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गेहूं की खेती में किसानों के लिए सिरदर्द बनी पछुआ हवा और खाद

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जिले में इस बार गेहूं के खेती में किसानों के लिए पछुआ हवा और खाद की किल्लत ने बड़ा सिरदर्द पैदा कर दिया है. जबकि, गेहूं की बुआई का पीक सीजन लगभग समाप्त हो चुका है.

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भभुआ. जिले में इस बार गेहूं के खेती में किसानों के लिए पछुआ हवा और खाद की किल्लत ने बड़ा सिरदर्द पैदा कर दिया है. जबकि, गेहूं की बुआई का पीक सीजन लगभग समाप्त हो चुका है. बावजूद इसके गेहूं की बुआई का प्रतिशत 25 प्रतिशत से ऊपर का आकंडा भी नहीं प्राप्त कर सका है. गौरतलब है कि जिले में इस समय रुक-रुक कर पछुआ हवा चलने का दौर पिछले एक सप्ताह से जारी है. कभी तेज पछुआ हवा, तो कभी धीमी रफ्तार से चल रही पछुआ हवाओं ने धान की कटनी के बाद गेहूं के खेतों की नमी को जल्दी-जल्दी उड़ाना शुरू कर दिया है. मिट्टी कड़ी होने लगी है और खेत उखड़ने लगे हैं. इससे रबी फसल में गेहूं की बुआई गंभीर रूप से प्रभावित हुई है. इस संबंध में रमावतपुर गांव के किसान लाल सिंह यादव, बखारबांध गांव के किसान सियाराम गोंड आदि ने बताया कि गेहूं की बुआई का पीक सीजन समाप्ती पर है. लेकिन, पछुआ हवा चलने से खेतों में नमी भाग रही है. शुरू में धान के सीजन में खेतों में इतनी नमी थी कि हार्वेस्टर खेत में नहीं उतर रहे थे. इससे धान की कटनी में भी देर हुई. लेकिन, जैसे ही धनकटनी समाप्त हुई और खेत को जोतकर गेहूं बोने की तैयारी शुरू की गयी. वैसे ही जिले में डीएपी खाद के लिए किसानों को बाजार का चक्कर लगाना पडा. खाद की किल्लत अभी पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुई है कि पछुआ हवा किसानों के गले लग गयी. जबकि, जिले में गेहूं की बुआई का लक्ष्य लगभग 89 हजार हेक्टेयर में निर्धारित किया गया है. गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से तेजी से हो रहा जलवायु परिवर्तन, देर से ठंड आना, असमय बरसात होना, गर्मी का एहसास फरवरी माह में ही होने लगना आदि के कारण इस बदलते मौसम से खेती-बाड़ी का काम हर वर्ष गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है. अब पटवन करके गेहूं की बुआई करने पर उत्पादन पर पड़ेगा असर इधर, किसानों ने बताया कि पछुआ हवा से उखड़ रहे खेतों को अगर पटवन कर बुआई करना भी बहुत आसान नहीं है. किसानों ने बताया कि वैसे भी अभी सोन नहर केनाल में पानी नहीं दे रहा है. बावजूद इसके अगर मोटर मशीन से खेत का पटवन कर दिया जाये, तो फिर खेत को बुआई लायक भुरभुरी मिट्टी होने का इंतजार करना पडेगा. इससे गेहूं की बुआई और पिछड़ती जायेगी. इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा. मिलाजुला कर किसानों के अनुसार दोनों तरफ से फायदा छोड़ नुकसान ही होने वाला है. इधर, इस संबंध में जब जिला कृषि पदाधिकारी रेवती रमण से बात करने का प्रयास किया गया, तो उनसे संपर्क नहीं हो सका. लेकिन कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिले में अभी गेहूं की बुआई 20 से 25 प्रतिशत के बीच चल रही है. फिलहाल डीएपी या यूरिया खाद का कोई अभाव नहीं है. हर दो-चार दिन पर किसी न किसी कंपनी की खाद का रैक कैमूर पहुंच रहा है. बोले कृषि वैज्ञानिक इस संबंध में अधौरा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक अमित कुमार से बात की गयी, तो उनका कहना था कि किसान खेतों का शाम में हल्का पटवन करके या स्प्रीकंलर विधि से पटवन करके नमी को मेंनटेन कर गेंहू की बुआई कर सकते हैं. उन्होंने बताया बुआई के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान जरूरी है. दो से तीन बार खेत को जोतकर समतल बना कर मिट्टी को भुरभुर हो जाना चाहिए. किसानों को पहले जुताई में 20 से 25 किलो खाद प्रति हेक्टेयर दे देना चाहिए.

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