक चुनौतियां भी हैं. जानिये, टाटा संस के सफर में चंद्रशेखरन के सामने खड़ी पांच प्रमुख चुनौतियों को…

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भंग जीईसी का करना होगा पुनर्गठन

टाटा संस के पूर्व चेयरमैन सायरस मिस्त्री को समूह से निष्कासित किये जाने के बाद समूह के कार्यकारी परिषद (जीईसी) को भंग कर दिया गया है. टाटा संस के नवनियुक्त चेयरमैन एन चंद्रशेखरन को सबसे पहले समूह के भविष्य का निर्धारण करने के लिए ग्लोबल ट्रेंड्स, लेगेसी इशू, कानूनी मामले, संरक्षणवाद और भारी कर्ज को ध्यान में रखते हुए समूह के कार्यकारी परिषद का गठन करना होगा. इस दौरान यह भी संभव है कि कार्यकारी परिषद के गठन के दौरान उन्हें कई अहम और कड़े फैसले भी लेने पड़ सकते हैं.

कारोबारी घाटे को पाटने के लिए करने होंगे उपाय

चंद्रशेखरन के सामने टाटा समूह के कारोबारी घाटे को पाटना और फिर उसमें वृद्धि करना दूसरी सबसे बड़ी चुनौती है. पिछले सप्ताह ही टाटा मोटर्स को घरेलू बाजार में कारोबारी घाटे के साथ विदेशी बाजार में जगुआर लैंड रोवर की बिक्री कम होने के चलते पिछली तिमाही के दौरान शुद्ध मुनाफे में करीब 96 फीसदी गिरावट दर्ज की गया है. इसके साथ ही, टाटा मोटर्स की नैनो परियोजना को लेकर भी चुनौतियां हैं. ऐसे में उन्हें इस मसले का समाधान भी ढूंढ़नाहोगा और यह उनके लिए एक चुनौती है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले से भी करना होगा चुनौती का सामना

करीब एक महीना पहले 20 जनवरी को अमेरिका के नये राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यभार संभालने के बाद दुनिया भर के आईटी क्षेत्र की कंपनियों के सामने कई बड़ी चुनौतियां खड़ी हो गयी हैं. ऐसे में भारत की आईटी कंपनियां भी अछूती नहीं हैं. खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से एच1 बी वीजा को लेकर जो फैसले लिये जायेंगे, उससे भारत से आईटी पेशेवरों की होने वाली आउटसोर्सिंग पर खतरा मंडरा रहा है. इसके साथ ही अमेरिका में काम करने वाले आईटी क्षेत्र के पेशेवरों के रोजगार पर भी प्रतिकूल असर पड़ने के आसार हैं. बताया जाता है कि टाटा समूह की आईटी क्षेत्र की कंपनी टीसीएस में यूएस बेस्ड ई-मेडिकल वेंडर के विषय में 940 मिलियन डॉलर का कानूनी मामला भी चिंता का विषय बना हुआ है. हालांकि, एच 1 बी वीजा को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात कर कुछ सीनेटरों ने उनके फैसले का विरोध किया है.

समूह के राजस्व में भी करनी होगी वृद्धि

टाटा मोटर्स और टीसीएस ने मिलकर ग्रुप के लिए 58 फीसदी राजस्व और 2016 के वित्तीय वर्ष में 89 फीसदी का लाभ दिया है. चंद्रशेखरन के लिए सबसे बड़ी चुनौती टीसीएस और टाटा मोटर्स पर निर्भरता घटाना और अन्य समूह के कारोबार से राजस्व बढ़ाना होगा. इसके लिए टाटा क्लिक और टाटा डिजिटल हेल्थ जैसे नये कारोबार पर अधिक ध्यान देना होगा. इसके साथ ही, टाटा स्टील की ब्रिटेन इकाई के विवाद को भी सुलझाने की दिशा में उन्हें अहम कदम उठाने होंगे.

सुलझाना होगा डोकोमो विवाद

दूरसंचार क्षेत्र में जापानी सहयोगी डोकोमो के साथ चल रहे 1.2 बिलियन डॉलर के कानूनी मामले को सुलझाने में भी चंद्रशेखरन को अहम भूमिका निभानी होगी. समूह के ऊपर 25 बिलियन डॉलर का कर्ज है, जो एक और चिंता का विषय है. बाजार से नकदी की वसूली, कर्जों का निपटारा और गैर-संक्षारक संपत्तियों को कब्जे में लेने में भी चंद्रशेखरन को अपनी क्षमताएं का प्रदर्शन करना होगा.

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