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समग्र स्वतंत्रता की ओर बढ़ते कदम

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मोदी सरकार के आठ वर्ष स्वतंत्रता के बाद जिन लक्ष्यों की परिकल्पना स्वामी विवेकानंद, तिलक, महर्षि अरविंदो और महात्मा गांधी आदि ने की थी, वह साकार होती दिख रही है.

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अन्नपूर्णा देवी, शिक्षा राज्य मंत्री, भारत सरकार

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annpurnadevi6@gmail.com

आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में देश ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है. स्वाधीनता का लक्ष्य राजनीतिक मुक्ति के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और कूटनीतिक प्रगति की प्राप्ति थी. किंतु 1947 में अंग्रेजों से भारतीयों को सिर्फ सत्ता-हस्तांतरण हुआ. यह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता थी, राष्ट्र-जनता के समग्र विकास, सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण की चिंता जैसे पीछे छूट गयी थी. पूर्ण और समग्र स्वतंत्रता का असली शंखनाद एक तरह से आज से आठ साल पहले सुनायी पड़ता है, जब केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनती है. यह अनुगूंज इतनी प्रबल थी कि इसकी ध्वनि इंग्लैंड तक जा पहुंची. यह अनायास नहीं कि वहां का एक प्रतिष्ठित अखबार ‘द गार्डियन’ इसे संपूर्ण भारत का रूपांतरकारी परिवर्तन बताते हुए ‘इंडिया: अनदर ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ शीर्षक से संपादकीय लिखता है.

साल 2014 में 18 मई को प्रकाशित संपादकीय में लिखा गया कि ‘इस दिन को इतिहास में उस दिवस के रूप में दर्ज किया जा सकता है जब ब्रिटेन ने सचमुच भारत छोड़ दिया.’ साल 1947 से 2014 तक की स्थिति के बारे में अखबार लिखता है कि “अभी तक भारत की आम जनता पहले की तरह ही एक केंद्रीकृत, किलेबंद, सांस्कृतिक रूप से सीमित और ऐसे वर्ग द्वारा शासित रही है जो अंग्रेजी बोलते हैं, अंग्रेजों की तरह सोचते और रहते हैं. इस शासक वर्ग का रवैया जनता के प्रति समावेशी और संवेदनशील होने की बजाय शोषक और अहसानगिरी वाला था. पर मोदी के नेतृत्व में भारत के नये जागरण काल का प्रारंभ हो चुका है.”

आठ वर्ष के अल्प समय में ही राष्ट्र ने विशाल सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन देखा है. स्वतंत्रता के बाद जिन लक्ष्यों की परिकल्पना स्वामी विवेकानंद, तिलक, महर्षि अरविंदो और महात्मा गांधी आदि ने की थी, वह इन आठ वर्षों में साकार होती दिख रही है. वर्ष 2014 में मोदी सरकार को चुनौतियों का अंबार मिलता है. आर्थिक समस्या से लेकर उद्योगों की समस्या तक, शिक्षा, रक्षा, स्वास्थ्य की समस्या से लेकर किसानों, मजदूरों और महिलाओं की समस्याएं देश के सामने खड़ी थीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की साख कुछ खास न रही थी. ऐसे में नरेंद्र मोदी को जो ताज मिला, उसे कांटों का ताज कहा जाए, तो गलत न होगा. उन्होंने नये भारत के निर्माण का लक्ष्य रख ऐसे अभियान और योजनाएं चलायीं, जिनकी दशकों से आवश्यकता थी.

‘स्वच्छ भारत’ और ‘खुले में शौच-मुक्त भारत’ अभियान, ‘आयुष्मान भारत’ जैसी दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना और लोगों के रहने के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना आदि समाज के कमजोर वर्ग के सशक्तीकरण की दिशा में ठोस कदम साबित हुए हैं. उज्ज्वला योजना के तहत लाखों महिलाओं को धुएं से मुक्ति मिली, तो ‘जल जीवन मिशन’ के तहत सुदूर क्षेत्रों में भी नल के जरिये जल उपलब्ध हुआ. मुद्रा स्कीम, किसान सम्मान योजना, फसल बीमा योजना आदि ने किसानों व युवाओं के जीवन में नया उजाला भर दिया है. सबका साथ और सबका विकास करने वाली इन योजनाओं के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं को यातना देने वाली ‘तीन तलाक’ प्रथा को भी सरकार ने कानून बना कर गैरकानूनी कर दिया.

वर्ष 2014 में मोदी सरकार के समक्ष कर्ज से दबी अर्थव्यवस्था, मानवीय हस्तक्षेप वाली पुरानी टैक्स प्रणाली, एनपीए के संकट से जूझते बैंक और सदियों पूर्व के लचर एवं निरर्थक नियम-कानून थे. नये नियम बनाकर बैंकों को एनपीए से मुक्त करने का प्रयास किया गया, तो विमुद्रीकरण कर आम जनता को ऑनलाइन लेन-देन की ओर उन्मुख किया गया. ‘एक राष्ट्र-एक टैक्स’ यानी जीएसटी कर प्रणाली को लागू कर वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगनेवाले करों की सुगमता सुनिश्चित की गयी. इन सुधारों का परिणाम यह हुआ कि करों का अभूतपूर्व संग्रह हुआ, जिसका बड़ा हिस्सा सार्वजनिक सेवाओं में खर्च किया जाता है.

मोदी सरकार का एक अन्य नवोन्मेषी कदम था ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘वेंचर कैपिटल फंडिंग’ की नयी संस्कृति. वर्ष 2016 में 726 स्टार्टअप से मार्च, 2022 में 65,861 होना और यूनिकॉर्न की संख्या का सौ पार कर जाना इसका बड़ा प्रमाण है. कभी विनिर्माण का क्षेत्र भारत के लिए दूर की कौड़ी मानी जाती थी, पर ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ अभियान आदि के चलते भारत इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहा है. गत वर्ष भारत ने 418 बिलियन डॉलर का रिकॉर्ड निर्यात किया है. मोदी जी द्वारा आत्मनिर्भर भारत का आह्वान एक अन्य बड़ा संकल्प है.

सरकार ने स्वदेशी तकनीक विकसित करने के साथ-साथ निजी क्षेत्र का आह्वान किया. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को भी बढ़ावा दिया गया, जिससे देश में निवेश और रोजगार सृजन हो तथा हमें प्रौद्योगिकी भी प्राप्त हो सके. परिणाम यह हुआ कि इन आठ सालों में रक्षा निर्यात में छह से आठ गुना तक वृद्धि हुई है. कूटनीति के क्षेत्र में भी देश ने विश्व स्तर पर जो मान पाया है, वह पूर्व में कभी नहीं रहा. कोविड जैसे संकट के दौरान लगभग 100 देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराकर भारत ने एक नयी छवि गढ़ी है. अफगानिस्तान और यूक्रेन में संकट के समय भारतीयों की सुरक्षित निकासी भारत के लगातार बढ़ते कद का सूचक है.

मोदी सरकार यह भली-भांति जानती है कि देश की चतुर्दिक प्रगति के लिए शिक्षा के क्षेत्र में भी नये कदम उठाने होंगे. इसी का परिणाम है- राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020. मातृभाषा में न केवल प्राथमिक शिक्षा, बल्कि यथासंभव उच्च शिक्षा का भी प्रावधान, स्ट्रीम की खांचेबंदी से मुक्ति, कमजोर वर्ग के मेधावी छात्रों के लिए विशेष प्रावधान, युवाओं का रोजगारपरक व्यावसायिक शिक्षा से जुड़ाव, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सर्वसुलभ बनाने के लिए तकनीक का उपयोग और शोध व अनुसंधान पर बल इस नीति की प्रमुख अनुशंसाएं हैं, जिन पर अमल शुरू हो गया है.

यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इस अवधि में एक ऐसी नींव पड़ी है, जिस पर आनेवाले समय में हमारे सपनों का भारत निर्मित हो सकेगा. समग्र राष्ट्रीय विकास के लिए 360 डिग्री दृष्टिकोण से युक्त एक कल्याणकारी, आत्मनिर्भर और समावेशी भारत की रूपरेखा हमारे सामने है. हम सबकी यह महती जिम्मेदारी है कि मोदी सरकार के प्रयासों में अपना सहयोग दें और लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में साथ कदम बढ़ायें.

(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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