Warning: Undefined variable $categories in /var/www/pkwp-live.astconsulting.in/wp-content/themes/Newspaper-child/functions.php on line 298

Warning: Trying to access array offset on value of type null in /var/www/pkwp-live.astconsulting.in/wp-content/themes/Newspaper-child/functions.php on line 298

Warning: Attempt to read property "slug" on null in /var/www/pkwp-live.astconsulting.in/wp-content/themes/Newspaper-child/functions.php on line 298

Deprecated: addslashes(): Passing null to parameter #1 ($string) of type string is deprecated in /var/www/pkwp-live.astconsulting.in/wp-content/themes/Newspaper-child/functions.php on line 343
31.9 C
Ranchi
Sunday, April 20, 2025 | 10:16 pm

BREAKING NEWS

कृष्ण प्रताप

Browse Articles By the Author

कृष्ण भक्त भी थे विद्रोही कवि काजी नजरुल इस्लाम

अगर तुम राधा होते श्याम, मेरी तरह बस आठो पहर तुम रटते श्याम का नाम...' 'आज बन-उपवन में चंचल मेरे मन में मोहन मुरलीधारी, कुंज-कुंज फिरे श्याम...

रामकथा वाचन के लिए मशहूर थे पंडित राधेश्याम

इस योजना के अंतर्गत एक परिवार से एक सदस्य को पांच प्रतिशत के रियायती ब्याज दर पर दो लाख रुपये की पूंजी उपलब्ध करायी जायेगी. पहली किश्त में एक लाख दिया जायेगा.

प्रेमचंद : ऐसे बने ‘मुंशी’ और ‘उपन्यास सम्राट’

शिवरानी देवी ने अपनी पुस्तक ‘प्रेमचंद घर में’ में भी उनके लिए कहीं ‘मुंशी’ का प्रयोग नहीं किया है. प्रकाशकों ने उनकी कृतियों पर भी ‘श्री प्रेमचंद जी’, ‘श्रीयुत प्रेमचंद’, ‘उपन्यास-सम्राट प्रेमचंद’, ‘प्रेमचंद’, ‘श्रीमान प्रेमचंद जी’ आदि नाम ही छापे हैं

जब अयोध्या पहुंच राम को भजने लगे अमीर खुसरो

अगर फिरदौस बर-रू-ए जमीं अस्त. हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त.’(धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है.) सत्रहवीं शताब्दी में कश्मीर के दौरे पर गये मुगल बादशाह जहांगीर ने उसकी अनुपम प्राकृतिक छटा से निहाल होकर यह बात कही थी.

बंकिमचंद्र ने क्षुब्ध होकर लिखा था वंदे मातरम

बंकिम का जन्म 26 जून, 1838 को पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना जिले के कांठलपाड़ा गांव में एक समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ. वह माता दुर्गा देवी व पिता यादव चंद्र की सबसे छोटी संतान थे. कहते हैं कि उनकी साहित्यिक संभावनाओं के अंकुर उनकी युवावस्था में ही विकसित होने लगे थे.

हिंदी पत्रकारिता और साहित्य का संबंध

माखनलाल चतुर्वेदी भी एक साथ साहित्यकार और पत्रकार थे. ‘प्रभा’ व ‘कर्मवीर’ जैसे पत्रों का संपादन करते हुए उन्होंने नयी पीढ़ी से गुलामी की जंजीरें तोड़ डालने का आह्वान किया, तो ब्रिटिश साम्राज्य के कोपभाजन बने.

जनपक्षीय पत्रकारिता के सजग प्रहरी थे शीतला सिंह

मैंने मन ही मन सोचा और अंदाजा लगाया कि यह बंदा जरूर किसी और मिट्टी का बना है. बहरहाल, मैंने परिचय दिया, तो बोले- हां, बायोडाटा देख लिया है आपका.

पूंजीवाद के जयघोष के बीच मार्क्स की याद

जो सबसे ज्यादा लोगों की खुशी के लिए काम करता है.’ वे मानते थे कि ‘पूंजीवादी समाज में पूंजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत होती है, जबकि जीवित व्यक्ति उसका आश्रित होता है और उसकी कोई वैयक्तिकता नहीं होती.’

असली पुरस्कार कब पायेंगे मजदूर

मजदूर बुरी तरह विभाजित हैं, जिससे सामाजिक या आर्थिक परिवर्तन के हिरावल दस्ते के रूप में उनकी कोई भूमिका नहीं बची है. ऊपर से उनकी मजदूर पहचान पर कई दूसरी संकीर्ण पहचानें हावी हो गयी हैं, जिसके कारण सत्ता प्रतिष्ठान उनका कोई वर्गीय दबाव महसूस नहीं करता.
ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snaps News reels