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जातीय जनगणना का मामला पहुंचा हाइकोर्ट, नीतीश सरकार के फैसले पर फंस सकता है पेंच

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बिहार में नीतीश कुमार के राज्य स्तर पर जनगणना कराने का फैसला अब कोर्ट की चौखट तक पहुंच गयी है. बुधवार को सरकार के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी है. इस याचिका में संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए जाति आधारित जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गयी है.

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पटना. बिहार में नीतीश कुमार के राज्य स्तर पर जनगणना कराने का फैसला अब कोर्ट की चौखट तक पहुंच गयी है. बुधवार को सरकार के इस फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी है. इस याचिका में संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए जाति आधारित जनगणना पर रोक लगाने की मांग की गयी है. कोर्ट अब सरकार के इस फैसले पर अपना फैसला लेगा. ऐसे में माना जा रहा है कि इस नीतीश कुमार के इस फैसले पर ग्रहण लग सकता है.

हाईकोर्ट में चुनौती

जातीय जनगणना कराने के नीतीश सरकार के फैसले को शशि आनंद नाम के व्यक्ति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि ये फैसला न सिर्फ संविधान के खिलाफ है, बल्कि इसके लिए आकस्मिकता निधि से 500 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला भी गलत है.

संविधान के अनुच्छेद 267 का उल्लंघन 

शशि आनंद की ओर से कोर्ट में याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता जगन्नाथ सिंह ने कहा कि आकस्मिकता निधि के पैसे से जातीय जनगणऩा कराना पूरी तरह गलत है. ये भारतीय संविधान की धारा का उल्लंघन है. संविधान के अनुच्छेद 267 में आकस्मिकता निधि और उसे खर्च किये जाने का उल्लेख किया गया है. इसके तहत सिर्फ अप्रत्याशित स्थिति में ही आकस्मिक फंड का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन नीतीश कुमार की सरकार इसी पैसे से जातीय जनगणना करा रही है.

अधिसूचना असंवैधानिक

याचिका में कहा गया है कि बिहार सरकार ने 2 जून, 2022 को मंत्रिमंडल की बैठक में आकस्मिकता निधि से 500 करोड रूपये निकाल कर जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है और फिर 6 जून को राज्यपाल के आदेश से इसकी अधिसूचना जारी की है. ये असंवैधानिक है.

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