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जीर्ण-शीर्ण अवस्था में वर्षों से पड़ा है ऐतिहासिक धरोहर

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बड़ीजान हाट में पीपल के पेड़ के नीचे चबूतरे पर रखे इस प्रतिमा को भले ही सरकार व पर्यटन विभाग की अन्देखी के कारण इस प्रतिमा की कोई कद्र नहीं है.

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सूर्य देवता की प्राचीन प्रतिमा जीर्ण-शीर्ण अवस्था मेंलेकिन आस्था का केंद्र हैं बड़ीजान सूर्य प्रतिमाकिशनगंज

ऐतिहासिक धरोहरों और पौराणिक चीजों को सहेजने के लिए चाहे लाख दावे किए जाते हैं. लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है. जिले के कोचाधामन प्रखंड में सूर्यदेव की मूर्ति जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक पीपल के पेड़ के नीचे वर्षों से रखा हुआ है. जिसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है. लेकिन सूर्यदेव की पूजा आराधना के लिए लगातार भक्तों के आगमन का सिलसिला वर्षों से जारी है. बड़ीजान हाट में पीपल के पेड़ के नीचे चबूतरे पर रखे इस प्रतिमा को भले ही सरकार व पर्यटन विभाग की अन्देखी के कारण इस प्रतिमा की कोई कद्र नहीं है. लेकिन आज भी यह प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था का का केंद्र है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पालवंश काल में 9वीं शताब्दी के समय की यह प्रतिमा अपने साथ कई इतिहास को समेटे हुए है.सात घोड़ों पर सवार सूर्य देव की प्रतिमा व मंदिर के अन्य अवशेष देख रेख के अभाव में जीर्णोशीर्ण अवस्था में इधर-उधर बिखड़ें पड़ें है.

पुरातत्व विभाग की अनदेखी

करीब पांच दशक पूर्व में पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई के दरम्यान सूर्य देव की प्रतिमा,मंदिर के मुख्य द्वार के शिलाखंड सहित अन्य अवशेष मिले थे. पुरातत्व विभाग के टीम ने जांच उपरांत उस समय स्थानीय लोगों को बताया था की कसोटी पत्थर से निर्मित सूर्य देव की इस बेशकिमती प्रतिमा को पालवंश कालीन (9 वीं शताब्दी) का है.जिस पर साल 2003 में तत्कालीन जिलाधिकारी के. सेंथिल कुमार ने बड़ीजान को सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर पुरातत्व विभाग की टीम के साथ मिलकर क्षेत्र का स्थल जांच, प्रतिमा व अन्य अवशेषों का भौतिक निरीक्षण भी किया था. लेकिन 21 साल बीत जाने के बाद पुरातत्व विभाग की टीम फिर दोबारा पलट कर ऐतिहासिक गांव बड़ीजान नहीं पहुंची. वर्तमान में प्राचीन कालीन यह प्रतिमा को ग्रामीणों ने एक पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे में रख दिया हैं. लेकिन अन्य अवशेष जीर्णशीर्ण अवस्था में इधर-उधर बिखरे पड़े हैं.

दुर्लभ पत्थर से बनी है प्रतिमा

पालकालीन 9वीं शताब्दी के समय निर्मित सात घोड़ों पर सवार यह सूर्यदेव की प्रतिमा दो भाग में है. बेसाल्ट पत्थर से निर्मित है.प्रतिमा के दोनों ओर दोनो शक्तियां ऊषा व प्रत्यषा एवं अनुचरदंड व पंगल खड़े हैं. गले में मनकों की माला व चंद्रहार पहने हुए सूर्य की प्रतिमा आभूषणों से अलंकृत हैं.प्रतिमा की उंचाई 5 फीट 6 इंच व चौड़ाई 2 फीट 11 इंच है.स्थानीय लोगों के मुताबिक बड़ीजान का इलाका अपने अंदर 11 सौ साल पुरानी दास्तां समेटे हुए हैं.

पाल कालीन है प्रतिमा

इतिहास के अनुसार पाल साम्राज्य मध्यकालीन भारत का एक महत्वपूर्ण शासन था जो कि 740-1174 ईसवीं तक चला.पाल राजवंश ने भारत के पूर्वी भाग में एक साम्राज्य बनाया. जो काफी दूर तक फैला हुआ था.उसी काल मे में वास्तु कला को काफी बढावा मिला.उस दौर में भी दुर्लभ पत्थरों से प्रतिमा का निर्माण किया जाता था.

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

स्थानीय लोग बतातें हैं कि पुरातत्व विभाग की टीम यदि बड़ीजान में कई जगहों पर खुदाई करें तो इतिहास की कई अन्य धरोहर मिल सकते हैं.और उस मूर्ति को सहेजने की आवश्यकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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