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Tuesday, February 11, 2025 | 08:04 pm
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प्रो सतीश

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प्रधानमंत्री मोदी की यूक्रेन यात्रा के मायने

अभी चर्चा का विषय यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा का रूस-यूक्रेन युद्ध पर क्या असर होगा. शांति पर प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय विदेश नीति का हमेशा से जोर रहा है. कई बार उन्होंने विभिन्न मंचों से कहा है कि यह युद्ध का समय नहीं है.

‘एक चीन नीति’ का पुनर्मूल्यांकन हो

दूसरों को लाचार कहने वाला चीन महामारी के भंवर में फंसा हुआ है. अर्थव्यवस्था लुढ़कने लगी है. व्यापारिक सहयोगी छूटने लगे हैं. अमेरिका चीन के पीछे लगा है और संघर्ष युद्ध में तब्दील हो सकता है.

समझौते से भारत की चिंता

अगर अमेरिकी सेना वापस जाती है और व्यूह रचना पाकिस्तान के हाथ में आती है, तो फिर वही होगा, जो 1989 में हुआ था. इससे मध्य-पूर्व के देशो में भारत की पहुंच कमजोर पड़ जायेगी.

ग्राम स्वराज: लोकल से ग्लोबल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकल से ग्लोबल की बात कही है. यह सोच तो उल्टी गिनती जैसी लग रही है. पिछले 70 वर्षों में भारत ग्लोबल से लोकल की लकीर पर रेंगता रहा. हमारे देश में बनी चीजें ग्लोबल मार्केट की प्रतिस्पर्धा में दम तोड़ती गयीं और हम समय की धारा में कब लोकल से ग्लोबल बन गये, पता ही नहीं चला. कोकाकोला और पेप्सी गांव की दुकानों में बिकने लगीं. भागलपुर की रेशमी साड़ी, जो माचिस की डिबिया में समा जाती थी, पश्मीना का शॉल और कानपुर का जूता समय के साथ दम तोड़ते गये. बहुत कुछ अंग्रेजों की वजह खत्म हुआ और फिर नेहरू जी के पश्चिम प्रेम ने लोकल पर हमेशा के लिए ताला लगा दिया. आज यह महामारी दुनिया को अपने अस्तित्व का बोध करा रही है. भारत के लिए भी यह एक सीख है.

बढ़ती जा रही है चीन की बौखलाहट

दक्षिण चीन सागर के पड़ोसी देशों के साथ मिलकर उसने हांगकांग और ताइवान को चीन का हिस्सा बनाने की पहल भी शुरू कर दी है. उसने भारत के साथ भी सीमा विवाद पैदा कर दिया है.

जिनपिंग का बिखरता सपना

तिब्बत के लोग अपनी मातृभूमि के लिए संघर्षरत हैं. अगर भारत का उन्हें साथ मिला, तो तिब्बत के जांबाज चीन के सैन्य बल को तोड़ने का काम कर सकते हैं. भारत के लिए भी जरूरी है कि तिब्बत कार्ड का प्रयोग अब किया जाये.

क्वैड कूटनीति व आत्मनिर्भर भारत

चीन की शक्ति का पतन भी उसके आर्थिक ढांचे को तोड़कर ही सुनिश्चित किया जा सकता है. इसके लिए आत्मनिर्भर भारत से बेहतर विकल्प दुनिया के पास नहीं हो सकता है.

आक्रामक पड़ोसियों से दोहरा खतरा

भारत अपने बूते पर अपनी सुरक्षा करने के लिए सक्षम है और उसे ही यह करना है. आतंकवाद और चीन के मसले पर दुनिया की प्राथमिकताएं बदल सकती हैं, लेकिन भारत की नहीं.

अफगानिस्तान में भारत की चिंता

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