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राजकोषीय मजबूती की बजाय वृद्धि पर जोर से हो सकता है नुकसान : HSBC

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नयी दिल्ली : सरकार के राजकोषीय मजबूती को दांव पर लगाकर आर्थिक वृद्धि दर को प्राथमिकता देने की संभावित पहल का फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है. यह बात एचएसबीसी ने कही. एचएसबीसी ने एक रपट में कहा कि भारत की संभावना के प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं है. ब्रोकरेज कंपनी ने कहा कि भारतीय […]

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नयी दिल्ली : सरकार के राजकोषीय मजबूती को दांव पर लगाकर आर्थिक वृद्धि दर को प्राथमिकता देने की संभावित पहल का फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है. यह बात एचएसबीसी ने कही. एचएसबीसी ने एक रपट में कहा कि भारत की संभावना के प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं है. ब्रोकरेज कंपनी ने कहा कि भारतीय शेयर बाजार में हालिया बिकवाली के मद्देनजर उम्मीद और वास्तविकताओं के बीच फर्क है. कंपनी ने कहा कि नीति निर्माताओं के लिए सबसे अच्छा यह रहेगा कि वे चुनिंदा वृद्धि पहलों के लिए कोष मुहैया कराते हुए राजकोषीय पुनर्गठन के लक्ष्य पर कायम रहें.

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रपट में कहा गया, ‘हमारा मानना है कि राजकोषीय मजबूती के मुकाबले आर्थिक वृद्धि को बढावा देने से फायदे के बजाय नुकसान हो सकता है. इससे बाजार का भरोसा प्रभावित हो सकता है क्योंकि ज्यादा बडे राजकोषीय घाटे से सरकारी ऋण बढेगा और बांड प्रतिफल बढेगा जिससे नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश कम हो सकती है.’

एचएसबीसी के मुताबिक वित्त मंत्री अरुण जेटली अगले वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को 3.8 प्रतिशत रख सकते हैं जबकि इससे पहले इसे 2016-17 में 3.5 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य तय किया गया था. एचएसबीसी इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने एक नोट में कहा है, ‘हमारा मानना है कि सरकार पर खर्च का काफी दबाव है. सातवें वेतन आयोग को अमल में लाने से वेतन खर्च बढने से सरकार राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.8 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रख सकती है.’ अगले वित्त वर्ष का बजट 29 फरवरी को पेश किया जायेगा.

Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.

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