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Ashutosh Chaturvedi
मीडिया जगत में तीन दशकों से भी ज्यादा का अनुभव. भारत की हिंदी पत्रकारिता में अनुभवी और विशेषज्ञ पत्रकारों में गिनती. भारत ही नहीं विदेशों में भी काम करने का गहन अनुभव हासिल. मीडिया जगत के बड़े घरानों में प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का अनुभव. इंडिया टुडे, संडे ऑब्जर्वर के साथ काम किया. बीबीसी हिंदी के साथ ऑनलाइन पत्रकारिता की. अमर उजाला, नोएडा में कार्यकारी संपादक रहे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ एक दर्जन देशों की विदेश यात्राएं भी की हैं. संप्रति एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं.
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Opinion
तब की पत्रकारिता, अब की पत्रकारिता
यह सच है कि मौजूदा दौर में खबरों की साख का संकट है, लेकिन आज भी अखबार खबरों के सबसे प्रमाणिक स्रोत हैं. कोई भी अखबार अपनी छपी खबर से पीछे नहीं हट सकता है. अखबार की खबरें काफी जांच पड़ताल के बाद प्रकाशित की जाती हैं.
Opinion
मोबाइल उपयोग सीमित करने की जरूरत
अब बच्चे किशोर, नवयुवक जैसी उम्र की सीढ़ियां चढ़ने के बजाए सीधे वयस्क बन जाते हैं. शारीरिक रूप से भले ही वे वयस्क नहीं होते हैं, लेकिन मानसिक रूप से वे वयस्क हो जाते हैं. उनकी बातचीत, उनके आचार-व्यवहार में यह बात साफ झलकती है.
Opinion
आपसी संघर्ष में निशाना बनतीं महिलाएं
हर वर्ष नौ दिनों तक नारी स्वरूपा देवी की उपासना की जाती है. हमारे यहां कन्या जिमाने और उनके पैर पूजने की भी परंपरा है. एक तरह से यह त्योहार नारी के समाज में महत्व और सम्मान को भी रेखांकित करता है,
Opinion
साल-दर-साल आती बाढ़ के सबक
नदी के किनारों पर अवैध कब्जे हो रहे हैं और उनके आसपास इमारतें खड़ी होती जा रही हैं. इससे नदी के प्रवाह में दिक्कतें आती हैं और जब भी अच्छी बारिश होती है, बाढ़ आ जाती है.
Opinion
सामंती सोच पर चोट की जरूरत
आजादी के 75 साल बाद भी सामंती सोच का मुद्दा हमारे सामने आ खड़ा हो रहा है. यह सही है कि समय के बदलाव के साथ समाज में कुछ विकृतियां आ जाती हैं, लेकिन सभ्य समाज में ऐसी घटनाएं स्वीकार्य नहीं हैं. चिंता तब और बढ़ जाती है, जब ऐसे गंभीर विषय पर राजनीति शुरू हो जाती है.
Opinion
प्लास्टिक की अनदेखी के खतरे
हम प्लास्टिक व पॉलिथीन इस्तेमाल को कुछ हद तक नियंत्रित करने में तो सफल रहे हैं, लेकिन इसके इस्तेमाल को खत्म करने में कामयाबी नहीं मिली है. प्लास्टिक और पॉलिथीन पर प्रतिबंध के सफल न हो पाने का एक सबसे बड़ा कारण विकल्पों की कमी है. इस पर प्रतिबंध तभी प्रभावी हो सकता है, जब इसके विकल्प सुगम व सस्ते हों.
Badi Khabar
प्रगाढ़ होते भारत-अमेरिका संबंध
विचारधारा और नीतियों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में चाहे जितनी भी जोर-आजमाइश हो, मगर दुनिया का कोई नेता विभाजन की बात करे, तो उसका एक स्वर में प्रतिकार किया जाना चाहिए. कोई हमें लोकतंत्र का पाठ पढ़ाए, यह कैसे स्वीकार्य हो सकता है. लोकतंत्र में लोक महत्वपूर्ण है और वह जिसको चुनेगा.
Opinion
क्रिकेट टीम में बड़े बदलाव की जरूरत
जब मुकाबला कड़ा हो, तो खिलाड़ियों का चयन बहुत अहम हो जाता है. पर भारतीय चयनकर्ता हमेशा से प्रदर्शन के बजाय नामों की चमक-दमक पर ज्यादा ध्यान देते आये हैं. राहुल द्रविड़ की अगुआई में भारतीय टीम प्रयोगों की कहानी बन कर रह गयी है. पता ही नहीं चलता कि कौन खिलाड़ी कब खेलेगा और क्यों खेलेगा.
Opinion
आइए जल संचय का संकल्प लें
पर्यावरणविद दिवंगत अनुपम मिश्र का मानना था कि जल संकट प्राकृतिक नहीं, मानवीय संकट है. उनका कहना था कि यह समस्या सामाजिक अधिक है, क्योंकि गांवों में हम जल संरक्षण के जो उपाय करते थे, उन्हें हमने छोड़ दिया है.