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Car Safety Rating के बारे में जानना हो, तो समझना होगा कार क्रैश टेस्ट का पूरा प्रोसेस!

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Car Crash Test: कार सेफ्टी रेटिंग, किसी भी कार की सुरक्षा का आकलन करने का एक तरीका है. यह रेटिंग, कार के क्रैश टेस्ट के प्रदर्शन पर आधारित होती है. क्रैश टेस्ट में, कार को अलग-अलग स्पीड और अलग-अलग ऐंगल से टकराया जाता है, ताकि यह देखा जा सके कि टक्कर में कार कितनी सुरक्षा प्रदान करती है. कार सेफ्टी रेटिंग, 1 से 5 स्टार तक होती है. 5 स्टार सबसे सुरक्षित रेटिंग है, जबकि 1 स्टार सबसे कम सुरक्षित रेटिंग है.

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Car Crash Test: आज के समय में कार सेफ्टी रेटिंग एक आम शब्द बन गया है. इसका जिक्र कहीं न कहीं सुनने को मिल ही जाता है. खासकर तब, जब आप कार के शोरूम जाते हैं या किसी दुर्घटना आदि के समय. लेकिन बहुत कम लोगों को ही जानकारी होती है कि आखिर किसी भी गाड़ी की सेफ्टी रेटिंग किस आधार पर तय होती है. तो चलिए आज हम आपको इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

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कार क्रैश टेस्ट:

किसी भी गाड़ी के लिए सबसे सुरक्षित तरीका ये पता लगाने का है कि वो कितनी सुरक्षित है, क्रैश टेस्ट करना होता है. इसी टेस्ट के नतीजों के आधार पर उस गाड़ी को सेफ्टी रेटिंग दी जाती है. दुनिया भर में कई संस्थाएं हैं जो गाड़ियों की क्रैश टेस्टिंग करती हैं और उन्हें रेटिंग देती हैं. गौर करने वाली बात ये है कि क्रैश टेस्ट में बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए अलग-अलग रेटिंग दी जाती है.

कौन कराते हैं ये टेस्ट:

दुनिया के कई देशों में कार क्रैश टेस्टिंग संस्थाएं मौजूद हैं. उदाहरण के तौर पर ऑस्ट्रेलियन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (ANCAP), ऑटो रिव्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (ARCAP), यूरोपीय न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Euro NCAP), जर्मनी का Allgemeiner Deutscher Automobile-Club (ADAC), जापान न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (JNCAP), लैटिन न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (Latin NCAP), चाइना न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (C-NCAP) वगैरह. हालांकि, भारत में बिकने वाली ज्यादातर कारों को Global NCAP और Euro NCAP रेटिंग दी जाती है.

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ग्लोबल न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम (G-NCAP) क्या है?

ग्लोबल NCAP यानी न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम की शुरुआत 1978 में अमेरिका में हुई थी. इसका उद्देश्य लोगों को कार क्रैश टेस्ट के बारे में जानकारी देना था. हालांकि, अब G-NCAP ब्रिटेन में रजिस्टर्ड एक स्वतंत्र संस्था है, जिसे 2011 में शुरू किया गया था. इसके तहत सबसे पहले कार के महत्वपूर्ण हिस्सों की जांच की जाती है, जिनमें सामने और किनारे का हिस्सा अहम होता है. भारत में गाड़ियों के क्रैश टेस्ट की रफ्तार 56 किलोमीटर प्रति घंटा होती है.

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वयस्क और बच्चे (Adult-Child Occupant)

वयस्कों के क्रैश टेस्ट में शरीर के अहम अंगों जैसे सिर और गर्दन, छाती-घुटना, फीमर और पेल्विस पर खास ध्यान दिया जाता है. जबकि बच्चों के सेफ्टी टेस्ट में 18 महीने से 3 साल तक के बच्चों को मानक मानकर क्रैश टेस्ट किया जाता है. क्रैश टेस्टिंग के दौरान गाड़ी में बच्चों और वयस्कों दोनों की डमी का इस्तेमाल किया जाता है.

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