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अजीत रानाडे
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Opinion
खाद्य सुरक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत
खाद्य सुरक्षा कानून पूरे देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से लागू किया जाता है. पहले संस्करण में इसे केवल 100 सबसे पिछड़े जिलों में लागू किया जाना था. इसे पूरे देश में बढ़ा दिया गया था. साठ के दशक से चल रही मूल पीडीएस की जगह नब्बे के दशक के मध्य में लक्षित पीडीएस की मांग की गयी थी.
Opinion
भारत में बेरोजगारी की धुंधली तस्वीर
बहुत सारे लोग जो खुद को काम करनेवाला बताते हैं, वे हो सकता है कि कई पार्ट टाइम काम करते हों. फुल टाइम नौकरी नहीं होने को बेरोजगारी समझा जा सकता है, लेकिन वह भ्रामक होगा. ऐसे देश में जहां 90 फीसदी श्रमबल के पास कोई निश्चित नौकरी नहीं हैं.
Opinion
नोबेल की रोशनी में महिला श्रम शक्ति
हाइ स्कूल और मिडिल स्कूल तक पढ़ी महिलाओं के लिए पर्याप्त और अनुकूल नौकरियां हैं ही नहीं. ऐसे में उनके पास काम नहीं करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता. ऐसी टिप्पणियां अक्सर हमारे कानों आती हैं कि ‘मेरी बेटी टेंपररी काम कर रही है, लेकिन शादी होते ही छोड़ देगी’.
Opinion
आर्थिक वृद्धि के लिए बचत भी जरूरी
बैंकिंग व्यवस्था का पैसा बाजारों में असल पूंजी बनकर जाता है, जिससे नये कारखाने और परियोजनाएं बढ़ती हैं. वित्तीय बचत जब कम होती है तो कर्ज देने लायक पैसा भी कम रहता है जिससे ब्याज दर बढ़ जाती है.
Opinion
मुद्रास्फीति कम करने की चुनौती
यदि खाने के सामान महंगे होंगे, तो कुल महंगाई भी ज्यादा होगी. सब्जियों, तिलहन, दालों, दूध और खाद्यान्नों की ऊंची कीमतों की वजह से खाने के सामानों की मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत पर पहुंच गयी है
Opinion
किसानों के हित पर ज्यादा ध्यान जरूरी
कृषि का पेशा मूल्य नियंत्रण, स्टॉक की सीमा, आयात-निर्यात पर रोक, और बार-बार नीतिगत बदलावों की जंजीर में जकड़ा रहता है. तकनीकी तौर पर यह भले राज्य का विषय हो, मगर राज्यों के साथ-साथ केंद्र भी इसमें हस्तक्षेप करता रहता है.
Opinion
लैपटॉप आयात की नयी नीति पर हो पुनर्विचार
अच्छे कंप्यूटरों से दूरी बनाने से अपना ही नुकसान होगा, जो बाहर से ही मिल सकते हैं. याद रखें, भारत की सॉफ्टवेयर और आउटसोर्सिंग क्षेत्र में कामयाबी इसलिए संभव हो पायी क्योंकि कंप्यूटरों के आयात के मामले में 1991 से बहुत पहले ही उदारीकरण लागू हो चुका था.
Badi Khabar
अदालतों में मुकदमों का बढ़ता बोझ
उच्च न्यायालयों में 60 लाख, 60 हजार मुकदमे और जिला व तालुका न्यायालयों में चार करोड़, 43 लाख मुकदमे लंबित हैं. तीन साल पहले, भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि देश में तीन करोड़, 24 लाख, 50 हजार मुकदमे लंबित हैं. इसका मतलब यह हुआ कि इनकी संख्या हर साल लगभग 18 फीसदी की दर से बढ़ रही है.
Badi Khabar
आर्थिक तरक्की के गुमनाम नायक
अर्थव्यवस्था में छोटे व्यवसायों के योगदान की पहचान और सम्मान दोनों जरूरी है. साथ ही, बढ़ती असमानता को भी पहचाना जाना चाहिए. बड़ी कंपनियों का मुनाफा बढ़ना, और एमएसएमइ का मिटते जाना अर्थव्यवस्था और समग्र विकास के लक्ष्यों के लिए नुकसानदेह है.