"तूफान के हालात हैं, ना किसी सफर में रहो

पंछियों से है गुज़ारिश, अपने शजर में रहो

ईद के चांद हो, अपने ही घरवालों के लिए

ये उनकी खुशकिस्मती है, उनकी नजर में रहो

माना बंजारों की तरह घूमे हो डगर-डगर

वक्त का तकाजा है, अपने ही शहर में रहो

तुमने खाक छानी है, हर गली चौबारे की

थोड़े दिन की तो बात है, अपने घर में रहो।"

कविता के ज़रिए ! बात वही बोलनी है जो आज के दौर में हर 

ज़िम्मेदार इंसान बोल रहा है। नियमों का पालन करिए। 

घर में रहिए। और #SocialDistancing 

बना के रखिए। #StayAtHome

रवि रंजन

गया, (बिहार)