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परनिंदा के बदले अपने नजरिए को सकारात्मक बनाए

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विजय बहादुरEmail- vijay@prabhatkhabar.inटि्वटर पर जुड़ने के लिए क्लिक करेंफेसबुक से जुड़ें केस स्टडी 1 मैं एक बहुत ही सम्मानित पत्रकार के साथ काम करने का अनुभव साझा कर रहा हूं. हर विषय को लेकर उनकी मौलिक जानकारी का स्तर देख कर मुझे हर बार लगता था कि किसी भी व्यक्ति को इतनी जानकारी कैसे हो […]

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विजय बहादुर
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केस स्टडी 1

मैं एक बहुत ही सम्मानित पत्रकार के साथ काम करने का अनुभव साझा कर रहा हूं. हर विषय को लेकर उनकी मौलिक जानकारी का स्तर देख कर मुझे हर बार लगता था कि किसी भी व्यक्ति को इतनी जानकारी कैसे हो सकती है. इतिहास और वर्तमान को लेकर इतनी जानकारी हासिल करना किसी भी व्यक्ति के लिए बिना गहन अध्ययन के संभव नहीं है और इसके लिए बहुत समय की आवश्यकता है. कोई व्यक्ति अपने काम के साथ कैसे इतना वक्त पढ़ने के लिए निकाल सकता है. ये यक्ष प्रश्न मेरे मन में हमेशा चलता रहता था. मैंने उनके काम करने के तरीके को बहुत ही सूक्ष्मता से देखना शुरू किया, तो पाया कि वो हर व्यक्ति से संवाद करते हैं. अपने निजी कार्यों के लिए भी समय निकाल लेते हैं. उसके इतर अपने मूल काम लिखने-पढ़ने के लिए भी समय निकाल लेते हैं.
उनका टाइम मैनेजमेंट जबर्दस्त है. हर चीज के लिए समय तय है. अगर मैं उनसे किसी विषय को लेकर संवाद करने के लिए जाता था, तो काफी रुचि लेकर बातें करते थे, लेकिन जब उन्हें लगता था कि विषय को लेकर विमर्श हो गया, तो फिर वो कहते थे कि और कुछ. इसका सीधा मतलब था कि आपके साथ उनके संवाद का समय खत्म हो गया. वरीय होने के बावजूद वह कनीय और युवाओं के साथ संवाद करते थे, ताकि समय के साथ हो रहे बदलाव से वह खुद को अपडेट रख सकें. किसी ने उनके पास जाकर किसी सहकर्मी की शिकायत की, तो उसे सामने ही बुलाकर समस्या का निदान कर दिया, ताकि गॉसिप और परनिंदा को प्रश्रय न मिल सके.
केस स्टडी 2
काम का बहुत प्रेशर है. बहुत ज्यादा टारगेट है. ऑफिस में इस तरह की बातें आम हैं, लेकिन जब हम आंकलन करेंगे तो ये साफ नजर आता है कि कुछ ही लोग अपने काम को सौ फीसदी समय दे रहे हैं. ज्यादातर के दिनभर के आठ- नौ घंटों के वर्किंग ऑवर का मूल्यांकन करेंगे तो साफ नजर आता है कि वास्तव में उन्होंने अपने संस्थान के काम को चार – पांच घंटे से ज्यादा समय नहीं दिया है. काम के प्रेशर को कम करने की दिशा में क्या प्रयास हो, इसके लिए योजना या प्रयास करने की जगह अधिकतर लोग निजी कार्य, परनिंदा और ऑफिस गॉसिप में लगे रहते हैं. खुद के कार्य की विवेचना के बदले उनका ज्यादा समय दूसरे के कार्य की समीक्षा में चला जाता है. व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन उनके कामकाजी जीवन पर कुछ ज्यादा ही हावी रहता है और जिस दिन रिपोर्टिंग अथॉरिटी ऑफिस में नहीं हैं, तो फिर माहौल जश्न की तरह होता है, लेकिन ऑफिस में कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो बहुत ही तन्मयता से अपना काम बिना किसी शिकायत के करते रहते हैं.
दोनों केस स्टडी की जब आप समीक्षा करेंगे, तो सतही तौर पर ऐसा लगेगा कि वो लोग अपने जीवन का ज्यादा आनंद ले रहे हैं, जिन्होंने कम काम किये बिना अपना समय निकाल लिया, लेकिन वैसे लोग न सिर्फ संस्थान के साथ धोखा करते हैं, बल्कि कहीं न कहीं वो खुद के साथ या अपने करियर को भी पीछे धकेलते हैं. हमेें ये मुगालता रहता है कि हम संस्थान के लिए काम करते हैं. वस्तुत: जब हम किसी संस्थान में काम करते हैं तो हम अपने लिए काम करते हैं. हमारी प्रोडक्टिविटी से संस्थान की प्रोडक्टिविटी जुड़ी होती है. जब संस्थान आगे बढ़ता है तो हमारा भी करियर ग्राफ आगे बढ़ता है.
बात सिर्फ किसी संस्थान की नहीं है, बल्कि हर इंसान के काम करने का नजरिया व सोचने का ढंग खुद को ही प्रभावित करता है. कोई भी नकारात्मक स्वभाव का व्यक्ति लगातार परनिंदा करने या हर काम में कमी निकालने में लगा रहता है, तो धीरे-धीरे वो इसे अपने स्वभाव का हिस्सा बना लेता है. इससे न सिर्फ उस व्यक्ति का समय और ऊर्जा की बर्बादी होती है, बल्कि उसके काम करने की क्षमता का भी ह्रास होता है.
मित्रों, आपके प्रिय कॉलम बी पॉजिटिव के आज तीन वर्ष पूरे हो गये हैं. मेरी निजी सोच और सुझाव है कि आप अपने व्यक्तित्व को सकारात्मक बनाएं. जब हम दूसरों के बारे में बेहतर सोचते हैं, तो कहीं न कहीं पॉजिटिव ऊर्जा का संचार करते हैं और इससे हमारे व्यक्तिगत जीवन और कार्यक्षेत्र में बेहतरी का मार्ग प्रशस्त होता है.

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