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1971 के युद्ध में पाक को भारतीय फौज ने हर मोर्चे पर हराया था, मुजफ्फरपुर के जवानों ने सुनाई वीरता की गाथा

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विजय दिवस विशेष: 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध को 51 साल पूरे हो गये. 16 दिसंबर 1971 की शाम 04.35 बजे पाकिस्तानी सेना की पूर्वी कमान ने सरेंडर किया था. पढ़े भारतीय सैनिकों की विजय गाथा.

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सोमनाथ सत्योम, मुजफ्फरपुर: 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध को 51 साल पूरे हो गये. 16 दिसंबर 1971 की शाम 04.35 बजे पाकिस्तानी सेना की पूर्वी कमान ने सरेंडर किया था. उस शाम ढाका में आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करते लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी व उन्हें निहारते तब के पूर्वी कमान के कमांडर रहे ले.

जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा की तस्वीर आज भी भारतीय सेना प्रमुख की कुर्सी के ठीक पीछे लगी है. महज 13 दिन चले युद्ध में पाकिस्तान कई मोर्चों पर हारा. न सिर्फ पूर्वी सेक्टर में, बल्कि पश्चिमी सेक्टर में भी. उस युद्ध में मुजफ्फरपुर के तीन सेना के जवान भी थे. उन्होंने प्रभात खबर के साथ युद्ध की यादों को साझा किया है:

मकसद में कामयाब नहीं हो सके पाक सैनिक

कांटी कुशी हरपुर होरिल निवासी 78 वर्षीय पूर्व सैनिक प्रेम किशोर ठाकुर ने बताया कि रावी की एक सहायक नदी है, बसंतसर. 13 दिन की यह लड़ाई उस इलाके पर पाकिस्तानी के कब्जे कr कोशिश के कारण हुई, जिसमें जम्मू को पंजाब से जोड़ने वाली सड़कें थीं. यह इलाका बेहद महत्वपूर्ण था. अगर पाकिस्तान यहां हावी हो जाता, तो पूरे जम्मू से बाकी भारत का संपर्क कट सकता था. दरअसल, पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तान को भारत का मुकाबला करने में काफी परेशानी हो रही थी. ध्यान भटकाने के लिए उसने पश्चिमी सेक्टर में मोर्चा खोला था. लेकिन, पाकिस्तानी सैनिक अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके.

बिना शर्त आत्मसमर्पण का प्रस्ताव, फिर संघर्ष विराम

पूर्व सैनिक कांटी कुशी के हरपुर होरिल निवासी लखनदेव ठाकुर ने बताया कि वह सिग्नल कोर में थे. युद्ध शुरू था. उनके सैनिक लगातार मार गिराये जा रहे थे. पाकिस्तान के पास जवाबी हमला करने का कोई रास्ता नहीं था. उसे लग रहा था कि भारत अब बड़ा हमला करेगा. डर का नतीजा, बिना शर्त आत्मसमर्पण का प्रस्ताव दिया और संघर्ष विराम हुआ. भारत उस वक्त 1000 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके पर कब्जा किये बैठा था. बाद में पाकिस्तान के 350 वर्ग मील इलाके को भारत में शामिल किया गया.

ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरू करने का दिया गया हुक्म

पूर्व सैनिक नाग नारायण सिंह ने यादों को साझा करते हुए बताया कि नवंबर 1971 में भारतीय नौसेना से कहा गया कि पूर्वी पाकिस्तान में मौजूद पाकिस्तानी सैनिकों तक किसी भी तरह की मदद न पहुंचने दी जाए. कुछ सैनिकों को चाइना बॉर्डर पर तैनात कर दिया गया था. साथ ही कराची बंदरगाह पर मौजूद पाकिस्तानी नौसेना के मुख्यालय का रास्ता रोकना था. तीन दिसंबर को भारतीय नौसेना ने बॉम्बे से दीव तक का सफर तय किया. चार दिसंबर की शाम पांच बजे जब नौसेना कराची से करीब 150 मील दूर थी. तब ऑपरेशन ट्राइडेंट शुरू करने का हुक्म दिया गया.

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