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वित्त वर्ष 2015-16 में कई क्षेत्रों की सब्सिडी समाप्त कर सकती है सरकार

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सेंट्रल डेस्क केंद्र सरकार वित्त वर्ष 2015-16 के बजट में सब्सिडी के प्रावधान में 20 फीसदी की कटौती कर सकती है. चालू वित्त वर्ष के बजट में सब्सिडी में करीब 2.51 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान था, जो अगले साल के बजट में दो लाख करोड़ तक रह सकती है. सरकार इस मद में करीब […]

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सेंट्रल डेस्क

केंद्र सरकार वित्त वर्ष 2015-16 के बजट में सब्सिडी के प्रावधान में 20 फीसदी की कटौती कर सकती है. चालू वित्त वर्ष के बजट में सब्सिडी में करीब 2.51 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान था, जो अगले साल के बजट में दो लाख करोड़ तक रह सकती है. सरकार इस मद में करीब 50 हजार करोड़ रुपये की कटौती कर सकती है. सरकार की ओर से जिन क्षेत्रों की सब्सिडी में कटौती करने का मन बना रही है, उनमें कृषि, खाद्य, उर्वरक, पेट्रोलियम, शिक्षा, चिकित्सा और आइटी क्षेत्र शामिल हैं. सरकार द्वारा बजट में दी जा रही सब्सिडी में कटौती का प्रावधान देश के आर्थिक सुधार के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका के दबाव में की जा रही है. इसका कारण यह है कि अमेरिका दोहा व्यापार विकास एजेंडा वार्ता के तहत भारत और चीन की घरेलू कृषि सहित बजट सब्सिडी में कटौती करना चाहता है.

शुक्रवार को विश्व व्यापार संगठन की व्यापार वार्ता समिति की बैठक में अमेरिका के वाणिज्यिक दूत माइकल पंक ने सुझाव दिया है कि जब अमेरिका अपने यहां बजट सब्सिडी में भारी कटौती कर सकता है, तो भारत और चीन क्यों नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि अमेरिका अपने यहां घरेलू कृषि सब्सिडी में कटौती करके रक्त का भुगतान कर रहा है, तो फिर भारत और चीन पानी के माफिक कटौती क्यों करेंगे. हालांकि ये दोनों देश अपनी जरूरतों को देखते हुए वर्तमान कृषि सब्सिडी कार्यक्रम से छेड़छाड़ नहीं करेंगे. उन्होंने सुझाव दिया है कि दोहा वार्ता की जरूरतों को देखते हुए और खास कर 2008 के संशोधित मसौदे के आधार पर वाशिंगटन पानी और हवा के बदले रक्त का भुगतान कर रहा है. लेकिन भारत और चीन जैसे विकासशील दोहा मसौदे के आधार पर किसी प्रकार के कदम नहीं उठा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसे हम किसी भी तरह से समर्थन नहीं कर सकते.

सब्सिडी कटौती में क्षेत्रवार अंतर चाहता है अमेरिका

सब्सिडी कटौती के मामले में अमेरिका विकासशील देश द्वारा अपनाये जा रहे अंतर का समर्थन नहीं कर रहा है. वह विकासशील देशों की सब्सिडी कार्यक्रम के आधार पर वर्गीकरण के आधार पर इसमें अंतर करना चाहता है. विशेषत: वह दोहा व्यापार वार्ता में नयी वास्तविकता के आधार पर सदस्य देशों द्वारा उनकी जरूरतों के हिसाब से फिर से समझौता करना चाहता है.

उरुग्वे वार्ता के बाद प्रतिबद्ध नहीं है भारत

भारत उरुग्वे वार्ता के बाद अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, नार्वे और स्विट्जरलैंड की तरह दोहा वार्ता को लेकर किसी प्रकार की प्रतिबद्धता नहीं कर रहा है. दोहा वार्ता के समय से ही भारत लगातार अमेरिका समेत यूरोपीय संघ के प्रस्तावों का विरोध करता आ रहा है.

भारत पर 14 वर्षो से बनाया जा रहा है दबाव

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) समेत दुनिया के विकसित देश वर्ष 2001 से लगातार भारत समेत विकासशील देशों पर किसानों को दी जानेवाली सब्सिडी में कटौती और विकासशील देशों को किये जानेवाले निर्यात पर शुल्क में छूट जैसे मुद्दों पर दबाव बनाया जा रहा है. इसका भारत के नेतृत्व में विकासशील देश उसी समय से विरोध करते आ रहे हैं. भारत के पूर्व वाणिज्य मंत्री कमलनाथ और आनंद शर्मा ने रणनीतिक ढंग से इन विषयों पर विकसित देशों समेत विकासशील देश और विश्व व्यापार संगठन से चर्चा भी की है.

बैठक के लिए 2001 में ही दिया गया मसौदा

शुक्रवार 20 फरवरी, 2015 को विश्व व्यापार संगठन की व्यापार वार्ता समिति की हुई बैठक का मसौदा 21 अप्रैल, 2001 को ही बांटा जा चुका था. इसमें कृषि, औद्योगिक उत्पाद, सेवाओं और नियमों सहित दोहा दौर के सभी पहलुओं से जुड़ी बातचीत की मौजूदा स्थिति की जानकारी दी गयी है. विकसित देश इस बैठक में क्षेत्रवार बातचीत करना चाहते हैं, जिसके लिए डब्ल्यूटीओ के महानिदेशक पास्कल लैमी ने अलग से नोट दिया है. इस विषय पर विरोध कर रहे सदस्य देशों को स्थिति से अवगत कराया गया है.

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