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इनवायस को लेकर व्यापारी इन बातों का रखें ध्यान
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जीएसटी के लागू होते ही सबसे पहला प्रश्न यह होता है कि इनवायस कैसे जारी किया जाये और पुराने और नये इनवायस के फॉर्मेट में क्या बदलाव आया है. इसे जानना हर व्यापारी के लिए जरूरी है. इसी संदर्भ में चार्टर्ड एकाउंटेंट मशींद्र मशी से विस्तार से बातचीत हुई. उन्होंने बताया कि पुराने कानून में […]
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जीएसटी के लागू होते ही सबसे पहला प्रश्न यह होता है कि इनवायस कैसे जारी किया जाये और पुराने और नये इनवायस के फॉर्मेट में क्या बदलाव आया है. इसे जानना हर व्यापारी के लिए जरूरी है. इसी संदर्भ में चार्टर्ड एकाउंटेंट मशींद्र मशी से विस्तार से बातचीत हुई. उन्होंने बताया कि पुराने कानून में दो तरह के इनवॉइस होते थे. एक टैक्स इनवायस और दूसरा रिटेल इनवायस. टैक्स इनवायस व्यापारी से व्यापारी के बीच इस्तेमाल होता था. रिटेल इनवायस व्यापारी से ग्राहक के बीच में इस्तेमाल होता था.
रिटेल इनवायस खत्म
अब नये कानून में रिटेल इनवायस का कंसेप्ट खत्म कर दिया गया है. अब व्यापारी से व्यापारी के बीच या व्यापारी से ग्राहक के बीच, जो भी लेनदेन करेंगे उसमें टैक्स इनवायस ही जारी करने की व्यवस्था है. नये प्रावधान के तहत टैक्स इनवायस में ही गैर निबंधित व्यक्ति को या ग्राहक को बेचने पर भी टैक्स इनवायस ही जारी करने की व्यवस्था है. 50,000 से अधिक वैल्यू का सामान बेचने पर टैक्स इनवायस में उसमें गैर निबंधित ग्राहक का नाम पता देना होगा.
नये कानून में इनवायस अपने मन से नहीं बनाकर कानून के अनुसार ही आपके इनवायस का कंटेंट होगा यानी कि आप पहले जब इनवायस का फॉर्मेट स्पष्ट नहीं होता था, तो बहुत सारे व्यापारी इनवायस अपने ही फॉर्मेट में बनाते थे यानी कि किसी इनवायस में इंक्लूसिव ऑफ टैक्स होता था, तो किसी इनवॉइस में एक्सक्लूसिव ऑफ टैक्स होता था. लेकिन अब आपको अपने सभी इनवायस में टैक्स के अमाउंट को स्पष्ट करना पड़ेगा.
अब आप अपना इनवायस बनाते समय जीएसटी कानून के हिसाब से जो भी इनवायस का कंटेंट है, उसको समायोजित कर ही अपना इनवायस बनायें और अपने तरीके से न बनायें. जैसा कि हम जानते हैं कि टैक्स रेट के विवाद को खत्म करने के लिए सरकार ने एचएसएन कोड की व्यवस्था की है. यानी आप अपने प्रोडक्ट के एचएसएन कोड के बारे में अवश्य से पता कर लें, जो कि इनवायस में भी उल्लेख करना पड़ता है.
बिल ऑफ सप्लाइ जानें
नये कर प्रणाली में अगर आपने कम्पोजिशन स्कीम चुनी है या आप एक्सेम्प्ट गुड्स में व्यापार करते हैं तो आप टैक्स इनवायस के बदले बिल आॅफ सप्लाई जारी करेंगे. यहां यह जानना जरूरी है कि बिल ऑफ सप्लाई का कांसेप्ट इसलिए हैं क्योंकि उस बिल ऑफ सप्लाई के आधार पर कोई भी खरीदार टैक्स क्रेडिट नहीं ले सकता है.
इतना ही नहीं अगर कोई व्यापारी अपने एक दुकान से दूसरे दुकान में सामान ले जाना चाहते हैं तो उस सामान के साथ उसे डिलीवरी चालान जारी करना पड़ेगा यानी कि आप देख सकते हैं कि सामान के मूवमेंट (एक स्थान से दूसरे स्थान) से पहले आपको या तो टैक्स इनवायस या बिल ऑफ सप्लाई या डिलीवरी चालान जारी करना पड़ेगा. नहीं तो आप गुड्स का मूवमेंट बिना इनवायस के नये कानून के तहत नहीं कर सकते हैं.
एक नयी बात जो नये कानून में आयी है वह यह है कि अगर आप किसी भी ग्राहक से एडवांस पैसा लेते हैं तो उसको रिसीप्ट वाउचर जारी करना पड़ेगा और उस प्राप्त राशि पर आपको टैक्स भी जमा करना पड़ेगा.
इसके बाद मन में एक ख्याल जरूर आता है कि अगर हम किसी से एडवांस पैसा लेते हैं और उसको अगर माल सप्लाई नहीं करते हैं तो उस स्थिति में क्या होगा.तो उस परिस्थिति में कानून में रिफंड वाउचर बनाकर आपको आपका टैक्स क्रेडिट वापस मिल जायेगा. यानी इस बात से सरकार की मंशा स्पष्ट है कि आप ग्राहक से अगर एडवांस भी लेते हैं तो उस पर आप कर अदायेगी कर देंगे.
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