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65 साल से ज्यादा हो जायेगी रिटायरमेंट उम्र, निवेश में गिरावट का दौर खत्म होने के आ रहे संकेत!

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देश में बुजुर्गों की संख्या बढ़ने के कारण रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने का सुझाव स्कूलों के विलय पर जोर जनसंख्या वृद्धि में अगले दो दशक में होगी तेज गिरावट नयी दिल्ली : अगर केंद्र सरकार मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम और उनकी टीम की सलाह पर आगे बढ़ती है, तो देश में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ […]

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देश में बुजुर्गों की संख्या बढ़ने के कारण रिटायरमेंट उम्र बढ़ाने का सुझाव
स्कूलों के विलय पर जोर
जनसंख्या वृद्धि में अगले दो दशक में होगी तेज गिरावट
नयी दिल्ली : अगर केंद्र सरकार मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम और उनकी टीम की सलाह पर आगे बढ़ती है, तो देश में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ कर 65 साल से अधिक हो जायेगी. संसद में पेश आर्थिक सर्वे में रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है. इसके लिए जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, जापान सहित कई देशों का उदाहरण भी दिया गया है. आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत में अगले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि में तेज गिरावट देखने को मिलेगी. इसे देखते हुए सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने और स्कूलों का विलय करने का सुझाव दिया गया है. आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि हालांकि पूरे देश को युवा आबादी का लाभ मिलेगा, लेकिन कुछ राज्य 2030 तक बुजुर्ग आबादी की ओर बढ़ना शुरू कर देंगे.
बिहार-झारखंड और यूपी सहित कई राज्य होंगे ज्यादा बुजुर्ग
इसमें कहा गया है कि लोगों को यह जान कर हैरानी होगी कि देशभर में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में तेज गिरावट के कारण 0-19 आयु वर्ग की आबादी अपने चरम पर पहुंचने के बाद अब नहीं बढ़ रही है. दक्षिणी राज्यों, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में अब प्रजनन दर आबादी की प्रतिस्थापन (मानक) दर से काफी कम हो गयी है.
बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, आदि में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से अधिक रही है, लेकिन इनमें भी काफी कमी देखी गयी है. इसके परिणामस्वरूप, 2021 तक कुल राष्ट्रीय प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर के नीचे पहुंच जाने की संभावना है.
निवेश में गिरावट का दौर खत्म होने के आ रहे संकेत
नयी दिल्ली : आम बजट से एक दिन पहले संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक हालात बेहतर रहने की उम्मीद जतायी गयी है. आर्थिक वृद्धि सात प्रतिशत तक पहुंच जाने की उम्मीद है. इसमें कहा गया है कि देश को अगले पांच साल के दौरान 5,000 अरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए निरंतर आठ प्रतिशत की उच्च आर्थिक वृद्धि के साथ आगे बढ़ना होगा. समीक्षा में उम्मीद जतायी गयी है कि निवेश में गिरावट का दौर खत्म हो गया लगता है.
उपभोक्ता मांग और बैंकों के कर्ज कारोबार में वृद्धि में वृद्धि के संकेत मिलने लगे हैं. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2011-12 से निवेश में गिरावट का रुख बना हुआ है. आर्थिक समीक्षा को सरकार की आर्थिक नीतियों का आईना माना जाता है. इसमें आगाह किया गया है कि आर्थिक वृद्धि की गति धीमी पड़ने से कर संग्रह पर असर पड़ रहा है और ऐसे में कृषि क्षेत्र में बढ़ता खर्च सरकार के लिए राजकोषीय मोर्चे पर समस्या खड़ी कर सकता है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018- 19 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वास्तविक वृद्धि दर पांच साल के निम्न स्तर 6.8 प्रतिशत पर पहुंच गयी.
इससे पिछले वर्ष 2017- 18 में यह 7.2 प्रतिशत रही थी. वित्त वर्ष की चौथी तिमाही की यदि बात की जाए, तो जनवरी से मार्च के तीन महीने में जीडीपी वृद्धि 5.8% रही, जो कि चीन की इस अवधि के दौरान हासिल 6.4% वृद्धि से नीचे रही है. हालांकि, समीक्षा में उम्मीद जतायी गयी है कि 2019- 20 में यह तेजी से सुधर कर सात प्रतिशत पर पहुंच जाने की उम्मीद है.
जीडीपी की वास्तविक वृद्धि दर
पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में (जनवरी से मार्च) जीडीपी वृद्धि 5.8 प्रतिशत रही, जो कि चीन की इस अवधि के दौरान हासिल 6.4 प्रतिशत वृद्धि से नीचे रही है.
2021 तक इस्पात उत्पादन 12.86 करोड़ टन पहुंचने की उम्मीद
आर्थिक समीक्षा में सरकार को 2021 तक देश का इस्पात उत्पादन 12.86 करोड़ टन वार्षिक तक पहुंचने का अनुमान है. इसके तहत बुनियादी ढांचा, निर्माण और वाहन क्षेत्रों में निवेश की बदौलत 2023 तक इसका उपभोग भी 14 करोड़ टन वार्षिक तक पहुंचने का अनुमान है. देश का कच्चा इस्पात उत्पादन 2018-19 में 10.65 करोड़ टन रहा. यह 2017-18 के 10.31 करोड़ टन के मुकाबले 3.3 प्रतिशत अधिक है.
वार्षिक कच्चा इस्पात उत्पादन वर्तमान व लक्ष्य
2017-18 10.31
2018-19 10.65
2021 तक 12.86
2023 तक 14
2030 तक 25.5
खपत वर्तमान व लक्ष्य प्रति व्यक्ति
वैश्विक औसत 214 किग्रा
भारत वर्तमान 69 किग्रा
2030 तक भारत 160 किलोग्राम का लक्ष्य
प्राथमिक शिक्षा पर जोर के अच्छे परिणाम, 12वीं तक छात्राओं की संख्या बढ़ी
प्राथमिक शिक्षा पर विशेष जोर देने के सुखद परिणाम आये हैं. 12वीं तक की शिक्षा में लड़कियों की संख्या में वृद्धि हुई है. लड़कियों की नामांकन दर लड़कों के नामांकन दर से अधिक हुई है. हालांकि, आर्थिक समीक्षा में 12वीं कक्षा के स्तर पर पढ़ाई छोड़ना, शिक्षकों की कमी और उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए आवश्यक बदलाव को चिंता का विषय माना गया है. पहली बार 8वीं कक्षा तक कक्षावार और विषयवार ज्ञान प्राप्ति को शिक्षा में गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए विकसित किया गया है. समग्र शिक्षा कार्यक्रम का उद्देश्य नर्सरी से 12वीं कक्षा तक गुणवत्तापूर्ण और समावेशी शिक्षा सुनिश्चित करना है.
बढ़ेगी कामकाजी आबादी
कामकाजी आबादी 2021-31 के बीच करीब 97 लाख प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगी और 2031-41 के बीच 42 लाख प्रति वर्ष की रफ्तार से बढ़ेगी. उन कंपनियां के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है, जो युवा उपभोक्ताओं की मांग में बड़ी वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं. 0-19 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की संख्या भी गिरनी शुरू हो गयी है. इसके 41% से घटकर 2041 में 25% रहने का अनुमान है. वहीं, 60 वर्ष आयु वर्ग वाले लोगों की संख्या 2011 के 8.6% से बढ़ कर 2041 तक 16 प्रतिशत पर पहुंच जायेगी.
8% की आर्थिक वृद्धि चुनौती
समीक्षा में कहा गया है कि 2024- 25 तक 5,000 अरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए आने वाले सालों में लगातार आठ प्रतिशत की सालाना आर्थिक वृद्धि के साथ आगे बढ़ना होगा. वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम द्वारा तैयार आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विशेष तौर पर निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ा कर ही तीव्र आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है और लक्ष्य को पाया जा सकता है.
चिंता की बात 5-14 आयुवर्ग की आबादी में गिरावट
भारत में जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी प्रमुख राज्यों में 5 से 14 आयु वर्ग की आबादी में गिरावट शुरू हो गयी है. यह उम्र प्राथमिक विद्यालय जाने वाले बच्चों से मेल खाती है. लोगों की सोच के विपरीत, कई राज्यों में स्कूलों के विलय कर देने पर विचार करना चाहिए जो कि व्यावहारिक रहेगा बजाय इसके की नये स्कूल खोले जाएं.
खेती की चिंता हल करने के सुझाव
ग्रामीण क्षेत्र में मांग कितनी बढ़ेगी यह कृषि क्षेत्र में हालात बेहतर होने और कृषि उपज की मूल्य स्थिति से तय होगा. माॅनसून की स्थिति पर भी काफी कुछ निर्भर होगा. कुछ क्षेत्रों में सामान्य से कम वर्षा होने का अनुमान लगाया गया है. समीक्षा में पानी के कुशल उपयोग पर भी जोर दिया गया है.
खपत का जीडीपी में 60% योगदान
भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोग यानी खपत का जीडीपी में 60 प्रतिशत योगदान है. समीक्षा में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान कच्चे तेल के दाम में गिरावट बनी रहेगी. इससे खपत बढ़ने की उम्मीद है. हालांकि, इसके साथ ही सावधान भी किया गया है कि खपत में कमी का जोखिम भी बना हुआ है.
खाद्य सब्सिडी व्यय को युक्तिसंगत बनाने की जरूरत
समीक्षा में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम को गरीब की पहुंच में बनाये रखने के लिए तेजी से बढ़ते खाद्य सब्सिडी व्यय को युक्तिसंगत बनाने की सिफारिश की गयी है. फरवरी में पेश सरकार के अंतरिम बजट में 2019-20 के लिए 1,84,220 करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी का अनुमान रखा गया था. इससे पिछले साल इस मद पर व्यय 1,71,298 करोड़ रुपये था.
रोजगार का दारोमदार निजी निवेश पर
निजी निवेश से ही मांग, क्षमता निर्माण, श्रम उत्पादकता बढ़ती है. इससे नयी प्रौद्योगिकी भी इस्तेमाल में लायी जाती है और रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. आर्थिक समीक्षा में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों को उनके दायरे से बाहर निकालने वाली नीतियों पर जोर दिया गया है. एमएसएमइ क्षेत्र को आगे बढ़ने के अवसर मिलने चाहिए, ताकि इनमें रोजगार और उत्पादकता बढ़ सके.
ऊर्जा खपत में ढाई गुना वृद्धि की जरूरत
जीडीपी का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में कम-से-कम ढाई गुना वृद्धि की सिफारिश की गयी है. यह भी कहा गया कि देश की आर्थिक वृद्धि दर लोगों को सस्ती, भरोसेमंद और टिकाऊ ऊर्जा उपलब्ध कराने की क्षमता पर निर्भर करेगी. भारत की आबादी विश्व जनसंख्या का लगभग 18 प्रतिशत है, लेकिन भारत विश्व के प्राथमिक ऊर्जा का लगभग 6 प्रतिशत उपयोग करता है.
वेतन-मजदूरी की असमानता दूर करने के सुझाव
समावेशी आर्थिक वृद्धि हासिल करने के रास्ते में वेतन और मजदूरी की असमानता बड़ी रुकावट है. इसके लिए कानूनी सुधारों, नीतियों में निरंतरता, सक्षम श्रम बाजारों और प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया गया है. अनुबंधों को लागू करने को कारोबार सुगमता के क्षेत्र में रैंकिंग सुधारने में सबसे बड़ी रुकावट बताया गया है. इसमें सुधार की वकालत की गयी है.

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