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अंतरिक्ष में बड़ा कदम

ISRO : इसरो के इस मिशन का उद्देश्य पीएसएलवी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में दो छोटे यानों की डॉकिंग, यानी जोड़ने तथा अनडॉकिंग, यानी अलग करने की प्रक्रिया को पूरा करना है.

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ISRO : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा से सोमवार की रात पीएसएलवी रॉकेट के जरिये अपना बेहद महत्वाकांक्षी स्पैडेक्स मिशन (स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट) लांच किया, जो 2024 का उसका आखिरी मिशन भी था. इसरो ने इसे अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक ‘महत्वपूर्ण मील का पत्थर’ बताया है, तो यह यूं ही नहीं है. माना जा रहा है कि इसरो के इस मिशन की सफलता पर ही भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस) के निर्माण और चंद्रयान-4 मिशन की सफलता निर्भर करेगी, जो चंद्रमा पर जाने, वहां उतरने, वापस आने और पृथ्वी पर पहुंचने का मिशन है.

चंद्रयान-4 के लिए इसरो का यह डॉकिंग मिशन कितना जरूरी है, इसे इस तरह समझा जा सकता है कि चंद्रयान-4 में वस्तुत: कई मॉड्यूल हैं, जिन्हें दो अलग-अलग मॉड्यूलों में एकत्रित करके अलग-अलग समय में लांच किया जाना है, तथा पृथ्वी की कक्षा के साथ-साथ चंद्रमा की कक्षा में भी डॉक किया जाना है. जाहिर है, स्पेडेक्स मिशन की सफलता पर ही चंद्रयान-4 मिशन निर्भर करेगी. इसरो के इस मिशन का उद्देश्य पीएसएलवी रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में दो छोटे यानों की डॉकिंग, यानी जोड़ने तथा अनडॉकिंग, यानी अलग करने की प्रक्रिया को पूरा करना है.

दरअसल, इस मिशन में एक उपग्रह के दो हिस्से को एक ही रॉकेट में लांच किया गया है. अंतरिक्ष में इन्हें अलग-अलग जगहों पर छोड़ा गया है. फिर इन्हें एक दूसरे के करीब लाकर जोड़ा जाना है. इस मिशन में दो उपग्रह हैं. चेसर, यानी पीछा करने वाला तथा टारगेट, यानी लक्ष्य. मिशन में चेसर टारगेट का पीछा करेगा और उसे उससे डॉकिंग करेगा. अंतरिक्ष में दो अलग-अलग चीजों को जोड़ने की यह तकनीक ही आने वाले दिनों में भारत को अपना स्पेस स्टेशन बनाने में मदद करेगी. इस तरह भारत अपने स्वदेशी डॉकिंग सिस्टम के माध्यम से स्पेस डॉकिंग करने वाले देशों की चुनिंदा लीग में शामिल होने वाला चौथा देश बन गया है.

शेष तीन देश अमेरिका, चीन और रूस हैं. इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ के मुताबिक, डॉकिंग कल से शुरू हो गयी है, जिसके आगामी सात जनवरी तक पूरा होने की उम्मीद है. इस प्रयोग से इसरो को भविष्य में कक्षा छोड़कर अलग दिशा में जा रहे उपग्रह को वापस कक्षा में लाने की तकनीक भी मिल जायेगी. साथ ही, इससे कक्षा में सर्विसिंग और रीफ्यूलिंग का विकल्प भी खुल जायेगा. यह मिशन उपग्रह की मरम्मत करने, ईंधन भरने और मलबे को हटाने में भी सहायक होगा.

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