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हौसलों से उड़ान की बानगी है रामजी महतो का संघर्ष

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।।विजय बहादुर।। Email- vijay@prabhatkhabar.inट्विटर पर फोलो करेंफेसबुक पर फॉलो करें हर इंसान के लिए जीवन में सफलता के मायने अलग हैं. किसी की मंजिल चांद पर पहुंचना है, तो किसी के लिए एक अदद सी नौकरी पाना. शरीर से दिव्यांग (जन्मजात) रामजी महतो के लिए चतुर्थ श्रेणी की नौकरी की क्या अहमियत है? जानिए कपिल […]

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।।विजय बहादुर।।

हर इंसान के लिए जीवन में सफलता के मायने अलग हैं. किसी की मंजिल चांद पर पहुंचना है, तो किसी के लिए एक अदद सी नौकरी पाना. शरीर से दिव्यांग (जन्मजात) रामजी महतो के लिए चतुर्थ श्रेणी की नौकरी की क्या अहमियत है? जानिए कपिल शर्मा की जुबानी, जो लगभग डेढ़ साल पहले मोतिहारी में चुनाव अधिकारी थे. फिलहाल छपरा में पदस्थापित हैं.
मैं जब रक्सौल में पोस्टेड था, तो रामजी महतो अक्सर मुझसे मिलने आते थे. वह पिछले 16 साल से सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत थे. कई बार प्रक्रियागत लेट-लतीफी को देखते हुए मुझे लगता था कि उनका ये सपना अधूरा रह सकता है, लेकिन मैं हमेशा यही कहता था कि रामजी प्रयास करते रहो भाई. किस्मत और मेहनत का संयोग न जाने किस दिन हो जाये और असाध्य लगनेवाला ये कार्य संभव हो जाये.
नौकरी पाना रामजी के लिए इसलिए भी काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि रामजी के खड़े होने के तरीके से कोई ये नहीं समझ सकता कि यह व्यक्ति शरीर से 80 फीसदी दिव्यांग (जन्मजात) होगा. वह चलते हैं तो पैर घसीट कर. 50 मीटर दूर से ही उनके चप्पल घिसने की आवाज से मुझे पता लग जाता था कि रामजी आ रहे हैं. उनका पूरा शरीर कांपता है. हाथ में कंपकंपी रहती है. कोई भारी चीज उठा नहीं सकते. पेन से लिख नहीं सकते. पेपर या फाइल ढो नहीं सकते. इसके बावजूद उनमें गजब का आत्मविश्वास है. सरकारी कार्यों में दैनिक वेतनभोगी के तौर पर कई बार सेवा दे चुके हैं और इसी आधार पर चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरी के लिए वह प्रयासरत भी थे.
मैं कई बार उनका मन टटोलने के लिए पूछता भी था कि ऐसी हालत में रामजी नौकरी करके क्या करेंगे, तो रामजी का जवाब मेरा दिल जीत लेता था. रामजी कहते थे कि सर नौकरी करके इज्जत कमाऊंगा. लोगों को दिखा दूंगा कि रामजी दिव्यांग, टेढ़ा-मेढ़ा चलनेवाला आदमी नहीं है, बल्कि जिम्मेदारी उठानेवाला आदमी है. लोगों ने मुझे हमेशा कीड़े-मकोड़े की तरह समझा है. दया या धिक्कार की निगाह से देखा है. उस दया और धिक्कार को लात मारना है सर. मुझे वेतन चाहे कुछ भी मिले सर, लेकिन मुझे काम मिले. मेरा पूरा संघर्ष यही है कि कोई मुझे काम के लायक समझे. घर और पड़ोस के बच्चे मुझ पर हंसते हैं.
परिवार और समाज के लिए मेरे होने या न होने का कोई मतलब नजर नहीं आता है. मैं उस मतलब को जीना चाहता हूं सर. शरीर कांपने की वजह से मुझे कोई चपरासी तक नहीं रखना चाहता है. मुझे चुभती हैं ये चीजें. मेरा परिवार नहीं बस सका. पत्नी-बच्चे नहीं हैं. मैं वो खुशियां नहीं जी सका. उन सपनों को भी नहीं देख सका, जो आमलोग देख सकते हैं. माना कि मेरा शरीर खराब है, लेकिन मेरा मन और दिमाग तो पूरी तरह स्वस्थ है. मेरी आत्मा मुझे कचोटती है सर. अपनी इस हालत के लिए मुझे नाराजगी केवल ईश्वर से है और अपने जीवन में कुछ भी सुधार के लिए कोई आशा भी केवल ईश्वर से ही है.
जब मैं रामजी का समग्र आंकलन करता हूं, तो व्यक्तिगत तौर पर पाता हूं कि रामजी बुद्धिमानी, आचरण और काम की समझ के मामले में मेरे कार्यालय के किसी भी कर्मचारी से बहुत बेहतर हैं. यदि ऐसे व्यक्ति को पर्याप्त प्रशिक्षण का मौका मिलता, तो निश्चित तौर पर इन्हें उच्च स्तर के कुछ कार्य सौंपे जा सकते हैं. इनकी शारीरिक अक्षमता उतना बड़ा अभिशाप नहीं है, जितना बड़ा इस समाज ने बना दिया है.
अब अच्छी खबर ये है कि हाल ही में मेरे पास रामजी का फोन आया. उन्होंने बताया कि 16 साल से सरकारी नौकरी पाने के लिए चल रहा संघर्ष खत्म हो गया है. मुझे पूर्वी चंपारण जिले के चिकित्सा विभाग में सरकारी नौकरी मिल गयी है. मुझे यह सुनकर बेहद खुशी हुई. असल में यह घटना एक साधारण से ऐसे दिव्यांग आदमी का सपना पूरा होने की कहानी है जो लगातार हालातों से जूझकर आगे बढ़ रहा है.
रामजी की इस सफलता से कई लोगों को जिंदगी के बहुत सारे इम्तिहानों से लड़ने की ताकत मिल जायेगी. कोई फिल्मी हीरो या इंटरव्यू के दम पर बना आदमी आपको जरूर असली लड़ाका, माचो मैन लग सकता है, लेकिन सच मानिये जिंदगी की बेरुखी से पल-पल जूझने वाले रामजी जैसे लोग ही जिंदगी के असली योद्धा हैं. असली माचो मैन हैं. खैर, मेरी शुभकामनाएं रामजी के साथ हैं. ईश्वर करे रामजी जो चाहते हैं, उन्हें उसकी प्राप्ति हो. उनके सपने पूरे हों.
रामजी को जानिए
रामजी महतो बिहार के रक्सौल के कुम्हरिया टोला के वार्ड नंबर-2 के रहनेवाले हैं. उनके पिता प्रभुनाथ महतो हैं. 80 फीसदी दिव्यांग (जन्मजात) रामजी फिलहाल मोतिहारी सदर हॉस्पिटल में सरकारी प्यून (चपरासी) की नौकरी कर अपने सपने को जी रहे हैं. पिछले डेढ़ दशक के लंबे संघर्ष के बाद उन्होंने ये सफलता (सरकारी नौकरी) हासिल की है. इनके जज्बे को सलाम.

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