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”पूंजी व्यय बढ़ाने की जरूरत, 2020-21 में 5.5 फीसदी रह सकती है आर्थिक वृद्धि दर”

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नयी दिल्ली : आर्थिक सुस्ती के परिदृश्य के बीच इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च एजेंसी ने बुधवार को कहा कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने और खपत बढ़ाने के लिए रोजगार सृजन वाले पूंजी व्यय को बढ़ाने की जरूरत है. उसका कहना है कि अंतिम छोर पर खड़े लोगों की जेब में पैसा पहुंचाने के उपाय […]

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नयी दिल्ली : आर्थिक सुस्ती के परिदृश्य के बीच इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च एजेंसी ने बुधवार को कहा कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने और खपत बढ़ाने के लिए रोजगार सृजन वाले पूंजी व्यय को बढ़ाने की जरूरत है. उसका कहना है कि अंतिम छोर पर खड़े लोगों की जेब में पैसा पहुंचाने के उपाय किये जाने चाहिए.

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सरकार के आर्थिक वृद्धि को गति देने के तमाम उपायों के बावजूद अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त बनी हुई है. फिच समूह की इस एजेंसी का कहना है कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 2020-21 में भी मामूली सुधार के साथ 5.5 फीसदी रह सकती है. हालांकि, इसके नीचे जाने का जोखिम बना रहेगा.

एजेंसी का यह अनुमान केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के चालू वित्त वर्ष के 5 फीसदी वृद्धि के अनुमान से आधा फीसदी अंक ही अधिक है. रेटिंग एजेंसी ने कहा कि सरकार को वित्त वर्ष 2020-21 का बजट इस रूप से बनाना चाहिए, जिसमें व्यय को युक्तिसंगगत बनाया जाए. इसके लिए प्राथमिकता तय करनी होगी. व्यय इस रूप से हो जिससे प्रत्यक्ष रोजगार सृजित हो और समाज के निचले तबकों की जेब में पैसा पहुंचे. इससे खपत बढ़ाने में मदद मिलेगी. साथ ही, राजस्व सृजित करने के सभी उपायों पर गौर करना होगा.

इंडिया रेटिंग के निदेशक (पब्लिक फाइनेंस) और प्रधान अर्थशास्त्री सुनील कुमार सिन्हा ने यहां संवाददाताओं से कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर अगले वित्त वर्ष 2020-21 में कुछ सुधरकर 5.5 फीसदी रह सकती है. सिन्हा ने कहा कि अगले वित्त वर्ष में कुछ सुधार की उम्मीद है, लेकिन जोखिम बना हुआ है.

उन्होंने कहा कि वृद्धि में कमी की प्रमुख वजहों में बैंक कर्ज में नरमी के साथ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के कर्ज में उल्लेखनीय रूप से कमी, परिवार आय में कमी के साथ बचत में गिरावट तथा अटकी पड़ी पूंजी के उपयोग का त्वरित विवाद समाधान नहीं हो पाना शामिल हैं. उन्होंने कहा कि इन जोखिमों की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था कम खपत के साथ-साथ कम निवेश मांग के चरण में फंसी हुई है.

रेटिंग एजेंसी के अनुसार, सरकार ने हाल में जो कदम उठाये हैं, उससे मध्यम अवधि में ही राहत मिलने की उम्मीद है. सरकार ने हाल में कंपनी कर में कटौती समेत, सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर निजीकरण को बढ़ावा देने तथा बैंकों के विलय जैसे कदम उठाये हैं. राजकोषीय घाटे के बारे में इंडिया रेटिंग ने कहा कि कर और गैर-कर राजस्व में कमी की आशंका है.

आरबीआई द्वारा किये गये अधिशेष अंतरण पर गौर करने के बावजूद राजकोषीय घाटा मौजूदा वित्त वर्ष में बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.6 फीसदी तक जा सकता है. 2019-20 के बजट में इसके 3.3 फीसदी रहने का अनुमान है. इंडिया रेटिंग ने ग्रामीण बुनयादी ढांचा, सड़क निर्माण, सस्ता मकान और मनरेगा जैसी योजनाओं के लिए बजटीय आबंटन में प्राथमिकता देने के साथ गैर-जरूरी सब्सिडी तथा गैर-जरूरी खर्चों को काबू में करने का सुझाव दिया है.

एजेंसी के अनुसार, सकल स्थिर पूंजी निर्माण लगभग सरकार पर निर्भर है और निजी पूंजी व्यय में कमी है. राजकोषीय बाधाओं बावजूद सरकार पूर्व में बुनियादी ढांचे पर व्यय में कमी नहीं की है और इसके लिए बजट के अलावा दूसरे संसाधनों का भी उपयोग किया. इंडिया रेटिंग का मानना है कि सरकार बुनियादी ढांचा योजनाओं पर व्यय जारी रखेगी और बजटीय और राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा निवेश कोष समेत दूसरे अन्य साधनों का उपयोग करेगी.

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