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Chandrayaan-3: चांद पर कहां से आया सल्फर? ISRO ने दी बड़ी जानकारी

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Sulphur on Moon: वैज्ञानिकों की अगर माने तो आमतौर पर सल्फर ज्वालामुखी से जुड़ी गतिविधियों के कारण उत्पन्न होता है. लेकिन, चांद पर सल्फर की मौजूदगी के पीछे कारण पर अभी किसी प्रकार की कोई पुष्टि अभी नहीं की जा सकी है.

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Sulphur Found on Moon: चांद पर लैंड हुए चंद्रयान-3 को करीबन 1 हफ्ता हो गया है. लैंडिंग के बाद विक्रम से बाहर निकले प्रज्ञान रोवर ने इन सात दिनों के दौरान चंद्रमा पर कई तरह के तत्वों के होने की पुष्टि कर दी है. इन तत्वों की अगर बात करें तो इनमें सल्फर और ऑक्सीजन जैसे कई तत्व शामिल हैं. आज इसरो ने पुष्टि की कि प्रज्ञान रोवर के एक अन्य इंस्ट्रूमेंट ने एक अन्य टेक्नोलॉजी के माध्यम से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में सल्फर को खोज निकाला है. चांद की दक्षिणी ध्रुव पर सल्फर मौजूद है इस बात की पुष्टि प्रज्ञान रोवर ने एक नहीं बल्कि, दो तकनीकों की मदद से की है. सल्फर पाए जाने के बाद अब वैज्ञानिको के पास सबसे बड़ा सवाल यह है कि चांद पर सल्फर का सोर्स आखिर है क्या? वे लगातार इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या यह एक आंतरिक कारण है जैसे कि ज्वालामुखी का फटना या फिर मौसम से जुड़ा कोई कारण.

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वैज्ञानिकों का क्या है मानना 

वैज्ञानिकों की अगर माने तो आमतौर पर सल्फर ज्वालामुखी से जुड़ी गतिविधियों के कारण उत्पन्न होता है. लेकिन, चांद पर सल्फर की मौजूदगी के पीछे कारण पर अभी किसी प्रकार की कोई पुष्टि अभी नहीं की जा सकी है. आपकी जानकारी के लिए बता दें खोजे गए सल्फर के साथ पिछली तकनीक लेजर-प्रेरित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप ऑनबोराड प्रज्ञान रोवर थी. लेकिन, अब अब अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोप (एपीएक्सएस) ने सल्फर और कुछ अन्य छोटे तत्वों का पता लगाया है. चंद्रयान 3 पर ताजा अपडेट देते हुए इसरो ने एक ट्वीट जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि सीएच-3 की यह खोज वैज्ञानिकों को क्षेत्र में सल्फर (एस) के स्रोत के लिए नए स्पष्टीकरण विकसित करने के लिए मजबूर करती है कि चांद पर सल्फर की मौजूदगी के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए रिसर्च लगातार जारी है. कहीं यह कारण आंतरिक, ज्वालामुखीय, उल्कापिंड से जुड़ा तो नहीं.

चांद पर सल्फर होने का क्या है मतलब?

वैज्ञानिकों को कभी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि चंद्रमा पर उन्हें सल्फर मिलेगा. लेकिन, इसे गलत प्रूव करते हुए प्रज्ञान रोवर ने दो तकनीकों की मदद से चांद पर सल्फर होने की पुष्टि कर दी है. बता दें यहां एल्युमिनियम, सिलिकॉन, कैल्शियम, आयरन की अपेक्षा थी और वह मिल भी गये. मामले पर बात करते हुए इसरो ने कहा कि, दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र जहां चंद्रयान-3 उतरा, वहां चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानें किससे बनी हैं? यह अन्य उच्चभूमि क्षेत्रों से किस प्रकार अलग है? ये वे प्रश्न हैं जिनका उत्तर चंद्रयान-3 रोवर अपने वैज्ञानिक इंस्ट्रूमेंट से ढूंढने का प्रयास कर रहा है. बता दें सल्फर की मौजूदगी से संकेत मिलता है कि चंद्रमा की सतह पर पानी की बर्फ हो सकती है. या, हाल ही में ज्वालामुखी विस्फोट हो सकता है जिससे सल्फर निकल रहा है.

कैसे काम करते हैं सल्फर को खोज निकालने वाले उपकरण 

बता दें अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर लेटेस्ट टेक्नोलॉजी है जिसने चंद्रमा पर सल्फर की उपस्थिति की पुष्टि की है. इसरो की माने तो, एपीएक्सएस उपकरण चंद्रमा जैसे कम वायुमंडल वाले ग्रहों की सतह पर मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना के इन-सीटू विश्लेषण के लिए सबसे उपयुक्त है. इसमें रेडियोएक्टिव स्रोत होते हैं जो सतह के नमूने पर अल्फा कण और एक्स-रे उत्सर्जित करते हैं. नमूने में मौजूद परमाणु बदले में मौजूद तत्वों के अनुरूप विशिष्ट एक्स-रे लाइनें उत्सर्जित करते हैं. इन विशिष्ट एक्स-रे की ऊर्जा और तीव्रता को मापकर, शोधकर्ता मौजूद तत्वों और उनकी प्रचुरता का पता लगा सकते हैं.

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