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सुझाव देने से पहले आत्मावलोकन जरूरी

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विजय बहादुरvijay@prabhatkhabar.inwww.facebook.com/vijaybahadurranchi/twitter.com/vb_ranbpositive लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में है और पंचायतनामा का ताजा अंक आपके हाथों में. गांव की खबरों के साथ- साथ बड़ी रोचकता से आप लोकसभा चुनाव से संबंधित खबरें भी पढ़ रहे हैं. चुनाव परिणाम 23 मई को आयेगा. सारी अटकलें और हार-जीत का गणित उसी दिन तय हो जायेगा. आप सभी मानेंगे […]

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विजय बहादुर
vijay@prabhatkhabar.in
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लोकसभा चुनाव अंतिम चरण में है और पंचायतनामा का ताजा अंक आपके हाथों में. गांव की खबरों के साथ- साथ बड़ी रोचकता से आप लोकसभा चुनाव से संबंधित खबरें भी पढ़ रहे हैं. चुनाव परिणाम 23 मई को आयेगा. सारी अटकलें और हार-जीत का गणित उसी दिन तय हो जायेगा. आप सभी मानेंगे कि इस लोकसभा चुनाव में नेताओं की बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप निम्नतर स्तर तक पहुंच गये.

सोशल मीडिया के इस युग ने नेताओं की बयानबाजी में आम लोगों को भी जोड़ दिया. हम यह कह सकते हैं कि सोशल मीडिया ने ऐसी बयानबाजी को बढ़ावा दिया, उत्प्रेरक की भूमिका निभायी. इसमें हमारी और आपकी भूमिका क्या है? यह बड़ा सवाल है.

हम सभी बेहतर समाज की परिकल्पना करते हैं, जिसमें जातिवाद, धार्मिक उन्माद और भ्रष्टाचार से मुक्ति हो. तमाम विश्वसनीय संस्थाएं कह रही हैं कि चुनाव में आपराधिक चरित्र और करोड़पति उम्मीदवारों की संख्या चुनाव दर चुनाव बढ़ती जा रही है.

आप अगर आकड़ों के हिसाब से समझना चाहते हैं, तो एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की रिपोर्ट पर गौर कीजिए. इस रिपोर्ट में लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की आपराधिक छवि, वित्तीय स्थिति और शिक्षा को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी है. रिपोर्ट चुनाव में धनबल और बाहुबल के बढ़ते प्रयोग की ओर इशारा करती है.

एडीआर ने कुल 8,049 उम्मीदवारों में से 7,928 उम्मीदवारों के हलफनामे का विश्लेषण करने के बाद पाया कि कुल 2,297 यानी 29 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं. इस चुनाव में 1,500 (19 फीसदी) उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले और 1,070 (13 फीसदी) के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं.

बिहार में 30 फीसदी, झारखंड में 23 फीसदी, यूपी में 23 फीसदी, बंगाल में 26 फीसदी, केरल में 32 फीसदी उम्मीदवार आपराधिक छवि वाले हैं. कुल 265 संसदीय क्षेत्र में लगभग 49 फीसदी ऐसे हैं, जहां तीन से अधिक उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 2014 में यह संख्या 245 और 2009 में 196 थी. मौजूदा चुनाव में 677 राजनीतिक दल हैं, जबकि 2014 में 464 थे.

इन आंकड़ों को आपके सामने रखने का अर्थ यह कतई नहीं है कि मैं इस चुनाव को ऑडिट करना चाहता हूं, बल्कि यह समझना है कि एक तरफ हम रामराज्य की कल्पना करते हैं, दूसरी तरफ रामराज्य बनाने के लिए वैसे लोगों को वाहक बनाना चाहते हैं जिनकी छवि बिल्कुल विपरीत है. ऐसा भी नहीं है कि हमें गलत और सही की पहचान नहीं है, बल्कि वैचारिक, आर्थिक या सामाजिक स्वार्थ या प्रतिबद्धता के कारण हम अपने विचारों को ही गिरवी रख देते हैं. विचार पहले से फिक्स कर लेते हैं और इससे इतर किसी भी तरह के विचार चाहे वो सही ही क्यों न हो, सुनना भी नहीं चाहते हैं.

अगर हम बेहतर समाज चाहते हैं, तो हमें पहले खुद के आचार, विचार और संस्कार पर विचार करना होगा. हम खुद में सुधार लाकर ही दुनिया के सामने नजीर पेश कर सकते हैं. हम में सुधार आयेगा तभी लोग हमें गंभीरता से लेंगे. दुनिया में जितने भी बड़े लोग हैं जिन्हें हम पसंद करते हैं, जिनके विचारों को गंभीरता से लेते हैं. उनके गुणों को देखेंगे तो पायेंगे कि वह महापुरुष या लीडर बने क्योंकि दूसरे को कुछ कहने या समझाने से पहले उन्होंने खुद को इस लायक बनाया. यही वजह है कि वो दुनिया के लिए नजीर बन सके. बी पॉजिटिव का यह कॉलम आपके अंदर सकारात्मकता भरने के लिए है. आपको अपने अंदर के सारे अवगुणों को बाहर करना होगा ताकि आप पॉजिटिव चीजें अपने अंदर रख सकें.

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