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”सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधारों का इस्तेमाल जरूरी”

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नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को कहा कि मांग में सुधार तथा सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए संरचनात्मक सुधारों का उपयोग करना होगा. उन्होंने कहा कि 11 साल के न्यूनतम स्तर तक गिर गयी आर्थिक वृद्धि में अब सुधार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं. हालात […]

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नयी दिल्ली : रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को कहा कि मांग में सुधार तथा सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए संरचनात्मक सुधारों का उपयोग करना होगा. उन्होंने कहा कि 11 साल के न्यूनतम स्तर तक गिर गयी आर्थिक वृद्धि में अब सुधार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं. हालात में इस सुधार को लंबे समय तक बनाये रखने की जरूरत है.

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दास ने एक विशेष बातचीत के दौरान कहा कि चीन में कोरोना वायरस के प्रभाव पर हर नीति-निर्माता को करीब से नजर रखने की जरूरत है, ताकि उसके अनुसार उपयुक्त कदम उठाये जा सके. आरबीआई गर्वनर ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण के 2020-21 के बजट और हाल के कदमों से मांग को पटरी पर लाने और खपत बढ़ाने का एक अनुकूल आर्थिक माहौल बना है. अब यह जरूरी है कि भूमि और श्रम सुधारों को आगे बढ़ाया जाए, कृषि विपणन में कार्य कुशलता लायी जाए तथा तथा कौशल विकास पर जोर हो.

उन्होंने कहा कि आरबीआई ने 2019 की शुरुआत में आर्थिक वृद्धि में आने वाली नरमी को महसूस किया था और मुद्रास्फीति में नरमी से जो गुंजाइश बनी थी, उसका उपयोग कर लगातार पांच बार नीतिगत दर में कटौती की गयी थी. दास ने अर्थव्यवस्था में नरमी के कारणों के बारे में कहा कि कमजोर मांग के साथ-साथ वैश्विक व्यापार और व्यवसाय में अनिश्चितता के चलते काराखानों की उत्पादन क्षमता का उपयोग का स्तर कम चल रहा है. इसके अलावा, बैंकों के अवरुद्ध कर्जों तथा कंपनियों पर बढ़ते कर्ज के बोझ के चलते बैलेंस-शीट की जुड़वा समस्या बन गयी है.

उन्होंने कहा कि कुछ सकारात्मक चीजें दिख रही हैं. चीजें सुधर रही हैं, लेकिन हमें यह अभी इंतजार करना और यह देखना है कि ये सब टिकाऊ हैं या नहीं. दास ने इस बारे में कुछ भी कहने से मना कर दिया कि जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.5 फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर निचला स्तर था और यह अब इससे नीचे नहीं जायेगी.

उन्होंने कहा कि जैसा मैंने कहा कि सकारात्मक गतिविधियों के सबूत हैं, लेकिन यह कहना कि यहां से अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि आयेगी, उससे पहले हमें यह देखना है कि ये चीजें कितनी टिकाऊ हैं. उन्होंने कहा कि अगर आप हमारे अनुमान को देखें, जो हमने दिया है, चीजें अगले वित्त वर्ष से सुधरनी चाहिए. हमने 2020-21 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 6 फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जो चालू वित्त वर्ष में 5 फीसदी रह सकती है.

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने 2019-20 में आर्थिक वृद्धि दर 5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है, जो 11 साल का न्यूनतम स्तर है. उन्होंने कहा कि वह मौजूदा नरमी को संरचनात्मक या चक्रीय के रूप में वर्गीकरण करने से परहेज करेंगे. मौजूदा आर्थिक नरमी से जुड़े सवाल पर दास ने कहा कि ऐसे सवालों के बारे में मेरा जवाब यही है कि नरमी के चक्र को खत्म करने के उपायों के साथ-साथ संचरचनात्मक कदम उठायें जाएं. मैंने पहले भी यह कहा है. नरमी को खत्म करने के उपाय करने की जरूरत है और मुझे लगता है कि बजट में इस दिशा में कदम उठाये गये हैं.

उन्होंने कहा कि संरचनात्मक पहलू भी हैं, जिस पर गौर करने की जरूरत है. बजट में इनमें से कुछ चीजों का जिक्र किया गया है. इसीलिए कुछ और संचनात्मक बदलावों को लेकर मेरा नजरिया सकारात्मक है. दास ने कहा कि कृषि विपणन के क्षेत्र में संरचनात्मक सुधार होने चाहिए, ताकि आपूर्ति और मूल्य शृंखलाएं अधिक कुशल हों.

एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में अनिश्चितताएं रही हैं. ये अनिश्चितताएं वैश्विक कारकों के साथ घरेलू कारकों का नतीजा है. ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होना और अमेरिका तथा चीन के बीच व्यापार तनाव से वैश्विक अनिश्चितताएं बढ़ी हैं. अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस के प्रभाव के बारे में दास ने कहा कि 2003 में फैले सार्स (सेवियर एक्युट रेसपिरेटरी सिंड्रोम) के मुकाबले यह ज्यादा बड़ा है.

साथ ही, उन्होंने कहा कि चीन बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में उसकी हिस्सेदारी है और ऐसे में वहीं नरमी का प्रभाव का दुनिया भर में दिखोगा.उन्होंने कहा कि जहां तक भारत का सवाल है कि चीन महत्वपूर्ण व्यापार भागीदार है और सरकार तथा मौद्रिक प्राधिकरण दोनों स्तरों पर नीति निर्माताओं को इसको लेकर सतर्क रहने की जरूरत है.

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