22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

राष्ट्रीय आय और श्रमिकों की आमदनी, पढ़ें अजीत रानाडे का खास लेख

Advertisement

हाल ही में भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि कंपनियों के मुनाफे में हुई वृद्धि की तुलना में श्रमिकों की आय कम बढ़ी है. राष्ट्रीय आय की तुलना में श्रमिकों की आय घटने पर उपभोक्ता खर्च और आय की समानता पर प्रतिकूल असर पड़ता है. इसके अलावा समानता और न्याय के लिए भी यह ठीक नहीं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

हाल ही में इंडस्ट्री चैंबर के एक आयोजन में कॉरपोरेट दिग्गजों को संबोधित करते हुए भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन ने कहा कि कॉरपोरेट कंपनियों की वृद्धि दर ठीक है, पर कर्मचारियों के लिए क्षतिपूर्ति में होने वाली वृद्धि उसके अनुपात में कम है. कोविड के बाद शेयर बाजार में पंजीकृत कंपनियों के टैक्स चुकाने के बाद का मुनाफा बढ़कर जीडीपी का 5.2 प्रतिशत हो चुका है. यह मुनाफा पिछले 15 वर्षों में सर्वाधिक है. निफ्टी में यह अनुपात 4.8 फीसदी है. सिर्फ पिछले तीन वर्षों में कंपनियों का लाभ तेजी से बढ़ा है. इसी दौरान कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति हिस्सेदारी घटी है. कॉरपोरेट या औपचारिक क्षेत्र में रोजगार वृद्धि की दर तो कम है ही, जिन लोगों को रोजगार मिला है, उनका वेतन या मजदूरी भी कंपनियों के मुनाफे की तुलना में बहुत कम है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 से 2024 के बीच निफ्टी में सूचीबद्ध 500 कंपनियों की मुनाफा वृद्धि दर 35.4 प्रतिशत सालाना रही, जबकि जीडीपी की वृद्धि दर मात्र 10.1 फीसदी रही.

- Advertisement -

पिछले चार वर्षों में कंपनियों का मुनाफा जीडीपी की तुलना में 3.5 गुने से भी अधिक रहा. इसके बरक्स मुद्रास्फीति के अनुपात में हुई वेतन वृद्धि की तो कोई तुलना ही नहीं की जा सकती. अर्थशास्त्रियों अमित बसोले और जिको दासगुप्त के मुताबिक, 2021-22 की तीसरी तिमाही से 2023-24 की दूसरी तिमाही तक जीडीपी की औसत वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही, जबकि नियमित मजदूरी की वृद्धि दर 0.07 प्रतिशत पर स्थिर रही. इन अर्थशास्त्रियों के अध्ययन का आधार सरकार द्वारा हर तीन महीने पर जारी की जाने वाले सावधिक श्रम बल सर्वे (पीएलएफएस) की रिपोर्ट है. जीडीपी वृद्धि दर और मजदूरी में वृद्धि के बीच की खाई महामारी के दौरान भी बहुत थी. जैसे, 2017-18 से कोविड से पहले की 11 तिमाहियों में जीडीपी की वृद्धि दर औसतन 4.8 फीसदी थी, जबकि नियमित मजदूरी की वृद्धि दर महज 0.21 प्रतिशत थी. बसोला और दासगुप्त के मुताबिक, 2017 से 2024 तक नियमित मजदूरी व स्वरोजगार में आमदनी वृद्धि दर मात्र एक प्रतिशत थी. सिटी बैंक की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, सूचीबद्ध भारतीय कंपनियों में मुद्रास्फीति को हटाकर मजदूरी की लागत पिछले 10 साल के औसत 4.4 प्रतिशत की तुलना में 2024 की शुरुआती तीन तिमाहियों में दो फीसदी से नीचे बनी रही.

जाहिर है, यह दीर्घावधि की वृद्धि दर की आधी है. जाहिर है, कॉरपोरेट इंडिया के दिग्गजों के बीच सरकार के प्रमुख आर्थिक सलाहकार द्वारा जतायी गयी चिंता कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि की तुलना में वेतन और मजदूरी में कम वृद्धि की दीर्घावधि की सच्चाई पर आधारित थी. वह कॉरपोरेट इंडिया के दिग्गजों को कह रहे थे कि वे मुनाफे में भारी वृद्धि को वेतन और मजदूरी में भी आनुपातिक और न्यायोचित वृद्धि करने की दिशा में कदम उठायें. प्रमुख आर्थिक सलाहकार की चिंतित करने वाली टिप्पणी को मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही की घटी हुई आर्थिक वृद्धि दर के बीच देखा जाना चाहिए. जुलाई-सितंबर में 5.4 फीसदी की वृद्धि दर अनुमान की तुलना में कम रही. वृद्धि दर में आयी गिरावट का कारण लोकसभा चुनाव के कारण सरकार द्वारा पूंजीगत खर्च में की गयी कमी को बताया जा रहा है. लेकिन खासकर शहरी क्षेत्र में उपभोक्ता खर्च में आयी कमी निश्चित रूप से वृद्धि दर में आयी गिरावट का बड़ा कारण थी. नेस्ले, हिंदुस्तान लीवर और दूसरी एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) कंपनियों ने जुलाई से सितंबर तिमाही के दौरान उनके उत्पादों की बिक्री स्थिर रहने या उनमें गिरावट आने की बात कही. हो सकता है कि शहरी उपभोक्ता इनकी तुलना में सस्ते ब्रांड्स का इस्तेमाल कर रहे हों या फिर उन्होंने खरीद में कमी कर दी हो, लेकिन याद रखना चाहिए कि एफएमसीजी कंपनियों के आंकड़े शहरी खर्च के बारे में सटीक जानकारी देते हैं. यह तो साफ है कि शहरी उपभोक्ता कई प्रतिकूल तत्वों से जूझ रहे हैं, जिनमें एक तरफ बढ़ती मुद्रास्फीति उपभोक्ताओं की खरीद शक्ति को प्रभावित कर रही है, तो दूसरी ओर, स्थिर मजदूरी के कारण आय में वृद्धि सीमित है. इन सबका नतीजा यह है कि सकल जीडीपी वृद्धि दर के अगले वर्ष बढ़कर 6.5 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है और कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि बढ़ते हुए समावेशी होने की आशा है. आदर्श विश्लेषण में हम बढ़ती राष्ट्रीय आय के मद्देनजर श्रम और पूंजी की हिस्सेदारी को देखते हैं. अगर इन दोनों की हिस्सेदारी राष्ट्रीय आय के अनुरूप हो, तो वह अच्छा है. लेकिन अगर राष्ट्रीय आय की तुलना में श्रमिकों की आय घटे, तो इसका उपभोक्ता खर्च और आय की समानता पर विपरीत असर पड़ता है. कोई यह कह सकता है कि वही श्रमिक म्यूचुअल फंड्स के जरिये कंपनियों के शेयर खरीद सकते हैं. लेकिन तब भी ज्यादातर श्रमिकों के लिए परिवारों के लिए लाभांश से मिलने वाली आय एक छोटा-सा हिस्सा ही होगी.

भारतीय कंपनियों को श्रमिकों के मुआवजे की हिस्सेदारी बढ़ानी चाहिए. यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह रोजगार के बदले हुए पैटर्न से संबंधित है. हाल संविदा कर्मचारियों और गिग वर्कर्स की, जिन्हें तो कर्मचारी माना भी नहीं जाता, संख्या में भारी वृद्धि हुई है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या कृत्रिम मेधा के मजबूत उभार का अर्थ यह है कि अनेक कंपनियां कर्मचारियों की संख्या घटा रही हैं और स्वचालन (ऑटोमेशन) पर ज्यादा जोर दे रही हैं. इसी बीच भारतीय कंपनियां कुशल और अर्ध कुशल कर्मचारियों की कमी की शिकायत भी करती हैं. बड़े किसान आज गरीब राज्यों के प्रवासी मजदूरों को अपने यहां काम पर भी नहीं रख पा रहे, क्योंकि मुफ्त अनाज और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजनाओं का श्रमिकों की उपलब्धता पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. कोरोना के समय रिवर्स माइग्रेशन और उद्योगों में तालाबंदी के कारण कृषि क्षेत्र में मजदूरों की हिस्सेदारी अचानक बहुत बढ़ गयी थी. नतीजतन लंबे समय तक उद्योग क्षेत्र में श्रमिकों की हिस्सेदारी स्थिर रही और मजदूरी भी. वर्कइंडिया के एक रिपोर्ट के मुताबिक, श्रमिकों और ऐसी ही नौकरियों से जुड़े 57 प्रतिशत भारतीय महीने में 20,000 रुपये से भी कम कमाते हैं. यानी हम कम उत्पादकता, कम कौशल, कम वेतन और कम रोजगार के दुश्चक्र में घिर गये हैं. उचित मजदूरी सिर्फ क्रयशक्ति और उपभोक्ता खर्च में वृद्धि के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह समानता और न्याय के लिए भी आवश्यक है. इस मुद्दे को बहस के केंद्र में लाने के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार का शुक्रिया अदा करना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें